प्रेमचंद को प्रेमचंद ही रहने दें मुंशी प्रेमचंद ना बनाएं : डॉ. सम्राट् सुधा

 

रुड़की, हिन्दी के कथा सम्राट् प्रेमचंद की 144 वीं जयंती 31 जुलाई, 2025 को बीत चुकी। वे मुंशी प्रेमचंद थे या प्रेमचंद , यह प्रश्न विवादित है।
इस संदर्भ में हिन्दी साहित्यकार और प्रोफेसर डॉ. सम्राट् सुधा ने एक भेंट में बताया कि यह सुस्पष्ट है कि प्रेमचंद का सही नाम प्रेमचंद ही लिखा तथा बोला जाना चाहिए, मुंशी प्रेमचंद नहीं ! डॉ. सम्राट् सुधा ने कहा कि अनेक लोग, जिनमें साहित्य की प्रामाणिकता को लेकर गंभीरता का अभाव है, बिना किसी झिझक के प्रेमचंद के स्थान पर उनका नाम मुंशी प्रेमचंद बोलते तथा लिखते हैं।
उन्होंने कहा कि प्रेमचन्द ने कभी अपने नाम के साथ कभी भी मुंशी नहीं लिखा था । वर्ष 1930 में पत्रिका ‘हंस’ आरंभ हुई , तो के. एम. मुंशी उसमें प्रेमचंद के सह- संपादक बने । वे उम्र में प्रेमचंद से बड़े थे, सो उनका नाम मुख पृष्ठ पर प्रेमचंद से पूर्व आया और दोनों के परिचयात्मक नाम यूँ छपे- ‘मुंशी-प्रेमचंद।’ बाद में ज़ब्ती की रोचक कथाएँ और प्रचलित हो गया प्रेमचंद जी का ग़लत नाम ‘मुंशी प्रेमचंद !’ इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि अपनी मृत्यु , 8 अक्टूबर,1936, से पूर्व स्वयं प्रेमचंद के समक्ष किसी के द्वारा उनका नाम मुंशी प्रेमचंद के रूप में आया कि नहीं,परंतु ‘प्रेमचंद’ और ‘मुंशी प्रेमचंद’ इन दो नामों में से किसी एक की साहित्यिक ग्राह्यता को लेकर कतिपय प्रमाण हैं !
डॉ. सम्राट् सुधा ने बताया कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल के ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ को एक प्रामाणिक पुस्तक माना गया है, इस पुस्तक में उन्होंने प्रेमचंद का उल्लेख प्रेमचंद नाम से ही किया है, मुंशी प्रेमचंद नहीं। यह पुस्तक प्रेमचंद के देहावसान से सात वर्ष पूर्व वर्ष 1929 में प्रकाशित हुई। प्रेमचंद पर सबसे गहन आलोचनात्मक पुस्तक है–’प्रेमचंद और उनका युग,’ इसके लेखक हैं हिन्दी के प्रख्यात आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा। इस पुस्तक में भी प्रेमचंद , प्रेमचंद ही हैं, मुंशी प्रेमचंद नहीं ! वर्ष 1970 में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, शिक्षा एवं सेवा मंत्रालय, भारत सरकार , नयी दिल्ली ने एक ग्रन्थ प्रकाशित किया –भारतीय साहित्य रत्नमाला,’ इसमें प्रेमचंद , प्रेमचंद ही हैं, मुंशी प्रेमचंद नहीं ! वर्ष 1976 में केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय , भारत सरकार , नयी दिल्ली ने एक पुस्तक प्रकाशित की–’भारतीय कहानी।’ इस पुस्तक में प्रेमचंद , प्रेमचंद ही हैं, मुंशी प्रेमचंद नहीं ! प्रेमचंद पर भारतीय डाक विभाग ने 31 जुलाई, 1980 को उनकी जन्म शताब्दी के अवसर पर 30 पैसे का एक डाक टिकट जारी किया था, इसमें भी उनका नाम प्रेमचंद लिखा गया, मुंशी प्रेमचंद नहीं !
डॉ. सम्राट् सुधा ने कहा कि आज अधिकांश लोगों का ज्ञान स्रोत गूगल है। गूगल में प्रेमचंद पर डाक टिकट की जानकारी इन शब्दों में मिलती है –”जी हाँ, मुंशी प्रेमचंद पर डाक टिकट जारी हुआ है। भारतीय डाक विभाग ने 31 जुलाई, 1980 को उनकी जन्मशती के अवसर पर 30 पैसे का एक डाक टिकट जारी किया था।” इसी के साथ गूगल इमेज में डाक टिकट का चित्र है, जिसमें उनकी नाम प्रेमचंद लिखा गया, मुंशी प्रेमचंद नहीं ! इससे गूगल की लापरवाही और उसका अप्रामाणिक होना सिद्ध होता है।
उन्होंने कहा कि हिन्दी साहित्य को प्रमाणिकता से प्रस्तुत करने का दायित्व हिन्दी साहित्यकारों पर है। हमें अपने पूर्ववर्ती महान् साहित्यकारों के सही नाम को लेकर सचेत और सक्रिय रहना है। साहित्य आनन्द का हेतु है , कृपया इसे मनचाहे उच्चारण और प्रयोग का माध्यम ना बनाएं ! प्रेमचंद को प्रेमचंद ही रखें, मुंशी प्रेमचंद नहीं!

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