जाने ! कब किस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दे…इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। जिंदगी में जब सब कुछ अच्छा चल रहा होता है, तभी अचानक एक झटका सा लगता है… और सारे समीकरण गड़बड़ा जाते हैं ,और आदमी कहीं से कहीं पहुंच जाता है।
काश ! एक कहानीकार की तरह हर किसी को यह सुविधा होती कि वह अपनी जिंदगी की कहानी को मनचाहा मोड़ दे सकता ….पर वास्तविक जिंदगी में ऐसा नहीं हो पाता है । किंतु फिर भी यदि व्यक्ति की इच्छा शक्ति दृढ़ हो तो ,फिर चाहे परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल क्यों ना हो …वह उन्हें कुछ हद तक अपने पक्ष में कर ही लेता है , हांँ ! इस चक्कर में ,कुछ कीमती चीजें पीछे छूट जाती हैं ..जो अक्सर मन को कचोटती रहती हैं ,पर क्या करें ? प्रकृति का नियम ही ऐसा है कि कुछ पाने के लिए, कुछ खोना पड़ता है जैसा कि उनके साथ हुआ, पर आज कोकिला देवी जहां है, जिस दुनिया में है …उसमें वह बहुत खुश हैं। आज समाज में उनकी मिसालें दी जाती हैं, हालांकि आज से कुछ साल पहले वह भी आम भारतीय औरतों की तरह एक साधारण सी गृहणी थी … उनका भी एक परिवार था, जिसके अपने
वह अभी अतीत में ही विचरण कर रही थी कि उनके इस नए परिवार की सबसे छोटी और सबकी लाडली सदस्य माधुरी भागती हुई आई और उनका हाथ पकड़कर बोली ” बड़ी मां ! आप यहां बैठी हो … ? और ,मैं आपको कब से ढूंढ रही हूं … सुबह सुबह आप यहां बैठी, जाने क्या-क्या सोच रही हो .. और सब आपका इंतजार कर रहे हैं…और ,आज पंद्रह अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस है , आपको झंडारोहण भी करना है …फिर हम सब ने मिलकर जो सांस्कृतिक कार्यक्रम तैयार किए हैं, उसमें विजेता का फैसला भी तो आपको ही करना है ,तो मैंने सोचा कि अब आपकी याददाश्त का तो कोई भरोसा नहीं है .. इसलिए आप को याद दिला दूं… और दूसरी खुशी की बात यह है कि अपने इस “आशा सदन” का आज स्थापना दिवस यानी हैप्पी बर्थ डे भी तो आज ही है….।
“अरी ! लडकी , जरा सांस तो ले ले ! चल रही हूं ,मुझे सब याद है , इस ऐतिहासिक दिन को भला कौन भूल सकता है ? और फिर मेरी तो इस दिन से और भी बहुत सारी पुरानी यादें जुड़ी हुई हैं..मैं इसे कैसे भूल सकती हूंँ ?
–“कौन सी यादें बडी मां ?
-“तेरी समझ में नहीं आएगी ,तू अभी छोटी है ना…। “कहकर कोकिला देवी माधुरी के साथ प्रांगण में आ गई ।
जैसे ही उन्होंने झंडारोहण किया तो तिरंगा आन- बान और शान के साथ हवा में लहराने लगा और फिजा में जन -गण -मन गूंजने लगा… मिठाइयां बांटी गई और फिर सबने मिलकर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद लिया , विजेताओं को पुरस्कृत किया गया तत्पश्चात कोकिला देवी अपने कमरे में आकर बिस्तर पर लेट गई ।
ना जाने ! क्यों आज उन्हें पुरानी बाते बहुत याद आ रही थी । कुछ साल पहले की ही तो बात है, जब वह अपनी बहू और बेटे साहिल के साथ रहा करती थी। दोनों नौकरी पेशा थे ,अतः पोती नव्या की जिम्मेदारी उन्हीं के ऊपर थी । वह उसे अच्छे संस्कार देने की पूरी चेष्टा करती थी ,स्वयं ही उसे स्कूल लेने- छोड़ने जाती थी, उसे होमवर्क कराती और फिर शाम को दोनों बराबर वाले पार्क में चले जाते थे, जहां वह अपने दोस्तों के साथ खेलती थी और वह भी वहां टहल लेती थी …उस हरियाली से उनके मन को सकारात्मक ऊर्जा मिलती थी और शरीर भी स्वस्थ रहता था ।
वहां उनके अनेक संगी- साथी भी बन गए थे। सब अपने सुख–दुख सांझा कर लेते थे । घर लौट कर वह फटाफट नौकर से खाना तैयार करवाती ,बेटे -बहू के आने पर सब मिलकर खाना खाते, हंँसी -मजाक
करते… कुल मिलाकर सब कुछ अच्छा चल रहा था ,वैसे वह स्वयं को काफी व्यस्त रखती थी ।
घरेलू महिला होने के साथ-साथ उन्होंने अनेक सामाजिक संस्थाएं ज्वाइन कर रखी थी, एकाध किटी से भी वह जुड़ी हुई थी ।उनके आकर्षक व्यक्तित्व एवं सौम्य व्यवहार के कारण सभी उन के मुरीद थे । वह दूसरों के सुख- दुख में काम आने की भरपूर चेष्टा करती थी ।सभी उनसे राय- मशवरा लेते रहते थे। यूं तो, उनका जीवन काफी सुखी था ,बस कभी-कभी एक अकेलापन महसूस होता था, क्योंकि कुछ समय पहले उनके पति स्वर्गवासी हो गए थे , इस कमी को उन्होंने नियति मानकर स्वीकार कर लिया था … ! अब अपने बच्चों के साथ उन्हें जिंदगी से कोई शिकायत नही थी।
किंतु ,पिछले कुछ दिनों से उन्हें बुखार रहने लगा था, और वजन बड़ी तेजी से गिर रहा था ,शुरू में लगा वायरल होगा …. पर जब काफी दिनों तक बुखार नहीं उतरा तो डॉक्टर ने ब्लड टेस्ट करवाने के लिए कहा, और जब यह ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट लेने, और डॉक्टर को दिखाने अस्पताल गई , कुछ चेकअप आदि होने के बाद वह बाहर वेटिंग स्पेस में बैठ गई और बेटा रिपोर्ट लेकर डॉक्टर के पास मिलने चला गया ।
डॉक्टर ने रिपोर्ट देखकर जो कहा , उसे सुनकर साहिल सिर पकड़ कर बैठ गया, डॉक्टर कह रहा था-” सॉरी! मिस्टर साहिल, आपकी मां की रिपोर्ट में ‘एच आई वी’ पॉजिटिव निकला है, आपकी मां को एड्स हो गया है ,इसलिए हमें उन्हें “ऐड्स सेल ‘ में एडमिट करना होगा…।
– “पर डॉक्टर !मेरी मां तो एक स्वस्थ और धार्मिक महिला है ,तो यह बीमारी उन्हें कैसे हो सकती है .. ?-“मिस्टर साहिल ! जरूरी नहीं है कि किसी के संपर्क में आने से ही यह बीमारी हो, कई बार कोई और वजह भी हो सकती है, पर आप चिंता ना करें ,क्योंकि आपकी मां इलाज से ठीक होकर, फिर से सामान्य जीवन जी सकती है ।”
डॉक्टर ने उसे बहुत समझाया, पर साहिल के दिमाग में ‘एड्स -एड्स ‘…यही एक शब्द गूंज रहा था। वह सोच रहा था उसके तो पिता भी नहीं है, फिर मां को यह बीमारी कैसे हो गई….? इसी उधेड़बुन में जब वह बाहर आया और मां ने जब सवालिया नजरों से देखा कि रिपोर्ट में क्या निकला? तो वह खुद को संयत करके बोला ” मां ! समझ में नहीं आ रहा है ,कि आप को एड्स कैसे हो सकता है… ? यह सुन कर वह सिर पकड़कर बैठ गई और फिर धीरे-धीरे बोली “तुझे याद है कि जब तेरे पापा का एक्सीडेंट हुआ था ,तब उन की पोस्टिंग एक कस्बे में थी ,जहां बहुत कम मेडिकल सुविधाएं थी और उनकी जान बचाने के लिए अफरा -तफरी में उन्हें खून चढ़ाया गया था ,उस समय तो उनकी जान बच गई थी…. ,किंतु उन्हें बुखार रहने लगा था , जांच करवाने पर डॉक्टर ने एडस की आशंका व्यक्त की थी और कहा था कि हो सकता है उन्हें एड्स पीड़ित व्यक्ति का खून चढ़ा दिया गया हो…. और वास्तव में तेरे पापा की मृत्यु एडस से ही हुई थी, पर मैने किसी को उनकी मृत्यु का कारण नहीं बताया था ,क्योंकि मैं नहीं चाहती थी उन्हें “बदनाम मौत ‘मिले..…. मैं जानती हूं कि हमारा समाज कहने को कितना ही आधुनिक और उदार बनने का दावा करें ,किंतु आज भी वह एड्स रोगी को अच्छी नजर से नहीं देखता है ,उससे दूरी बना कर रखना चाहता
है… ।तब तू हॉस्टल में था और अपने पापा की मृत्यु के बाद ही आया था इसलिए तुझे इन सारी बातों का पता नहीं चल सका था ,और मैंने भी तुझे कुछ नहीं बताया था। मां के मुख से यह सारी बातें सुनकर बेटे की आंख भर आई और उसने मां के हाथ थाम लिए।
इसके बाद ही उनका इलाज शुरू हो गया और साथ ही शुरू हो गई अस्पताल की वह कष्टदायक प्रक्रिया ,कभी यह जांच तो कभी वह जांच ,एक तो बीमारी ,ऊपर से बीमारी वाला माहौल…. ।
वह अंदर से टूटने लगी थी ,इस एड्स सेल में हर उम्र के लोग थे, और सभी जैसे जीवन से लड़ रहे थे । कोई उनसे मिलने आता था तो उन्हें बहुत अच्छा लगता था । उनका बेटा उनसे मिलने रोज ही आता था, उनके हालचाल पूछता, फिर धीरे-धीरे वह भी दो-चार दिन में एक ही बार आने लगा था…. और बहु तान्या तो बस एक-दो बार ही आई थी, उन्होंने सोचा कि घर ,नौकरी और बच्चे के कारण ,बेचारी नहीं आ पाती होगी ,अकेले ही सब कुछ जो संभालना पड़ रहा है ।
एक दिन जब उनकी बचपन की सहेली कादंबरी उनसे मिलने आई तो वह उसका हाथ पकड़कर बोली–“देख कादंबरी ! मै अस्पताल में…और इस बीमारी से तो कम से कम बिल्कुल नहीं मरना चाहती हूं , अपितु मैं ठीक होकर सब को यह बताना चाहती हूं कि एड्स के रोगी भी सामान्य रोगी की तरह होते हैं, अत:उनके साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए।”
तब कादंबरी ने कहा ” तू ! जल्दी ठीक हो जाएगी क्योंकि, तेरी इच्छा शक्ति बहुत दृढ़ है। ” और सचमुच उनके स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हुआ… वह एकदम ठीक हो गई ,वह डॉक्टर के हर निर्देश का पालन करती , दवाई समय से लेती और फिर एक दिन वह समय आ ही गया जब डॉक्टर ने उनके बेटे साहिल को बुलाकर कहा कि-” अब आपकी मां बिल्कुल ठीक हो गई हैं ,आप इन्हें घर ले जा सकते हैं… बस बीच-बीच में चेकअप कराना मत भूलिएगा तो उन्होंने खुश होकर बेटे की तरफ देखा था…. पर वहां उन्हें वह उत्साह नहीं दिखाई दिया ,जिसका उन्हें इंतजार था, खैर !इस बात को अपना वहम मानकर वह उसके साथ कार में बैठ गई ,घर पहुंचने पर वह खुशी-खुशी कार से उतर गई। उन्होंने सोचा था कि नव्या आकर उनसे लिपट जाएगी ,तान्या उनका जोरदार स्वागत करेगी , पर वहां पसरा सन्नाटा देखकर कहने लगी -“यह दोनों मांँ- बेटी कहां गई है ? , तो साहिल नजर चुराता हुआ बोला- “मां !यह घर थोड़े पुराने टाइप का है …,तो हमने एक अच्छी और नई कॉलोनी में घर ले लिया है इसलिए तान्या और नव्या वहीं पर हैं ।
वह बेटे का मुंह देखती रह गई… तुरंत सारी बात समझ गई… पर जैसे तन- मन को लकवा सा मार गया था ….,किसी तरह बस इतना ही कहा-” ठीक है ,जैसी तुम्हारी मर्जी !”
“मां ! मैंने एक काम वाली बाई रख दी है, जो यहीं रहकर आप की देखभाल करेगी , और फिर हम सब भी बीच-बीच में आप से मिलने आते रहेंगे और फोन तो है ही, कोई दिक्कत हो ,तो आप मुझे फोन कर देना” ।
-“तुम चिंता मत करो ,मैं सब संभाल लूंगी …,”मन में तूफान घुमड रहा था पर किसी तरह संयत होकर बस इतना ही कह सकी।
कुछ देर बैठ कर ,बेटा भी चला गया। उसके जाने के बाद वह धम्म से सोफे पर पसर गई ,आंखों से अविरल आंसू की धारा बह निकली…, पर मन में बार- बार एक सवाल उठ रही था कि बच्चे मांँ- बाप को , इतनी आसानी से कैसे पराया कर सकते हैं..? जबकि मां-बाप चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाते हैं ,उनकी छोटी से छोटी इच्छा भी जी जान से पूरी करते हैं ।
शायद उनकी तकदीर ही कुछ ऐसी है…., कुछ देर यूं ही पड़े रहने के बाद, एक दृढ़ निश्चय के साथ वह उठ बैठी और खुद से वादा किया कि ..वह कमजोर नहीं पड़ेगी ,ना ही हार मानेगी, एक रास्ता बंद हो गया तो क्या हुआ…. मंजिलें और भी हैं…. वह किसी के ऊपर आश्रित ना रहकर बेसहारों का सहारा बनेगी…!
और ,यहीं से शुरू हुआ…., उनकी जिंदगी का एक नया सफर… कादंबरी के साथ बैठकर विचार -विमर्श किया कि उन्हें क्या करना चाहिए ,पैसे की कोई कमी नहीं थी । पति काफी जमा- पूंजी छोड़कर गए थे ,पास में यह बड़ा सा पुश्तैनी घर भी था…और तब
उन्होंने आगे बढ़कर निराश्रित महिलाओं के लिए इस “आशा सदन” की स्थापना की ,….और वह भी आजादी के खास दिन ,यानी स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर, कुछ अपना पैसा लगाया, कुछ समाज से , सहयोग मिला… और आज उनकी अथक मेहनत से उनका यह “आशा सदन” बेसहारा महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण बन चुका है … जहां वह सम्मान के साथ रहती हैं, कुछ औरतें सिलाई -कढ़ाई -बुनाई आदि करती हैं, कुछ अचार, मोमबत्ती ,पापड़ आदि बनाती है जो कि बाजार में हाथों-हाथ बिक जाता है ,क्योंकि संस्था की साख बहुत अच्छी है..और यह सब कार्य उन की देख- रेख में ही होता है।
कुछ समय बाद जब साहिल और तान्या को अपनी गलती का अहसास हुआ तो वह वहां आए और उनसे साथ चलने का आग्रह किया तो उन्होंने पोती के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा ” बेटा ! तुम्हारी मां हूं….. इसलिए कब तक नाराज रह सकती हू ? मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ रहेगा ,और रही बात, साथ रहने की ,तो तुम ही बताओ ,इन सब को निराश्रित छोड़कर ,मैं तुम्हारे साथ कैसे जा सकती हूं ? अब यही मेरी दुनिया है ….., हां ! जब तुम्हारा मन करे तो मिलने के लिए आ जाना…..अब यदि मैं जीवन के आखिरी
पड़ाव में किसी का सहारा बन सकती हूं .. किसी के चेहरे पर मुस्कान ला सकती हूं ,तो इससे बढ़िया जीवन का सदुपयोग भला ! और ,क्या हो सकता है….?
और…..आज कोकिला देवी बेसहारों का सहारा बन चुकी है , जाने कितनी जिंदगियां संवार चुकी है ,उन्होंने साबित कर दिखाया है,…कि एड्स रोगी भी ठीक हो कर इज्जत के साथ सामान्य जीवन जी
सकता है ….अतः समाज को भी अपनी सोच बदलकर उन्हें खुले दिल से अपना लेना चाहिए ।
— सुमन चौधरी सुमन
(मौलिक एवं स्वरचित रचना)
पता – सुमन चौधरी सुमन
पारिजात- 490
शिवपुरी लेन सिविल लाइंस -२
बिजनौर, उत्तर प्रदेश