हमारे बुजुर्ग

शाश्वत सत्य में,एक सत्य वृद्धावस्था है। वृद्धावस्था उस संधिकाल के समान है,जिस तरह सूर्य उषाकाल से लेकर सांध्यकाल तक अपनी किरणों के द्वारा सभी प्राणियों में जीवन स्रोत प्रवाहित कर, अस्ताचलगामी हो सागर में निमग्न होने के लिए उन्मुख होता है। यह प्रकृति का नियम है, जिसका अनुसरण प्रकृतिस्थ सभी  प्राणियों को करना होता है।
इसी तरह हमारे बुजुर्ग है जिन्होंने अपने जीवन का महत्वपूर्ण पल हमारी उन्नति और विकास के लिए लगाया है।हमारा पालन-पोषण, शिक्षा तथा भविष्य को बेहतर बनाने के लिए सब कुछ उन्होंने न्योछावर किया है। हमारी खुशी को अपनी खुशी समझा है। जब वहीं उम्र के इस पड़ाव पर आते हैं कि उनका शरीर शिथिल,स्मरण कमजोर हो जाता है तो उन्हें उपहास का पात्र बना दिया जाता है। आज के दौर में यह सोचनीय है कि जाने अंजाने हम कैसा समाज निर्मित कर रहे हैं? अपने बच्चों को किस तरह का शिक्षा दे रहे हैं?
मंदिरों में जाकर पूजा करना, लड्डूओं का भोग लगाना किस काम का यदि घर में अपने बुजुर्गो को खुश नहीं रख सकते? बुजुर्गो का मन बालकों की भांति होता है। उनके इच्छानुसार कोई कार्य किया जाए, उनके मनपसंद भोजन परोसा जाए, उनसे प्रेम और सम्मान से बातें कर ली जाए तो इससे उत्तम इश्वर की उपासना दूसरी नहीं है। इसके लिए हमें अपना जीवन अनुशासित और संतुलित करना होगा।जैसा हमारे बुजुर्गो ने हमारी अच्छी परवरिश के लिए कठिन जीवन जीया है। परंतु आधुनिकतम ताम-झाम के वश में होकर आज बहुत से लोगों के मुंह से यह सुनने को मिलती है, एक ही जीवन मिलता है मौज मस्ती के लिए, वह इन बुजुर्गो की खातिरदारी में नष्ट करें। ऐसे में बुजुर्ग उपेक्षित, अवसाद पूर्ण जीवन जीने के लिए छोड़ दिए जाते है।
फिर मरणोपरांत उनका श्राद्ध, पुण्यतिथि बड़े वृहद रूप में मनाया जाता है।जिन माता पिता को जीवनकाल में सुगंधित स्थान के बदले कोने का कमरा या वृद्धाश्रम दिया गया। स्वादिष्ट भोजन के बदले समयाभाव में भूखे रखा गया। उनके ही श्राद्ध कर्म में उत्तम वस्तुएं भेंट दी जाती है। सुसज्जित मेज पर बुजुर्ग का फोटो जिनपर ताज़े ग़ुलाब के फूलों का माला चढ़ा होता है। धूप अगरबत्ती जला कर रसगुल्ला और लड्डू अर्पण किया जाता है। यह विडंबना ही है जो काफी हास्यास्पद और संवेदनहीनता का उदाहरण है।।
बुजुर्गो के सम्मान के फलस्वरुप हमें जीवन में जो प्राप्त होता है,वह अनुपमेयित है। महाभारत के भीष्म पर्व में एक बहुत ही अविस्मरणीय प्रसंग है। वयोवृद्ध,महान योद्धा, गंगा पुत्र भीष्म अपने वचन और कर्त्तव्य का पालन करते हुए कौरवों के दल का नेतृत्व कर रहे हैं। युद्ध का आठवां दिन है, प्रतिदिन कौरवों के सेना का क्षय अधिकाधिक हो रहा है। दुर्योधन रात्रि में भीष्म पितामह के पास आकर कटु और शंकालु वाणी में पूछता है कि पांडवों के विजय का कारण क्याहै? मुझे तो आपकी वीरता पर शंका होने लगी है। आपके होते मैं किसी अन्य को सेनापति भी नहीं बना सकता। मुझे किसी भी तरह विजय चाहिए। दुर्योधन का ऐसा वक्तव्य सुनकर भीष्म अत्यंत दुखी हुए। दुर्योधन पुनः अपने क्रुर वाणी में बोलना आरंभ किया, पितामह आपको आज संकल्प लेना ही होगा कि कल युद्ध के आरंभ में ही पांडू-पुत्रो को मृत्यु लोक पहुंचाएंगे। यह सुनकर भीष्म तरकश से पांच बाण निकालकर संकल्प लिया कि इन बाणों से कल पांडवों की मृत्यु निश्चित है।
इन बातों की खबर पांडवों को लगी।तब द्रौपदी स्वयं को कंबल से ढककर नंगें पांव पितामह के शिविर में जा पहुंची। पितामह वेदना में आंखें बंद कर हरि स्मरण कर रहे थे। द्रौपदी उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त किया। पितामह ने समझा कौरवों के शिविर की कोई स्त्री होगी। अतः अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया! सामने द्रौपदी सिर झुकाए अश्रुपूर्ण नेत्रों से उन्हें निहार रही थी। परिणामस्वरूप पांडव विजयी हुए। ऐसा होता है बुजुर्गो के प्रति आत्मीय सम्मान का फल।
वृद्धों का करें जो सम्मान
है जग में वह सच्चा इंसान।
तन से मन से करो सब सेवा
माता पिता से बढ़कर कौन देवा !

निशा भास्कर(शिक्षिका)
साधनगर-2, पालम कालोनी
नयी दिल्ली –110045.

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