मानवीय संवेदनाओं का चित्रण कहानी-संग्रह ’वो मिले फेसबुक पर’

सुरेन्द्र अग्निहोत्री

जब जुपिन्द्रजीत सिंह का कहानी-संग्रह ’वो मिले फेसबुक पर’ मेरे हाथों में आया तो बस पढ़ता ही चला गया। उनकी कहानियाँ मन-मस्तिश्क को झिंझोड़ती ही नहीं, बल्कि मस्तिश्क में अपने लिए एक कोना स्वयं ही तलाष कर जगह बना लेती हैं। साथ ही पाठक को सोचने पर विवष कर देती हैं और एक सामाजिक संदेष उन कहानियों में होता है। जीवन के विभिन्न उतार-चढ़ावों को लेखका ने बहुत ही सलीके से तराषा है। उनके पात्र अपने इर्द-गिर्द के ही महसूस होते हैं। कहानी का षीर्शक ’वो मिले फेसबुक पर’ अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है। आवरण पृश्ठ की साज-सज्जा आकर्शक है। मानवीय संवेदनाओं और पुश्प को चित्रित करता आवरण पृश्ठ कहानी-संग्रह के बारे में बड़ी खामोषी से बहुत कुछ कह जाता है, बस हमें ध्यान से देखने की जरूरत भर है उसे ।जुपिन्द्रजीत सिंह का यह कहानी-संग्रह ’वो मिले फेसबुक पर’ अपने आप में एक अद्भुत रचना है। जिस समाज में आज झूठ का ज्यादा बोलबाला है, उस समाज में लेखक ने सच का दीया हाथ में लेकर समाज को एक नई दिषा दिखाने का सफल प्रयास किया है। 36 कहानी रूपी पंखुडियों में सिमटा ’’वो मिले फेसबुक पर’’ अपनी खुषबू से पाठकों को महकाता है ही, साथ ही वेदना को बखूबी बयाँ कर जाता है। 192 पृश्ठों का कहानी-संग्रह अपनी बात प्रभावषाली ढंग से कहने में पूरी तरह सफल है। ंपहली कहानी’एक छोटी सी प्रेम कथा’ एक मर्मस्पर्षी कहानी है। यह प्रगतिषील सोच का प्रतिनिधित्व करती है। कहानी ’विस्थापित’ दिल को छू जाती ह,ै विकास के नाम पर मनुष्य ही नहीं अपितु वृक्षों पक्षियों के विस्थापन के दर्द का अहसास होता है।
कहानी ’बस शान्ति बची रहे’ ,नियंत्रण रेखा पर शतरंज सहित कहानी-संग्रह की समस्त कहानियाँ बेहद खूबसूरत और संदेष देने वाली हैं । लेखक ने कहानियों के माध्यम से समाज की सोच में बदलाव लाने का प्रयास किया है, वह प्रषंसनीय है ।कहानी-संग्रह ’ वो मिले फेसबुक पर ’ की भाशा सरल तो है ही, वाक्यों की रचना भी काफी सषक्त है, जो अपनी बात कहने का पूरा दमखम रखते हैं ।

मस्तिश्क के प्रत्येक खांचे में जुपिन्द्रजीत सिंह जी की एक-एक कहानी इस प्रकार समा जाती है, जैसा कि उस पात्र को अपने आस-पास या बिल्कुल करीब से देखा हो, यह उनकी कहानियों की सबसे बड़ी विषेशता है । अंत में इतना ही कहना चाहूँगा कहानी-संग्रह ’वो मिले फेसबुक पर’ पाठको कों एक बार अपनी ’सोच’ को सोचने को विवश जरूर करेगा ।

पुस्तक-वो मिले फेसबुक पर,
लेखक- जुपिन्द्रजीत सिंह
प्रकाषक- षतरंग प्रकाषन, एस-43 विकासदीप,स्टेशन रोड, लखनऊ-226001
मूल्यः 350/-
समीक्षक- सुरेन्द्र अग्निहोत्री
ए-305, ओ.सी.आर. बिल्डिंग,
विधानसभा मार्ग, लखनऊ-228001
मो0ः 9415508695

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