बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न बनवारी लाल जोशी “छैला”

(47 वीं पुण्य तिथि 5 सितम्बर पर विशेष )

बनवारी लाल जोशी “छैला” बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न थे। पत्रकार के साथ—साथ, ​कवि,नाटककार और अभिनेता थे। यूं कहा जाय अंग जनपद की साहित्यिक, सांस्कृतिक बगिया के एक सुरभित पुष्प थे। तभी तो उनके गुजरने के 46 साल बाद भी अंग जन पद के ​लोगों के दिलों में रचे बसे हैं और लोग उन्हें स्मरण करते हैं। सादगी पसंद एवं गंभीर व्यक्तित्व के धनी होते हुए भी निराभिमानी,सरल और मिलनसार व्यक्ति थे।खुशमिजाजी उनके व्यक्तित्व से झलकती थी। बात करते तो सामने वाला मोहित हो जाता। अपने से छोटा हो या बड़ा। सम्मान वे सबको बराबर देते थे। देश और समाज की स्थिति का चिंतन करना और उसे विभिन्न माध्यमों से अभिव्यक्त करना उनका काम था। यह माध्यम होता था—पत्रिका, नाटक, कविता और व्यंग्य।
बनवारी लाल जोशी “छैला” 1978 में गोलोकवासी हुए, मात्र 52 साल की उम्र में। वे होते तो 98 वर्ष की उम्र के होते।
“बड़े शौक से सुन रहा था जमाना, तुम ही सो गए दास्तां कहते-कहते”
स्मृतियों के आकाश में कुछ चित्र उभर रहे हैं। इनके एक रिश्तेदार थे श्यामसुंदर जोशी, जो मेरे पिता स्व योगीराज ​हरिदेव प्रसाद ठाकुर के मित्र थे और आल ​इंडिया स्माल एंड मिडियम न्यूज पेपरर्स फेडरेशन के अध्यक्ष थे। उन्हीं के साथ वे यदा कदा मिलने आते थे​। पिता जी, बनवारी लाल जोशी जी कह कर संबोधित करते थे​। पूछने पर कहते बहुत बडे़ प्रेस रिपोटर हैं। इनके कामों को थोड़ा बहुत समझता ​था। बाद में स्कूली जीवन से कालेज की पढ़ाई और फिर पत्रकारिता में प्रवेश के बाद बहुत कुछ चीजों को समझने का अवसर मिला। बिहार की पत्रकारिता के स्तंभ कहे जानेवाले अवधेश कुमार मिश्र से परिचय हुआ वे भागलपुर के लालूचक मुहल्ले के रहनेवाले थे। उनके भतीजे विनोद कुमार मिश्र दैनिक हिन्दुस्तान के प्रधान संपादक थे। अवधेश बाबू की खासियत यह थी — वह अतीत और वर्तमान दोने से अपने नई पीढ़ी को अवगत कराते। उन्होंने महेश नारायण, सत्येन्द्र नारायण अग्रवाल, बनवारी लाल जोशी के संदर्भ को विस्तार दिया। पत्रकारिता के सफर के दौरान बहुत कुछ देखने और समझने का अवसर मिला। अखबारी मालिक, प्रकाशक को यशस्वी पत्रकार के रूप में प्रतिष्ठि​त पत्रकार के रूप में प्रतिष्ठापित किए जाने का खेल भी देखने को मिला। खैर लोग कुछ भी कर लोग समझते हैं। संकट है कि पत्रकारों की नई नस्ल को पुरखे पत्रकारों के योगदान से परिचय करना जरूरी है। भागलपुर के चर्चित पत्रकार मुकटधारी अग्रवाल ने अपने सस्मरणत्मक पुस्तक में कई जगह आदरपूर्वक अपने दौर के और पूर्ववर्ती पत्रकारों की चर्चा की है, उनमें बनवारी लाल जोशी “छैला” जी का जिक्र है।
पत्रकारिता में वे जितने सजग रहे, व्यवहार में वे उतने ही सहज, सरल और सौम्य थे,यह विलक्षण संयोग ही उन्हें विशिष्ट बनाता है। अं​हकार से कोसो दूर और गरिमा से भरपूर थे। उनके सामाजिक सरोकार और व्यक्तित्व की विलक्षणता की चर्चा साढ़े चार दशक से ज्यादा बाद भी लोग चर्चा करें वह निश्चित तौर पर शख्स नहीं शख्शियत थे।
वे स्थापित पत्रकार के साथ गीतकार, कवि, रंगमंच के नाटककार, व्यंग्यकार जैसी अनेक विधाओं के धनी छैला जी को बिहार ही नहीं देश के दूसरे हिस्सों में भी याद किया जाता है। दिल्ली के मावलंकर हाल के मंच से जब उन्होंने ” पिता अठारह बच्चों का हूं——–।” व्यंग्य कविता का पाठ किया तो तालियों की गड़गड़ाहट से हाल गूंज उठा था । उनकी कविता की तारीफ में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर और बाल कवि बैरागी ने माला पहनाकर उनका अभिनंदन किया था। यह गर्व की बात थी। उनकी कविताएं नौजवानों में उत्साह जगाने वाली थीं।
महावीर जयंती पर उनके द्वारा रचित और निर्देशित नाटक ‘धणी लुगाई’ और ‘इंसान की आवाज’को लोग आज भी नहीं भूल पाए है। बल्कि दिगम्बर जैन मंदिर में आज भी उनके लिखे गीत बतौर भगवान महाबीर की आरती के तौर पर गाई जाती है। राधाकृष्ण सहाय के निर्देशन में सीएमएस स्कूल के मैदान में खेला गया नाटक ” वो कौन ” के सहायक निदेशक छैला जी ही थे।
जिनने देखा है उनमें कोलकता बस चुके रामगोपाल शर्मा याद कर बताते है कि इंसान की आवाज नाटक के निर्देशन के दौरान नायक धर्मचंद जैन और खलनायक जीवनमल शर्मा को एक सीन समझा रहे थे। यकायक रिहर्सल देखनेवाले चौंक गए। जब छैला जी ने एकदम अपने तेवर से अलग अंदाज में संवाद पढा। सभी हतप्रभ थे कि इतना नाजुक मिजाजी आदमी और उसके ऐसे तेवर–। वे वाकई खुश मिजाज और जिंदा दिल इंसान थे। जिनका जीवन उतार-चढ़ाव से ओत-प्रोत था। लेकिन उनके संघर्ष में एक रवानगी थी। वे रसिया थे गीतों का, लोक संस्कति का, नाटकों का। उतना ही वे सामाजिक थे।
सामाजिकता ऐसी कि किसी की बेटी की शादी हो या किसी का श्राद्ध वे हमेशा उनके लिए अपने बूते के मुताबिक सहारा ही नहीं लगाते बल्कि खड़े रहते। बनवारी लाल जोशी उस वक्त के स्थापित पत्रकार थे। जब गिने चुने लोग इस पेशे को अपनाते थे। उन्होंने नवराष्ट्र, वीर अर्जुन , विश्व बंधु, विश्वमित्र, सन्मार्ग और नवभारत टाइम्स सरीखे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय अखबारों में काम किया। सन्मार्ग और नवभारत टाइम्स से तो अंत तक जुड़े रहे। उस वक्त की पत्रकारिता सबसे ज्यादा संघर्षशील थी। और जोखिम से भरी थी। न साधन न सुविधा। फिर भी लेखनी की इज्जत असीम थी। जिसे पैसों से तौलना संभव नहीं था। वे देश और समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा से पत्रकारिता में आए थे।उनके जीवन का लक्ष्य पत्रकारिता के माध्यम से पैसे कमाना नहीं,बल्कि राष्ट्र निर्माण था।परिवार को पालने के लिए वे एक पालने की तरह बिछे रहते थे।धनाढ्य तो नहीं थे। पर मन कुबेर के खजाने से कम नहीं था। बेटियां हो या बेटे उन्हें जेब खर्च के नाम पर संस्कार बांटे। जो आज फलीभूत हो रहे है।
उनकी कीर्ति ,रोचक बातें ,उनके गीत आज भी हमारे कानों में गूंज रही है। दिगम्बर जैन मंदिर के क्षेत्रीय सचिव सुनील जैन कहते है कि हमने संस्कार ही छैला जी से ही सीखा है। उन्हें मेरा उनकी पुण्य तिथि पर शत-शत नमन ।

कुमार कृष्णन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

व्यक्तित्व

पंडित सुंदरलाल: ‘भारत में अंग्रेजी राज’ की पोल खोलने वाले क्रांतिकारी लेखक

  -राजगोपाल सिंह वर्मा   ‘भारत में अंग्रेजी राज’ पंडित सुंदरलाल का लिखा आक्रांता शासन की पोल खोलने वाला वह पहला प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है, जिसके 18 मार्च सन 1938 को प्रकाशित होते ही ब्रिटिश सरकार सकते में आ गई थी। इसका पहला संस्करण 2000 प्रतियों का था, जिसकी 1700 प्रतियां तीन दिन के […]

Read More
व्यक्तित्व

साहित्य के दैदीप्यमान नक्षत्र : राशदादा राश भारतीय साहित्य के दैदीप्यमान नक्षत्र ,जीना चाहता हूं मरने के बाद फाउंडेशन एक भारत के संस्थापक _चेयरमैन अंतर्राष्ट्रीय प्रख्यात साहित्यकार राशदादा राश का नाम दुनिया में गुंजायमान है । इनका जन्म आरा (बिहार) में 15 दिसंबर ,1952 को हुआ था। इनका मूल नाम रासबिहारी सहाय है ।ये राशदादा […]

Read More
व्यक्तित्व

पत्रकारिता के आधार स्तंभ : विश्वनाथ शुक्ल ‘चंचल‘

  भारतीय साहित्य एवं पत्रकारिता को आभामंडित कर ज्ञान की ज्योति जलाने में कामयाब साहित्यकार थे -विश्वनाथ शुक्ल चंचल। इनसे पाठकगण प्रभावित होकर ज्ञानार्जन और मनोरंजन प्राप्त करते थे ।चंचल जी का जन्म 20 जून ,1936 में हाजीगंज ,पटना सिटी में हुआ था। इनके पिता का नाम श्रीनाथ शुक्ल था। विश्वनाथ शुक्ल ‘चंचल’ की शिक्षा […]

Read More