हार की दलदल से जीत के शिखर तक

-उमेश कुमार प्रजापति ‘अलख’

 

अँधेरा… ड्रेसिंग रूम में सिर्फ़ ज़ोर से आती साँसों की आवाज़ें थीं। बाहर इंदौर स्टेडियम की लाइटें बुझ चुकी थीं। 19 अक्टूबर 2025 को इंग्लैंड से मिली दर्दनाक हार के बाद की यह ख़ामोशी, हार से कहीं ज़्यादा भयानक थी। भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान, हरमनप्रीत कौर, अपनी कुर्सी पर बैठी थीं, सिर झुकाए हुए। उनकी आँखों में आँसू नहीं थे, बल्कि पत्थर की कठोरता थी—जो अक्सर बहुत बड़े दर्द को छुपाती है। टूर्नामेंट 30 सितंबर को शुरू हुआ था, और एक सप्ताह पहले तक इस टीम को सबसे बड़ा दावेदार माना जा रहा था। मगर अब? दक्षिण अफ्रीका (हार 9 अक्टूबर को), ऑस्ट्रेलिया (हार 12 अक्टूबर को) और अंत में इंग्लैंड के सामने लगातार घुटने टेकना… यह हार नहीं थी, यह आत्म-समर्पण था। टीम लगभग टूर्नामेंट से बाहर हो चुकी थी। तभी, दरवाज़ा खुला। अंदर आए कोच अमोल मुज़ुमदार। उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था, न गुस्सा, न दया। उन्होंने धीरे से दरवाज़ा बंद किया और उसकी कुंडी लगा दी। कमरे में तनाव की हवा इतनी घनी हो गई कि उसे चाकू से काटा जा सकता था। अगले पल जो होने वाला था, वह इस भारतीय महिला क्रिकेट टीम का सबसे बड़ा रहस्य बनने वाला था…

मुज़ुमदार ने अपनी आवाज़ इतनी धीमी रखी कि दीवारों के कान भी उसे सुन न सकें। उन्होंने सीधे हरमनप्रीत की तरफ़ देखा और एक वाक्य कहा जो गोली की तरह लगा: “बस… अब और नहीं।” कोई चिल्लाना नहीं, कोई भाषण नहीं। सिर्फ़ वो चार शब्द। उनकी आवाज़ में गहराई थी, एक अजीब-सा ठंडापन था जो गर्मी से ज़्यादा डरावना था। शैफाली वर्मा ने आँखें ऊपर उठाईं। यह कोई साधारण डाँट नहीं थी। यह एक अंतिम चेतावनी थी। मुज़ुमदार ने धीरे-धीरे हर खिलाड़ी के पास जाकर कहा कि “तुम वही ग़लती फिर दोहरा रही हो… और अब इसका परिणाम बहुत बुरा होगा।” दीप्ति शर्मा को लग रहा था कि वे किसी जाल में फँस गई हैं, जहाँ हार का मतलब सिर्फ़ टूर्नामेंट से बाहर होना नहीं है, बल्कि कुछ और गहरा है। मुज़ुमदार ने अंतिम बात कही, “याद रखो, तुम बार-बार एक ही लकीर पार नहीं कर सकती। अब तुम्हें यह लकीर पार करनी होगी।” 20 अक्टूबर की सुबह दरवाज़ा खुला। कोच निकल गए। अंदर बैठी भारतीय महिला क्रिकेट टीम बदल चुकी थी। उनके चेहरों पर थकान नहीं थी, बल्कि एक दृढ़ प्रतिज्ञा थी। सवाल यह था—कोच ने उस रात उन्हें डाँटा था, या कोई ख़ुफ़िया ज़िम्मेदारी सौंपी थी?

उस अँधेरी रात (19 अक्टूबर) के बाद, भारतीय महिला क्रिकेट टीम का व्यवहार अजीब हो गया। वे कम बात करती थीं, लेकिन एक-दूसरे को घूरकर देखती थीं—जैसे कोई ख़ुफ़िया कोड पास कर रही हों। ट्रेनिंग में पागलपन था। अब उनका अगला मुक़ाबला न्यूजीलैंड से था—जो उनके लिए टूर्नामेंट में बने रहने का आख़िरी मौका था। तारीख थी 23 अक्टूबर 2025, और जगह थी नवी मुंबई का डीवाई पाटिल स्टेडियम। मीडिया इसे ‘वर्चुअल क्वार्टर फाइनल’ कह रहा था, पर टीम इसे ‘लकीर पार करने का पहला क़दम’ मान रही थी। क्रीज़ पर आने वाली हर खिलाड़ी, हर बार आउट होने से पहले आकाश की ओर देखती, जैसे किसी को इशारा कर रही हो। दीप्ति शर्मा, जिन्हें अपनी फॉर्म को लेकर सबसे ज़्यादा प्रेशर था, उन्होंने अपनी गेंदबाज़ी में अचानक एक धार दिखा दी। न्यूजीलैंड को बड़े अंतर से कुचला गया। मैच के बाद, हरमनप्रीत ने केवल इतना कहा, “हमने वो लकीर पार कर दी है।” यह वाक्य किस लकीर की बात कर रहा था? क्या यह सिर्फ़ जीत की मानसिक सीमा थी, या 19 अक्टूबर की रात कोई वास्तविक कोडवर्ड दिया गया था?

असली परीक्षा अब आया—सेमीफाइनल। तारीख थी 30 अक्टूबर 2025। सामने थी ऑस्ट्रेलिया, जो भारतीय महिला क्रिकेट टीम के लिए हमेशा एक डरावना भूत रही है। यह मैच सिर्फ़ एक खेल नहीं था; यह पुरानी हार के ज़ख्मों का हिसाब था। मैच से पहले, भारतीय ड्रेसिंग रूम में अमोल मुज़ुमदार नहीं थे। हरमनप्रीत ने खुद दरवाज़ा बंद किया। उन्होंने जेमिमा रोड्रिग्स और दीप्ति शर्मा को अपने पास बुलाया। उन्होंने सिर्फ़ तीन शब्द फुसफुसाए: “याद है न?” जेमिमा रोड्रिग्स ने सिर हिलाया। वह मैदान पर उतरीं, और मानो किसी और दुनिया की खिलाड़ी बन गईं। उनके बल्ले से निकले शॉट्स में ताक़त नहीं, बल्कि अँधेरा गुस्सा था। ऑस्ट्रेलिया की सबसे धाकड़ गेंदबाज़ों को जेमिमा रोड्रिग्स और कप्तान हरमनप्रीत कौर ने ऐसे धोया जैसे कोई पुराना बदला ले रही हों। दीप्ति ने अपनी कला से ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ी को ऐसे बाँधा कि वे खुल ही नहीं पाए। ऑस्ट्रेलिया ढह गई। भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने अविश्वसनीय जीत हासिल की। मुक़ाबला जीतने के बाद, हरमनप्रीत ने मीडिया से बात नहीं की। वह बस अपनी टीम को देखती रहीं। उनकी आँखों में अब डर नहीं, बल्कि एक गहरे मिशन के पूरा होने की संतुष्टि थी। क्या उन्होंने सचमुच 30 अक्टूबर को उस ‘भूत’ को मिटा दिया था?

फाइनल की रात। पूरा देश साँसें थामे बैठा था। तारीख: 2 नवंबर 2025, जगह: नवी मुंबई का डीवाई पाटिल स्टेडियम। सामने थी दक्षिण अफ्रीका, जिसने ग्रुप स्टेज में (9 अक्टूबर) भारत को हराया था। यह मुक़ाबला बदले का था, मगर यह आसान नहीं होने वाला था। टॉस का सिक्का उछला। भारत ने बल्लेबाज़ी चुनी। शैफाली और दीप्ति ने शुरुआत तो ज़बरदस्त की, मगर बीच के ओवरों में दक्षिण अफ्रीका ने ज़बरदस्त वापसी की। विकेटों का पतन शुरू हुआ। तनाव इतना बढ़ गया कि हरमनप्रीत की धड़कन बाहर सुनाई दे रही थी। 15 ओवर तक स्कोर डगमगा रहा था। लग रहा था कि वह पुरानी कहानी फिर दोहराई जाएगी—करीब आकर हार जाना। तभी, हरमनप्रीत ने अपनी बल्लेबाज़ी पार्टनर को शांत इशारा किया। उन्होंने अपनी कलाई पर बंधे काले धागे को देखा। यह शायद मुज़ुमदार की ‘उस रात’ का कोई संकेत था। इसके बाद, हरमनप्रीत ने ख़ुद को बदल लिया। वह रक्षात्मक से आक्रामक हो गईं। उनका हर शॉट एक ऐलान था। उन्होंने टीम को एक मज़बूत स्कोर तक पहुँचाया, मगर यह काफ़ी नहीं था। असली परीक्षा तो अब शुरू होनी थी…

दक्षिण अफ्रीका की बल्लेबाज़ी शुरू हुई। वे आत्मविश्वास से भरी थीं। भारतीय गेंदबाज़ों पर दबाव बन रहा था। 10 ओवर में स्कोर बिना किसी नुकसान के 60 रन! भारत के समर्थक फिर से मायूस होने लगे। क्या मुज़ुमदार का ‘जादू’ ख़त्म हो गया था? तभी, हरमनप्रीत ने गेंद दीप्ति शर्मा को दी। दीप्ति आईं और उन्होंने शुरुआत धीमी की। फिर उन्होंने गेंदबाज़ी में अचानक तेज़ी लाई। उनकी फिरकी से गेंदें अजीब तरह से मुड़ने लगीं। एक ओवर में दो विकेट! फिर अगले ओवर में एक और विकेट! दक्षिण अफ्रीका की टीम अचानक बिखरने लगी। दीप्ति की हर गेंद एक रहस्य थी। वह सिर्फ़ गेंदबाज़ी नहीं कर रही थीं, वह कोई गुप्त मिशन पूरा कर रही थीं। जब दक्षिण अफ्रीका की टीम ताश के पत्तों की तरह ढह गई, और भारत 52 रनों से जीत गया, तो हरमनप्रीत कौर ने पहली बार ख़ुल कर हँसा। उनसे पूछा गया, “कोच ने उस रात (19 अक्टूबर) क्या कहा था?” हरमनप्रीत ने धीरे से जवाब दिया, “उन्होंने कहा था कि तुम इतने सालों से सिर्फ़ अच्छा खेल रही हो, अब तुम्हें नामुमकिन को सच करना होगा। उन्होंने हमें एक ही लक्ष्य दिया था: जीतना नहीं, बल्कि वह इतिहास बनाना जो कोई और सोच भी न सके।”

यह जीत सिर्फ़ 2 नवंबर 2025 का कप नहीं था, यह 19 अक्टूबर की रात का बदला था, जब भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने डर को ताक़त में बदल दिया था। यह जीत हरमनप्रीत की कठोरता, शैफाली की बेपरवाही, और दीप्ति के रहस्यमय प्रदर्शन का परिणाम थी। कोच अमोल मुज़ुमदार ने उस रात शब्दों का नहीं, बल्कि मनोविज्ञान का इस्तेमाल किया था। उन्होंने उन्हें आँकड़ों से नहीं, बल्कि आत्म-सम्मान की आग से जगाया था। उन्होंने टीम को ‘लकीर’ दी थी-वह अदृश्य लकीर जो ‘करीब आकर हारने’ और ‘इतिहास रचने’ के बीच की होती है। भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने साबित कर दिया कि जब नारी-शक्ति प्रतिज्ञा लेती है, तो दुनिया की कोई ताक़त उसे रोक नहीं सकती। यह कहानी आज पर्दे पर उतरने के लिए तैयार है- एक ऐसी थ्रिलर जो जीत से पहले सवाल उठाती है, और अंत में तालियाँ बजवाती है। भारतीय महिला क्रिकेट का नया अध्याय लिख दिया गया था… और यह अध्याय अँधेरे से शुरू होकर रोशनी में ख़त्म हुआ था।

 

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