कहानी
बंजर धरती
- editor
- October 8, 2023
डॉ अशोक रस्तोगी मेले में लगी दुकानों का अवलोकन करते, दुकानदारों से वस्तुओं का मोलभाव करते,कंधे टकराती भीड़ के मध्य संभल-संभलकर चलते दिव्यांशी कब अपने भैया-भाभी से बिछड़ गई कुछ पता नहीं चल पाया? उन्हें ढूंढती-खोजती वह दुकानों के मध्य बने लंबे गलियारे को पार करती हुई खुले स्थान में पहुंची तो विद्युत चालित […]
Read Moreमुझे फोन कर देना
- editor
- July 29, 2023
प्रवासी पंजाबी कहानी मूल – रविंदर सिंह सोढी अनु – प्रो. नव संगीत सिंह शिफाली ने मोबाइल का अलार्म बंद कर दिया। शनिवार का का दिन था, इसीलिए वह देरी से उठी। कोरोना के कारण जब से उसने घर से आॅफिस का काम करना शुरू किया था, तब से वह सुबह देर से ही […]
Read Moreमौन
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- April 1, 2023
अमन कुमार बूढ़ा मोहन अब स्वयं को परेशान अनुभव कर रहा था। अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाना अब उसके लिए भारी पड़ रहा था। परिवार के अन्य कमाऊ सदस्य अपने मुखिया मोहन की अवहेलना करने लगे थे। मोहन की विधवा भाभी परिवार के सदस्यों की लगाम अपने हाथों में थामे थी। वह बड़ी चालाक थी। […]
Read Moreवैशाली
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- April 1, 2023
अर्चना राज़ तुम अर्चना ही हो न ? ये सवाल कोई मुझसे पूछ रहा था जब मै अपने ही शहर में कपडो की एक दूकान में कपडे ले रही थी, मै चौंक उठी थी ….आमतौर पर कोई मुझे इस बेबाकी से इस शहर में नहीं बुलाता क्योंकि एक लंबा अरसा गुजारने के बाद […]
Read Moreकोख़ में हत्या
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- April 1, 2023
अमन कुमार त्यागी सुधा को मुहल्ले भर के सभी बच्चे, जवान और बूढ़े जानते थे। सभी सुधा से बेहद लगाव रखते। सुधा भी तो सभी के दुःख दर्द में शरीक़ होती। वह कहती -दुःख बाँटना आत्मसंतुष्टि का परिचायक है।’ सौम्य, सुंदर, सुशील सुधा ने भले ही मायके में अमीरी के दिन देखे हों मगर ससुराल […]
Read Moreबस एक फ़ोन
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- September 19, 2022
-प्रगति गुप्ता “पूर्वा!दो तीन दिन से तेरे बारे में सोच रही थी बेटा।सोचा तुझे फ़ोन ही कर लूँ।आजकल मैं जयपुर आई हुई हूँ। तेरे अंकल की तबीयत कुछ ज्यादा खराब हो गई थी। तुम, विजय और बच्चे सब सकुशल तो हो ना बेटा। बहुत दिनों से कोई बातचीत भी नहीं हुई..कोई खास वज़हतो नहीं।”… सुदर्शना […]
Read Moreमंजिलें ! और भी हैं ….।
- editor
- September 19, 2022
इस जिंदगी का भी ,कुछ पता नहीं है ..ना जाने ! कब किस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दे…इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। जिंदगी में जब सब कुछ अच्छा चल रहा होता है, तभी अचानक एक झटका सा लगता है… और सारे समीकरण गड़बड़ा जाते हैं ,और आदमी […]
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