भागलपुर जिला (बिहार) के कहलगांव अनुमंडल में विक्रमशिला बौद्ध महाविहार के निकट गंगातट पर स्थित बटेश्वर स्थान की प्रसिद्धि न सिर्फ अंगदेश बल्कि बिहार के एक महत्वपूर्ण शैवस्थल के रूप में रही है। यहाँ बटेश्वर पहाड़ी पर शिवस्वरूप बाबा बटेश्वर का मंदिर स्थित है जिनके प्रति लोगों की अगाध आस्था है।
हमने पाया है कि सभी देवस्थलों पर शिव मंदिर के सामने पार्वती माता का मंदिर होता है पर बटेश्वर स्थान में शिव मंदिर के ठीक सामने देवी काली का मंदिर है। इस कारण बटेश्वर की मान्यता शैवस्थल के साथ एक तंत्र-पीठ के रूप में भी है। गुप्त काशी के नाम से प्रसिद्ध कहलगांव का बटेश्वर स्थान प्राचीनकाल में तंत्र विद्या का बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता था। दूर-दूर से लोग यहां तंत्र विद्या की सिद्धि प्राप्त करने के लिये आते थे। बटेश्वर की महत्ता ऋषि-मुनियों व साधकों की तपोस्थली होने को लेकर भी है। 84 सिद्धों की परम्परा के महत्वपूर्ण अध्याय यहाँ से जुड़े रहे हैं। बटेश्वर की महत्ता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि विक्रमशिला बौद्ध महाविहार के संस्थापक पाल-वंशीय राजा धर्मपाल ने यहाँ की प्राकृतिक सुषमा व स्थलीय विशिष्टताओं को देखकर ही इसके निकट विक्रमशिला विहार बनाने का निर्णय लिया था। माना जाता है कि विक्रमशिला विश्वविद्यालय में तंत्र विद्या की भी पढ़ाई होती थी।
न सिर्फ धर्म एवं आध्यात्म, वरन् पुरातात्विक दृष्टि से भी से भी बटेश्वर की महत्ता रही है। बटेश्वर के शिलाखंडों पर उत्कीर्ण प्राचीन मूर्तियों की चर्चा कनिंघम, फ्रांसिस बुकानन, एन एल डे, डॉ. डीआर पाटिल सरीखे विद्वानों ने की है। बटेश्वर के बारे में पुराविदों का मत है कि यहाँ सेन राजाओं का जय स्कंधावर स्थित था। बटेश्वर पहाड़ी के आसपास पूर्व से कई प्राचीन शिवलिंग उत्कीर्ण हैं और यहाँ समय-समय निर्माण हेतु की जानेवाली खुदाईयों के दौरान प्राचीन शिवलिंग मिलते रहे हैं जो इस स्थल को एक प्रमुख शैवस्थल होने की बात को प्रमाणित करता रहा है। जाने-माने इतिहासकार और सूचना जनसंपर्क के पूर्व उपनिदेशक शिव शंकर परिजात ने इन खुदाईयों और शोध के आधार पर लिखी अपनी किताब में बटेश्वर स्थान की समृद्ध प्राचीन परम्पराओ और इसके प्राचीन शैवस्थल होने का जिक्र किया है।
बटेश्वर शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि ये वशिष्ठ मुनि द्वारा स्थापित हैं जिसके कारण ये वशिष्ठेश्वर नाथ महादेव कहलाये जो कालक्रम में आज बटेश्वर नाथ के नाम से जाने जाते हैं। मान्यता है कि यहां काशी नगर को बसाया जाना था लेकिन एक जौ बराबर (थोड़ी) जगह कम पड़ने के कारण काशी को बनारस जाना पड़ा।
इसको लेकर एक कथा प्रचलित है। कहते हैं की पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती का विवाह महादेव से हुआ और दोनों कैलाश में बास करने लगे किन्तु सती को कैलाश में रहना अच्छा नहीं लगता था क्योंकि कैलाश पर्वतराज हिमालय के क्षेत्र में हीं पड़ता था। महादेव को इस बात का भान हुआ और उन्होंने देवी पार्वती की इच्छा को पूरा करने की सोची। इसके लिए कैलाश के बराबर ही भूमि के टुकड़े की आवश्यकता थी साथ ही यह शर्त यह रखी गई कि पूरा भूखंड गंगा के किनारे स्थित हो जहां गंगा उत्तरवाहिनी बह रही हो। देवर्षि नारद और देव शिल्पी विश्वकर्मा ने ऐसे क्षेत्र की खोज शुरू की और बिहार के कहलगांव स्थित बटेश्वर स्थान की जमीन इसके लिए सटीक बैठी। ऐसी एक और भूमि झारखंड के देवघर में चिताभूमि की भी मिली लेकिन यहां शक्ति पीठ होने के कारण यह जगह निवास के लिए सही नहीं माना गया। अब बचा कहलगांव के समीप स्थित बटेश्वर स्थान लेकिन यहां भी एक कमी रह गई। यह भूमि कैलाश की माप से जौ भर कम रह गई। इसके बाद उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी की स्थापना की गई । इस क्षेत्र को पुराणों में गुप्त काशी की भी संज्ञा दी गई है। यहां गंगा महादेव को पखारने के लिए 40 किलोमीटर उत्तरवाहिनी बहती है। यह अद्भुत नजारा देखने के लायक है। पहाड़ है, जंगल है और श्मशान घाट भी। पुरातनकाल में यहाँ भव्य रूप से ‘वर्षावर्द्धन समारोह’ का आयोजन होता था जिसमें शिवलिंग पर जल की वर्षा की जाती थी।
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी सावन में बटेश्वर धाम में केंद्रीय रेलवे रेल यात्री संघ एवं रामायण रिसर्च काउंसिल के तत्वाधान में बटेश्वर महोत्सव आयोजन किया जा रहा है जिसके तहत नित्य प्रतिदिन गंगा महा आरती एवं अखंड संकीर्तन जारी है। हजारों की संख्या में भोले के भक्त झारखंड और बिहार ही नहीं अन्य राज्यों से भी यहां पहुंच रहे हैं और उन्हें जलार्पण कर रहे हैं। केंद्रीय रेलवे रेल यात्री संघ के अध्यक्ष विष्णु खेतान ने अपील कि है कि श्रद्धालु भक्त अधिक से अधिक संख्या में पहुंचकर बाबा बटेश्वर नाथ धाम में आशीर्वाद ले और गंगा आरती में शामिल हो।
लगातार सरकारी उदासीनता का शिकार रहा बटेश्वर स्थान की सूरत और सीरत जल्द ही बदलेगी। इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के क्रम में जिला प्रशासन और पर्यटन विभाग द्वारा प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
निमिषा सिंह