अनिल शर्मा ‘अनिल’
भईया जी को अहम और वहम दोनों का ही मीनिया है। अहम इस बात का कि सोशल मीडिया किंग कहने लगे है लोग और वहम इस बात का कि इनसे अच्छा और बड़ा साहित्यकार कोई नहीं है। अपनी मस्ती में, पूरी बस्ती में भईया जी लंबा कुर्ता और चैड़ा पायजामा पहने पूरी शान से गर्वीली चाल चलते हुए शाम को एक चक्कर जरूर लगाते है। यह अलग बात है कि घर तक पंहुचते पंहुचते वह खुद चकराने लगते है। सेवानिवृत्त होने के बाद अब कक्षा की बजाए घरवालों पर ही रौब जमाने लगे हैं। भले ही बच्चे तो बच्चे अब पत्नी भी इनके रौब में नहीं आती।
तो हम बात कर रहे थे उनके अहम और वहम की, इनके चलते अक्सर घर में तनाव बना रहता है, मन और मस्तिष्क में हलचल रहती हैं। हुआ यूं था कि भईया जी ने सोशल मीडिया पर वाट्स ग्रुप बनाया और एक लंबी चैड़ी नियमों की सूची भी जारी कर दी। जितने भी नंबर थे सबको जोड़ दिया और फरमान जारी कर दिया इन नियमों का पालन जरूरी है। बस यही तो भारी बात है नियमों का पालन करना।
हम लोग तो गंदगी साफ करने को गन्दा कपड़ा ही प्रयोग करते हैं। जहां पर पेशाब न करने की अपील लिखी हो उसे पढ़कर पेशाब की तलब लग ही जाती है और फिर तो वहीं स्थान, तुरंत मूत्रदान। तो इसी प्रवृत्ति के चलते भईया जी का ग्रुप अनचाही अनामंत्रित पोस्ट का केन्द्र बन गया। किसे फुर्सत उनकी पोस्ट पढ़े लोग अपनी ही नहीं पढ़ते। इस सबसे भईया जी टेंशन में आ गये और घोषणा कर डाली ऐसे सभी मित्र रिमूव किए जा रहे हैं जो मनमानी अपना रहे है। इस रौब का भला किस पर असर पड़ता।
भईया जी परेशान कि किसी ने उनकी बात न मानी खैर कुछ दिन बात एक ग्रुप फिर बनाया जिसमें चुनिंदा यस मैन-यस वुमैन को जोड़ लिया। मैं एडमिन हूं इस ग्रुप का, यह बात रोज बिना नागा सुबह ही ग्रुप में प्रचारित कर अपने अहम को पुष्ट करते। चार छह पंक्तियों को लिखकर ग्रुप में पोस्ट करते और प्रतिक्रियाएं आने का इंतजार करते।कोई प्रतिक्रिया दे देता तो टेंशन और न देता तो टेंशन। अपनी उल्टी सीधी बात को तो अभिनव प्रयोग कहकर स्व महिमामंडन का रिकार्ड बजाते और दूसरे के अभिनव प्रयोग को भी पिष्टपेषण कहते।
ई-पत्रिकाओं और ई-सम्मान पत्रों के चलन पर अक्सर कटाक्ष करने वाले भईया जी स्वयं की फेसबुक वाल पर स्वयं को प्राप्त ऐसे सम्मान पत्र पोस्ट करते रहते हैं लेकिन किसी और के सम्मान पत्र को देखकर कटाक्ष करने में कोताही नहीं बरतते भईया जी।
सोशल मीडिया प्रयोग से जलन, ईर्ष्या, डाह जैसी मानसिक बीमारी ने कब आ दबोचा, भईया जी की समझ में न आया।
भाभीजी भी कहने लगीं, न जाने क्या हुआ इनको जरा जरा सी बात पर टेंशन लेते हैं। रात को नींद नहीं लेते साहित्य साधना करते हैं। जवानी तो गोष्ठियां और कवि सम्मेलनों में गुजार दी और अब बुढ़ापा वाट्स एप में लगा रहे है।
इनके अहम, वहम के चक्कर में,
शांति नहीं रहती घर में।
एक दिन तो कमाल हो गया भईया जी ने अपने ग्रुप में कोई दुखद समाचार डाल दिया। दुखद, ओम् शांति के संदेश आने लगे। इस सबके बीच किसी यसमैन ने बिना मूल मैसेज पढ़े, ओम् शांति वाला प्रतिक्रियात्मक संदेश पढ़कर लंबी सी श्रद्धांजलि प्रेषित कर दी। अब तो ग्रुप में श्रद्धांजलि के साथ-साथ संस्मरण वाले संदेश भी आ गये।
अति तो तब हुई जब एक यस वुमैन ने भाभीजी को फोन करके पूछा, सुबह उठावनी किस समय होनी है?
भईया जी का सोशल मीडिया प्रेम जगजाहिर है, कोई पोस्ट बिना प्रतिक्रिया के नहीं छोड़ते। लाइक संग कमेंट जरूर करते हैं। उस दिन तो हद हो गयी, जब एक नोट समाचार पर कमेंट कर दिया हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई। कारण किसी की पोस्ट पढ़ने का समय ही नहीं बस हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई दनादन टिप्पणी देनी हैं। इस सबके चलते उनको कई बार रिश्तेदारों व सोशल मीडिया मित्रों ने खूब खरी खोटी सुनाई। सोशल मीडिया पर सक्रियता ने उनको असामाजिक होने का तमगा दिला दिया। इस पर भी अहम वहम में कोई कमी नहीं।
मित्र ग्रुप छोड़ चुके सब कट गये तो भईया जी ने फेसबुक पर पेज बनाया। एक और दूसरा मोबाइल लिया है अब दो मोबाइल रखते हैं पास में। एक से पोस्ट करते हैं और दूसरे से उस पोस्ट पर लाइक, कमेंट करते हैं। फिर इस फोन से पोस्ट करते हैं और उस फोन से लाइक कमेंट करते हैं। एक विशेष बात और दूसरा फोन भाभीजी के नाम से खुद ही चला रहे हैं। भईया जी की बात निराली है, भाभीजी सोचती है बीमारी है सोशल मीडिया पर भईया जी कीऔ सक्रियता जारी है।