कुमार कृष्णन
विश्व योग पीठ के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा है कि वर्तमान मे मानव जीवन की सबसे मूल आवश्यकता है— स्वास्थ्य,शांति और सामंजस्य। इसे बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है। नये — नये रोग जन्म ले रहें हैं। बच्चे तक इसका शिकार हो रहे हैं। वे मुंगेर दशभूजी स्थान में दो दिवसीय प्रवचन के समापन पर बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि हमारे पास अनेक पत्र आते हैं। छोटे बच्चे दिल की बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं। यह चिंतनीय विषय है। जरा सोचें किसी बच्चे के हर्ट में छेद है तो उसके परिवारवाले पर क्या गुजरता होगा। भारतीय परंपरा में योग इसका सशक्त माध्यम है।आंतरिक अंगों का जब संतुलन बिगड़ता है तो बीमारी होती हैं। योग के माध्यम से अपनी आंतरिक उर्जा से अपने को ठीक कर सकता है। शरीर गंदा होता तो स्थान कर शरीर को साफ करते है। मन परेशानी का कारण होता है। मन आवश्यक तत्व है,शारीरिक स्वास्थ्य के लिए। ध्यान और मंत्र मन को व्यवस्थित करता है। मन जव व्यवस्थित होता हे तो प्रतिभा का विस्फोट होता है।
उन्होंने कहा कि ईष्ट देव के मंत्र का जाप करना जरूरी है। नाम जप जब मंत्र के साथ मन एकाकार होता है तो मन व्यवस्थित होता है। योग में यम नियम है। यम और नियम आत्म-अनुशासनात्मक गुण हैं जो हर किसी को अपने आध्यात्मिक विकास के लिए रखने चाहिए और उनका पालन करना चाहिए। वे एक संन्यासी और आध्यात्मिक विकास चाहने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए आचार संहिता हैं। यम और नियम का एक साथ अभ्यास किए बिना किसी भी अन्य चरण का अभ्यास करना फायदेमंद नहीं होगा, क्योंकि वे आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाने वाली सीढ़ी का आधार हैं। इसकी पहली सीढ़ी मन: प्रसाद है। यह मानसिक और आंतरिक प्रसन्नता को संतुलित करने का अभ्यास है। इससे मन के मोड को बदला जा सकता है। जब हम सजग नहीं रहते हैं तो चिंता बने रहती है। चिंता एक भंवर है। मनुष्य को तनाव को दूर कर प्रसन्नता का भाव लाना चाहिए। इसके लिए चौबीस घंटे में दस मिनट का समय निकालकर ईश्वर के लिए निकालना चाहिए। यम और नियम एक स्वस्थ और संतुलित दिमाग बनाते हैं। मंत्र जाप और ध्यान से यह मुमकिन है।
उन्होंने कहा कि सन्यास पीठ नौ सूत्रों को लेकर लगातार काम र रहा है। स्वास्थ्य,शांति सामंजस्य और योग। जब हम इसे कर लेते हैं तो उसके बाद आता है सेवा,प्रेम और दान। सेवा प्रेम की अभिव्यक्ति है। सेवा के माध्यम से प्रेम की अनुभूति होती है। प्रेम मन को शांत करने का सुंदर तरीका है। सद्गगुण का एक माध्यम है। जब ये सारे गुण हम आत्मसात करते हैं तों यही गुण और हमें संस्कारित करती है और एक संस्कृति का उदय होता है। मानवता के लिए संतों के इस काम को करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2023 महत्वपूर्ण इस साल योग आंदोलन के प्रवर्तक और हमारे परमगुरू स्वामी सत्यानंद सरस्वती का जन्मशताब्दी वर्ष है। मुंगेर सहित पूरी दुनिया में स्वास्थ्य,शांति और सामंजस्य के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है। इसका मकसद आध्यात्मिक प्राप्त करना है। एक प्रसंग का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एक मेरे गुरू स्वामी सत्यानंद सरस्वती से एक पत्रकार ने प्रश्न किया कि ईश्वर दर्शन और मोक्ष संभव है? स्वामी जी ने उत्तर दिया नहीं। फिर पत्रकार ने असीम तत्व को लेकर सवाल किए। फिर स्वामी सत्यानंद जी ने जवाब दिया कि जिस प्रकार हम समुद्र के जल को पकड़ नहीं सकते,उसी प्रकार असीम तत्व को समझना जटिल है। व्यक्ति् को दिव्यता लाने के लिए आध्यात्मिक सजगता का अभ्यास करना चाहिए। अच्छाई को प्राप्त करने के लिए तप्पर रहना चाहिए। अस्सी वर्ष स्वामी सत्यानंद सरस्वती को एक योगिनी के दर्शन 18 वर्ष की उम्र में हुए थे। उसने मुलाकात के दौरान कहा कि तुम्हारे अंदर प्रकाश है, तुम्हें अपना गुरू स्वयं खोजना होगा। इसके बाद वे स्वामी शिवानंद से मिले। स्वामी शिवानंद ने कहा सेवा करों और जब वे सेवा कर परिष्कृत हुए तो गुरू ने कहा कि — ‘ जाओ सत्यानंद पूरी दुनिया को योग सिखाओ।’ वे दूरदष्टा थे और भविष्य की आवश्यकताओं को जानते थे कि आनेवाले समय में योग की आवश्यकता होगी, क्योकि स्वास्थ्य,शांति और सामंजस्य व्यक्ति की मूल आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा कि वौद्धिकता से ज्ञान प्राप्त कर सकते है। आध्यात्म की अनुभूति अनुभव से होता है। ठीक उसी तरह जिस तरह रसगुल्ले का मिठास का एहसास उसे खाए बिना नहीं हो सकता है। भगवान बुद्ध और महाबीर अपने अनुयायियों को भले ही दर्शन की दीक्षा दी,लेकिन आम लोगों की आवश्यकता को देखते हुए अहिंसा और शांति का संदेश दिया।
कार्यक्रम के आरंभ मे महामृत्युजंय मंत्र और गायत्री मंत्र का पाठ 11 बार और देवी दुर्गा के 32 नामों का पाठ तीन बार किया गया। वहीं कलाकारों द्वारा भजन प्रस्तुत किए गए
स्वास्थ्य,शांति और सामंजस्य जीवन की मूल आवश्यकता: स्वामी निरंजनानंद
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