आधुनिक काल के जगमगाते साहित्यकार: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

साहित्य जगत के आधुनिक काल के जगमगाते साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का नाम अग्रगण्य है। इन्होंने साहित्य की महती सेवा कर इसे गौरवान्वित किया है ।सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म 21 फरवरी 1899 को महिषादल रियासत (जिला मेदिनीपुर )में हुआ था। उनका वसंत पंचमी के अवसर पर जन्मदिन मनाने का श्री गणेश 1930 में हुआ ।उनके पिता पंडित राम सहाय तिवारी महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे ।निराला की शिक्षा उच्च विद्यालय तक हुई ।उन्होंने बाद में हिंदी ,संस्कृत एवं बंगाल का स्वतंत्र अध्ययन किया। जब वे 3 वर्ष की अवस्था में थे माता का तथा 20 वर्ष की अवस्था में पिता का देहावसान हो गया ।इस प्रकार अपने बच्चों के अतिरिक्त संयुक्त परिवार का बोझ उन पर आ पड़ा। उनका संपूर्ण जीवन आर्थिक संघर्ष में गुजरा। निराला के जीवन की विशेषता यह है कि वे संघर्ष से नहीं घबराये,उसका डटकर मुकाबला किया ।हिंदी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत ,महादेवी वर्मा के साथ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का भी नाम प्रमुख स्तंभ में माने जाते हैं ।सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने सर्वप्रथम नौकरी महिषादल राज्य में 1918 से1922 तक की ।उसके बाद संपादन ,स्वतंत्र लेखन तथा अनुवाद कार्य की ओर पूर्णतः तन_ मन से जुट गए। निराला ने 1922 से 1923 के दौरान कोलकाता से प्रकाशित समन्वय का संपादन कार्य किया। ये अगस्त 1923से मतवाला के संपादक मंडल में कार्य किए ।ये 1935 से 1940 तक का समय लखनऊ में बिताए ।तत्पश्चात निराला 1942 से जिंदगी की आखिरी सांस तक इलाहाबाद में रहकर स्वतंत्र लेखन एवं अनुवाद कार्य किया ।उनकी प्रथम कविता जन्मभूमि प्रभा नामक मासिक पत्र में जून 1920 में प्रकाशित हुई थी ।उनके द्वारा लिखा प्रथम कविता संग्रह 1923में अनामिका नाम से और प्रथम निबंध बंग भाषा का उच्चारण मासिक पत्रिका सरस्वती में 1920 में प्रकाशित हुआ ।
अपने समकालीन कवियों में निराला जी ने अपनी कविता में यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया है । वे हिंदी में मुक्त छंद के प्रवर्तक माने जाते हैं ।निराला जी ने स्वयं 1930 में प्रकाशित अपने काव्य संग्रह परिमल की भूमिका में लिखा है _”मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। ”
निराला जी ने कविता ,कहानी उपन्यास ,बाल साहित्य, निबंध, अनुवाद ,आलोचना आदि क्षेत्रों में लेखनी चलाई ,लेकिन पाठकवर्ग इन्हें विशेष रूप से ख्याति कवि के रूप में दिए।उनकी रचनाओं में अनामिका ,परिमल ,गीतिका, तुलसीदास ,कुकुरमुत्ता, लिली, सखी ,अप्सरा ,अलका ,प्रबंध पद्म, रामायण की अंतर्कथाएं, भक्त प्रहलाद ,महाराणा प्रताप, दुर्गेश नंदिनी ,निराला रचनावली (8 खंडों में )आदि प्रसिद्ध हैं। निराला जी इस योगदान के लिए सदैव स्मरण किए जाएंगे ।निराला जी की काव्य शैली की विशेषता हैं, वे हैं चित्रण _कौशल ।उनके चित्रों में भावबोध के अतिरिक्त उनके चिंतन भी समाहित रहते हैं।उनकी बहुत सी कविताओं में दार्शनिक गहराई परिलक्षित होती है ।इन पर अध्यात्मवाद एवं रहस्यवाद जैसी जीवन विमुख प्रवृत्तियों का भी प्रभाव पड़ा है। वे विषय को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में सफल पाए गए हैं। उनकी लेखनी में विशेष तरह के साहस तथा सहजता के दर्शन देखने को मिलते हैं। यह साहस एवं सजगता ही अलग गुण होने के कारण निराला को आधुनिक युग के कवियों में विशिष्ट स्थान प्राप्त कराया है। इन्होंने अपनी काव्य भाषा में शुद्ध खड़ी बोली का प्रयोग अधिकांशतः किया है ,जहां एक ओर संस्कृत की तत्सम शब्दों से यह दुरूह है ,वहीं मुहावरे का सुंदर प्रयोग भाषा को प्रभावशाली बना देता है ।डॉक्टर द्वारिका प्रसाद सक्सेना के शब्दों में _“कवि निराला आधुनिक हिंदी भाषा के डिक्टेटर हैं ,क्योंकि अपने भावों एवं विचारों के अनुकूल अभिव्यक्ति में सब सफल दिखाई देती है।”
निराला की कविता भिक्षुक काफी प्रसिद्धि पाई थी।यह कविता उन्हें अमर बना दिया ।इनकी रचित गीत वरदे वीणा वादिनी वर दे की ये पंक्तियां पाठकों पर छा गई थीं _ नवगति,नव लय, ताल छंद नव नवल कंठ ,नव जलद मन्द्र रव
नव नभ के नव विहग वृंद को, नव पर नव स्वर दे।
वर दे वीणा वादिनी वर दे !
इनके द्वारा लिखित कविता भारतीय वंदना की पंक्तियां हैं_ तरु _तण वन _लता वसन
अंचल में वचित सुमन
गंगा ज्योतिर्जल _कण
धवल _धार हार लगे!
निराला द्वारा लिखित कविता ध्वनि की यह पंक्तियां पाठकों को आत्म विभोर करती हैं _
हरे _हरे ये पात,
डालियां,कलियां , कोमल गात । मैं ही अपना स्वप्न _मृदुल _कर फेरूंगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर ।सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का स्वर्गवास 15 अक्टूबर 1961 को इलाहाबाद में हो गया ।ये संघर्षशील एवं प्रतिभाशाली साहित्यकार सदा_ सदा के लिए हमलोगों से बिछड़ गए ,लेकिन उनकी कृति की कीर्ति हमेशा लहराते रहेगी ।इन पर चरितार्थ होता है। किसी शायर ने ठीक ही कहा था_
” यूं तो दुनिया के समंदर में, काफी खलां मकां होता नहीं। लाखों मोती है मगर ,
इस आब का मोती मिलता नहीं।” दुर्गेश मोहन
समस्तीपुर(बिहार)

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