स्वतंत्रता आंदोलन में साहित्य की भूमिका

 

हमारा देश भारत अंग्रेजों के अधीन लगभग 300 वर्षों तक रहा । अंग्रेजों से आक्रांत होकर भारतीय वीर महापुरुषों ने भारत माता की स्वाधीनता के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया। जिसका जीता जागता उदाहरण 15 अगस्त, 1947 को भारत की स्वतंत्रता तथा 26 जनवरी, 1950 को गणतंत्र राष्ट्र घोषित किया गया ,जो हमारे लिए गर्व एवं हर्ष की बात है ।भारत सिर्फ अस्त्र और शस्त्र से ही स्वतंत्रता नहीं पाया था, इसमें शास्त्र की भी अहम भूमिका रही ।यहां शास्त्र से तात्पर्य साहित्य से है। साहित्य समाज का दर्पण होता है। वह सदैव सही मार्ग प्रशस्त करता है। भारत को आजादी दिलाने में साहित्य एवं साहित्यकारों की अहम भूमिका रही है ।इनकी कलम ने देश की दशा ही अच्छाई में परिवर्तित कर दिया। कवि, गीतकार एवं लेखक अपनी रचनाओं के माध्यम से भारत की सेवा में समर्पित हो गए। धन्य है, वह देश जहां साहित्यकारों को पूजा जाता है ।वास्तव में साहित्य समाज एवं राष्ट्र का युग द्रष्टा होता है । भारत को स्वतंत्रता दिलाने में साहित्य के माध्यम से रामधारी सिंह’ दिनकर’, हरिवंश राय’ बच्चन’, मैथिली शरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी ,सुभद्रा कुमारी चौहान ,गोपाल सिंह नेपाली ,प्रेमचंद ,जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा इत्यादि का नाम आदर के साथ लिया जाता है। साहित्य सृजन में स्वतंत्रता अर्थात्

देशभक्त कवियों की कुछ पंक्तियां स्मरणीय हैं।

जैसे -रामधारी सिंह’ दिनकर’ रचित कविता की पंक्ति है _दो में से क्या तुम्हें चाहिए कलम या कि तलवार और दूसरी रचना कलम आज उनकी जय बोल काफी लोकप्रिय हुई थीं।

मैथिलीशरण गुप्त की रचना को देखें –

जो भरा नहीं है, भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं
वह हृदय नहीं पत्थर है ,जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ।

माखनलाल चतुर्वेदी की पंक्तियां राष्ट्र प्रेम से ओत -प्रोत हैं –

मुझे तोड़ लेना वनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक।

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जाएं वीर अनेक ।

सुभद्रा कुमारी चौहान रचित कविता ’झांसी की रानी’ जन-जन की जुबान पर थीं।भारत को स्वतंत्रता दिलाने में हथियार से अधिक साहित्य का योगदान रहा रहा है ।

जय हिंद ,जय भारत।

दुर्गेश मोहन
बिहटा ,पटना( बिहार)

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