दुर्गेश मोहन की दो कविताएं

 

 

सदृश पुत्री का अवतरण

रागिनी की आंखों के तारे
विकास की है प्यारी।
सम्पूर्ण दुनिया है इसकी
ये हैं सबकी न्यारी।
मेरी सदृश प्यारी पुत्री
का 14 नवंबर को हुआ है अवतरण।
इसे प्यार है
भारतमाता से कण _,कण।
आरज़ू के जन्म से
सभी हुए हर्षित।
अपना सम्पूर्ण परिवार
भास्कर सदृश हुआ उदित।
ये परिवार को
की है आनंदित।
माता_पिता के प्यार पाकर
अपना नाम करेगी परिभाषित।
धन्य है यह बेटी आरज़ू
ईश्वर को की है नमन।
सारे जहां में
अपना नाम करेगी विकीर्ण।

 

 

 

सादर नमन

मीरा भाभी थीं
देवी का अवतार।
ये थीं परिवार
के लिए मूल आधार।
सम्पूर्ण परिवार को
इन्होंने संवारा।
सबको प्रेम का
पाठ सिखाया।
जीना परिवार की थीं
आप अभिन्न अंग।
इन्होंने इसे प्रगतिशील बनाया
पति के संग।
जब_जब आती आपकी यादें
आप होती हमारे पास।
ये अमूल्य धरोहर थी
हमारे साथ।
मीरा भाभी का यशोगान
था सर्वत्र जन_जन।
ये हमारा अवश्य स्वीकार
करेंगी सादर नमन।
ये अपने परिवार और
जीना परिवार को की थीं पुष्पित_पल्लवित।
मीरा भाभी कोरोना से
हुई काल कवलित।

 

दुर्गेश मोहन
बिहटा, पटना (बिहार)

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