महेंद्र अश्क को शायरी का शौक़ जूनून की हद तक था

अल्लाह मेरी फ़िक्र को इतनी रसाई दे/
मैं देखने लगू तो मदीना दिखाई दे।
यह शेर किसी मुस्लिम शायर का नहीं बल्कि आलमी शौहरत याफ्ता शायर महेन्द्र सिंह अश्क का है।अश्क साहब ने शायरी खास तौर से नात गोई में बहुत नाम कमाया। एक ज़माना था,जब बड़े मुशायरो की फहरिस्त में बेकल उत्साही,जिगर मुरादाबादी,खुमार बारा बनकवी,कैफ़ी आज़मी,राहत इंदौरी,मुनववर राना, शहज़ादा गुल्ररेज़, सकलेन हैदर,साहिल फरीदी,नज़र एटवी जैसे बड़े शायरो के साथ महेन्द्र सिंह अश्क का नाम भी होता था। उन्होंने ईरान व पाकिस्तान सहित कई देशों में मुशायरे पढ़े।इतनी शौहरत और मक़बूलियत के बावजूद महेन्द्र अश्क में तकब्बुर नाम को भी नहीं था। इस सम्बन्ध में उनका एक शेर भी है — ग़ज़ल का ताज तो सर पर ज़रूर रक्खा है/मगर खुदा ने तकब्बुर से दूर रक्खा है।
महेंद्र अश्क को शायरी का शौक़ जूनून की हद तक था। शायरी के लिए उन्होंने शिक्षक की नौकरी भी छोड़ दी थी।वे निहायत शरीफ,सादा मिज़ाज और मिलनसार इंसान थे।उनकी मेहमान नवाज़ी भी मशहूर थी। एक बार आकाशवाणी नजीबाबाद में मेरी रिकार्डिंग थी। वहां अचानक महेन्द्र अश्क साहब से मुलाक़ात हो गई। वे बहुत खुलूस से मिले और घर पर खाना खाने की जिद करने लगे।उनके खुलूस ने मुझे उनका दीवाना बना दिया।
शायरी महेन्द्र सिंह अश्क को विरासत में मिली थी।बिजनौर ज़िले के स्योहारा इलाक़े के गांव किवाड के रहने वाले अश्क साहब के दादा और मामा का शुमार अच्छे शायरों में होता था। शायरी का शौक़ अश्क साहब को बचपन से ही लग गया था। उन्होंने सहसपुर निवासी साबिर आरिफी को उस्ताज़ बनाया। उन्होंने महेन्द्र अश्क की शायरी को ऐसा तराशा कि चंद बरसों में ही अदबी हल्क़ो में महेन्द्र अश्क की शायरी की चर्चा होने लगी। 1989 में महेन्द्र अश्क बच्चों की तालीम के लिए गांव से हिजरत कर नजीबाबाद में जा बसे।वहां उनकी दोस्ती मारूफ शायर रशीद नजीबाबादी से हो गई।कुछ ही दिनों में नजीबाबाद की हर शेरी महफिल में महेन्द्र अश्क की मौजूदगी ज़रूरी समझी जाने लगी।
महेन्द्र अश्क साम्प्रदायिक सौहार्द के हामी थे।उनकी शायरी का फोकस मुहबत, इंसानियत और सत्ता की बद इन्तज़मियो पर था।उन्होंने नात शरीफ और मनक़बत भी बड़ी तादाद में लिखी। वे जब मुशायरों में नात या मनक़बत पढ़ते थे तो लोग कुर्सियों से खड़े हो जाते थे। मनक़बत का उनका एक मजमुआ गंगा आंसुओं की, के नाम से प्रकाशित हुआ। धूप उस पार नाम से महेन्द्र अश्क का ग़ज़लो का मजमुआ भी छपा। उनकी ये दोनो किताबें बहुत पसंद की गई।
महेन्द्र अश्क के खास शागिर्दो में रहे सीनियर शायर व पत्रकार आफ़ताब नौमानी बताते हैं कि महेन्द्र सिंह अश्क नये लिखने वालों की बहुत हौसला अफ़ज़ाई करते थे। यही वजह रही कि अश्क साहब के शागिर्दो की एक लम्बी फहरिस्त है। महेन्द्र अश्क के कुछ शेरो को आप भी मुलाहिज़ा फरमाएं —
नात गोई के मुझे जब से हुनर आये है
चाँद सूरज मेरे आंगन में उतर आये है
“सो गया था मै मदीने का तसव्वुर करके
रात भर अश्क मेरी ज़ात से खुशबू आई।”
“वहां के लोग भी दुश्मन है मेरे
अभी जिस शहर में पहुंचा नहीं हूं “
30 नवम्बर 2024 को यह बेबाक,निडर और खूबसूरत शायर अदबी दुनिया को एक बड़ा सदमा दे कर हमेशा के लिए रुख़सत हो गया। बेशक महेन्द्र अश्क साहब की कमी की भरपाई आसान नहीं होगी। मुझ समेत उनके तमाम चाहने वालों की जानिब से अश्क साहब को दिली खिराज-ए-अक़ीदत।
मरगूब रहमानी
9927785786

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