अध्यात्मिक जीवन मानव जीवन के उत्थान के लिये बहुत जरूरी : स्वामी निरंजनानंद सरस्वती

कुमार कृष्णन
योग के परमाचार्य पद्भभूषण परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा कि अध्यात्मिक जीवन मानव जीवन के उत्थान के लिये बहुत जरूरी है. यदि मनुष्य का अध्यात्मिक जीवन मजबूत रहता है तो उसे सुख-शांति और आनंद की अनुभूति होती है. वे मुंगेर के सन्यास पीठ में विश्व योग आंदोलन के प्रवर्तक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की जन्म शताब्दी पर सत्यम पूर्णिमा के अवसर आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि भौतिकता के सम्मोहन में सब रहते हैं. लेकिन आध्यात्मिक चेतना का विकास व्यक्तित्व के उत्थान में बहुत मायने रखता है और यही मानव जीवन का मूल आधार है. उन्होंने कहा कि स्वामी सत्यानंद की जन्म शताब्दी पर उनके संदेश को प्रचारित किया जा रहा है. उनकी शिक्षाओं को आत्मसात किया जा रहा है. उनके संकल्पों में स्वास्थ्य, सुख-शांति, समांजस, सेवा, दान, प्रेम, साधु समाज और संस्कृति समाहित थे. उन्होंने कहा कि 2007 से लेकर 2019 तक रिखिया में सतचंडी महायज्ञ के मौके पर शिवलिंगों का अभिषेक किया जाता रहा. उसके बाद 2020 में मुंगेर में सन्यास पीठ में 12 शिवलिंगों का अभिषेक सत्यम पूर्णिमा के मौके पर आरंभ किया गया. यहां गुरूदेव की उपस्थिति विद्यमान रही है और इसकी अनुभूति होती है. जन्म शताब्दी के मौके पर यह आदेश मिला की देश के द्वादश ज्योर्तिलिंगों को पंचाग्नि भस्म अर्पित किया जाये और उसके अंजाम दिया गया. उनके जन्म के 100 साल पूरे होने पर उनकी समग्र शिक्षा हमलोगों के सामने हैं. वे आजीवन साधु समाज और संस्कृति के लिये कार्य करते रहे. तीन दिनों का अनुष्ठान सत्यम पूर्णिमा के अवसर पर आरंभ किया गया है. इस मौके पर संन्यास पीठ और योग पीठ में वैदिक मंत्रों का पाठ किया जा रहा है. नये साल का स्वागत हनुमान जी के अह्वान से किया जायेगा, ताकि आध्यात्मिक चेतना विकसित होते रहे.


समारोह को संबोधित करते हुये मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित साकेत धाम आश्रम के प्रमुख स्वामी गिरिशानंद जी ने कहा कि विराट में सबकुछ समाहित है. इस प्रसंग में उन्होंने गीता में भगवान कृष्ण के दर्शन का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि यहां भगवान शंकर विराजमान है और उनकी आराधना सब करते हैं. चाहे असुर हो या मनुष्य. जबकि भगवान विष्णु की आराधना केवल मनुष्य और देवता ही करते हैं. उन्होंने कहा कि स्वामी सत्यानंद परम सिद्ध पुरूष थे और उन्हें सिद्धि प्राप्ति थी. उन्होंने निष्काम सेवा की साधना की. उनकी जन्म शताब्दी पर उनकी पवित्र वाणी मुंगेर में गुंजायमान है. कार्यक्रम में नासिक स्थित कैलाश धाम के स्वामी संविदानंद, वृंदावन से स्वामी माधवानंद, स्वामी मुक्तानंद के साथ वाराणसी से आये आचार्यों ने हिस्सा लिया. प्रथम दिन का अनुष्ठान गुरू पूजा से आरंभ हुआ. आरंभिक उद्भोधन में योग पीठ, रिखिया पीठ और संन्यास पीठ द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों को विस्तार से रेखांकित किया गया. कार्यक्रम के दौरान सत्यानंद मंगलम, शिव सहस्त्र नाम स्त्रोत, रूद्राभिषेक और महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया गया.

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