किसी वर्ग के पिछड़ेपन की पहचान का एकमात्र आधार आर्थिक मानदंड नहीं हो सकता | Economic criteria cannot be the sole basis for identifying backwardness of a class.

 डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय को बुधवार को कहा गया कि किसी वर्ग के पिछड़ेपन की पहचान के लिए आर्थिक मानदंड एकमात्र आधार नहीं हो सकता क्योंकि आर्थिक पिछड़ापन का कारण सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ापन भी है।

प्रधान न्यायाधीश यू.यू. ललित की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सबमिशन प्रस्तुत किया गया था। पीठ सरकारी नौकरियों और प्रवेश में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को 10 प्रतिशत कोटा प्रदान करने के लिए 103 वें संवैधानिक संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई कर रही थी।

यह तर्क दिया गया कि अनुच्छेद 15(6) और अनुच्छेद 16(6) के तहत आरक्षण अनुच्छेद 14 के साथ-साथ अनुच्छेद 15(4)(5), 16(4) (4ए) के लिए अधिकारातीत है।

यह भी तर्क दिया गया कि जिन असमान वर्गों के पक्ष में अनुच्छेद 15(4)(5) और अनुच्छेद 16 के तहत आरक्षण दिया गया है, उनके साथ शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के मामले में और साथ ही रोजगार के मामलों में विशेषाधिकार प्राप्त सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के साथ समान व्यवहार किया जाएगा, जो संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।

कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने प्रस्तुत किया कि संशोधन संविधान के लिए अल्ट्रा वायर्स हैं क्योंकि यह एम.आर. बालाजी बनाम मैसूर राज्य में निर्धारित अधिकतम 50 प्रतिशत सीटों को वंचित वर्ग के लिए आरक्षित करने की सीमा का उल्लंघन करता है।

 

आई्एएनएस

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