-प्रगति गुप्ता
“पूर्वा!दो तीन दिन से तेरे बारे में सोच रही थी बेटा।सोचा तुझे फ़ोन ही कर लूँ।आजकल मैं जयपुर आई हुई हूँ। तेरे अंकल की तबीयत कुछ ज्यादा खराब हो गई थी। तुम, विजय और बच्चे सब सकुशल तो हो ना बेटा। बहुत दिनों से कोई बातचीत भी नहीं हुई..कोई खास वज़हतो नहीं।”…
सुदर्शना आँटी काइतने दिनों बाद अचानक फोन आने से पूर्वा घबरा ही गई थी।बाद मेंउसे अपनी भी गलती का एहसास हुआ।पूर्वा को बेटी की तरह प्यार करने वाली सुदर्शना आँटी से उसनेलगभग दो महीने से बात नहीं की थी। सुदर्शना आँटी उसके घर की पिछली गली में रहा करती थी।
“नहीं आँटी सब बिल्कुल ठीक है।आपको मेरी जुड़वा बेटियों मनु और तनु का तो पता ही है।दोनों की बारहवीं क्लास होने से काफ़ी समय कोचिंग और स्कूल,छोड़ने और वापस लाने में निकल जाता है। अति व्यस्तता की वज़ह से मैं आपको फ़ोन भी नहीं कर पाई। हम बिल्कुल ठीक हैं। आप बताइए आँटी आप कैसी हैं? अंकल को क्या हुआ? अंकल तो बिल्कुल ठीक थे।
‘कहाँबेटा!तुम्हें पता ही है,काफी समय से ही अंकल हार्ट पेशेंट है।अभी कुछ दिनों से उन्हें साँस लेने में भी तक़लीफ महसूस हो रही थी।मार्च में जब हम जयपुर बड़ी दीदी के यहाँ आए हुए थे, तेरे अंकल को साँस लेने में कुछ ज़्यादा ही दिक्क़त महसूस होने लगी।पहले भी कभी-कभी शिकायत करते थे कि उन्हें साँसे कुछ भारी-भारी महसूस हो रही हैं। तब हमने यही सोचा कि हार्ट के दो-दो ऑपरेशन हो चुके हैं; हो सकता है थकान की वज़ह से ऐसा महसूस हो रहा हो।परेशानियों के हिसाब सेजब समस्या बढ़ती हुई लगी तो डॉक्टर से सलाह ली।न जाने कितने टेस्ट और एक्स-रे करवाएं।उसी के हिसाब से इलाज़ भी लियामगर तुम्हारे अंकल को खास फर्क़ महसूस नहीं हुआ बेटा।”
“अब अंकल की कैसी तबीयत है आँटी?”… पूर्वा ने पूछा।
“अब भी स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है।डॉक्टर ने उनके कुछ और भी टेस्ट करवाए हैं, जिनकी रिपोर्ट्स आना बाक़ी है। देखो बेटा! क्या होता है। बस भगवान करें कुछ भी बड़ा न निकलेताकि जो इलाज डॉक्टर बताएं, जल्द ही सब ठीक हो जाए।… मैं तो भगवान से रात-दिन यही प्रार्थना करती हूँ बेटा।”
आँटी ने एक गहरी सांस लेकर अपनी बात ज़ारी रखी…
“हम दोनों की उम्र भी तो अब कम नहीं है। हम भीपिचहत्तर साल के हो गए हैं बेटा।बाजार का काम हो याअस्पताल का सभी जगह की भागम-भाग बहुत ज्यादा थकाती है। अब इस उम्र में पहुंचकर लगता है…भगवान ने बच्चे भी नहीं दिए; न जाने क्या सोचा।”
सुदर्शना आँटी जैसे ही अपनी बातों पर विराम दिया,पूर्वा को उनका परेशान होना महसूस हो गया। पूर्वा ने उनकी समस्या भाँपकर कहा…
“आँटी!प्लीज ऐसी कोई भी बात मत सोचिये और कहिये, जिससे आपको या अंकल को कोई कष्ट हो। हम हैं न।..आप दोनों को जब भी ज़रूरत हो हमें याद कर लिया करिए।हम भी तो आपके बच्चे ही हैं।”
“बेटा! सारी उम्र अकेले ही भागदौड़ करके निकल गई।मैंने बहुत बार तेरे अंकल से कहा कि जोधपुर चले चलते हैं।वहाँ पूर्वा और विजय हैं। जैसा वह दोनों कहेंगे…हम कर लेंगे।कम से कम निश्चिंता तो रहेगी।”
“हां आंटी! आप दोनों को आ ही जाना चाहिए था।कम से कम फ़ोन ही कर देते …हमको सब पता चल जाता। गलती मेरी भी है। मुझे भी फोन करके, आपके और अंकल के समाचार लेने चाहिए थे।सॉरी आंटी।”… पूर्वा ने चिंतित होते हुए कहा।
“अरे बेटा!मैं घर परिवार की जिम्मेदारियों को खूब अच्छे से समझती हूँ। तुम दोनों के पास तो बच्चों की भी जिम्मेदारियां हैं। और तुम्हें तो पता ही है जब तक तेरे अंकल के हाथ-पांव चलेंगे, वह किसी से कोई काम नहीं कहेंगे… हमेशा से ही खूब किया है न बेटा।घर,कॉलेजया यूनिवर्सिटी हर जगह उन्होंने अपना सौ प्रतिशत देने कि कोशिश की है।वह टी.टी.और बैडमिंटन खेलते रहने से हमेशा ही खुद को बहुत चुस्त महसूस करते रहे हैं।उन्हें अपने ऊपर बहुत विश्वास है; तुम्हें बिल्कुल परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।बस मुझे ही चिंता लगी रहती है इसलिए तुमसे साझा कर लिया।… सब ठीक हो जाएगा।”
पूर्वा कोआँटी और अंकल की सकारत्मक सोच हमेशा ही बहुत आकर्षित करती थीमगर आज आँटी की बातें सुनकर उसे उनकी परेशानी का एहसास भी हो गया।
“आप दोनों कब जोधपुर आ रहे हैं?… बताइएगा, हम आपको लेने स्टेशन आ जाएंगे। आप दोनों को टैक्सी से आने की ज़रूरत नहीं।”
अपनी बात बोलते समय पूर्वा कोअंकल और आँटी की स्वाभिमानी प्रवृत्ति का भी पता था। जब तक दोनों से मैनेज होगा; वे किसी की भी मदद नहीं लेंगे।
आँटी कापूर्वा के साथ शायद कोई पूर्व जन्म का लगाव था।तभी वह थोड़े दिन गुज़रते ही खुद फोन करके उसके हाल-चाल पूछ लिया करती थी। मुश्किल से दस दिन ही गुज़रे होंगे कि एकदिन आँटी का फिर से फोन आगया।..
“बेटा! हम जोधपुर आ चुके हैं। जब भी तुम्हें और विजय को समय मिलेघर पर मिलने आना।”..अपनी बात बोलकर आँटी तो चुप हो गई पर पूर्वा को आज न जाने क्यों आँटी की आवाज में ताज़गी महसूस नहीं हुई।तभी वह पूछने से खुद को रोक नहीं पाई…
“क्या हुआ है आंटी?..”
“कुछ नहीं बेटा!जब तुम घर आओगी…तब बात करेंगे।”
फोन कट गया या काट दिया गया,पूर्वा की समझ नहीं आया।फोन कटते ही एक अजीब-सी खलबली पूर्वा के दिमाग में चालू हो चुकी थी क्योंकि आँटी की ख़ुशमिज़ाज़ी ही उनके लिए चिरपरिचित थी।कोई भी उनके घर से बगैर खाना खाए या नाश्ता किएलौटा हो; कभी नहीं हुआ था।
जब पूर्वा की छठी इंद्री ने आज और अभी मिलनेको उकसाया, उसने जल्द उठकर अपनी चुन्नी कंधे पर डाली और आँटी अंकल से मिलने पहुंच गई।कॉलबेल बजाकर पूर्वा ने दरवाजाखुलने का इंतजार किया।आँटी की नौकरानी ने दरवाजा खोला और कहा..
‘मैडम अंदर ही है…आप उनके कमरे में चली जाए।”
पिछली बार जब पूर्वा उनके घर आई थी,टी.वी. की तेज आवाज गूंजती हुई सुनाई दी थी।आँटी भी रसोई में काम करतेहुए बहुत ही मधुर आवाज़ में गुनगुना रही थी…
‘पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे कि मैं तन-मन की सुध-बुध गंवा बैठी, हर आहट पे समझूँ वो आई गयो रे झट घूंघट में मुखड़ा छिपाए बैठी’ …
‘आँटी! आप कितना अच्छा गाती हैं… सच्ची।’…बोलकर पूर्वा ने ज्यों ही आँटी को गले लगाया था…..वह निहाल हो गई थी।
‘अरे बेटा! तेरे अंकल को यह गाना बहुत पसंद था, उन्हीं के लिए हमेशा गाया करती थी।पूर्वा तुझे पता है मैंने हारमोनियम पर पाँचसाल बहुत अभ्यास किया है।मेरे गुरु बनारस घराने से थे।’..
‘आँटी!आपको जितना आता है; आप मुझे सिखायेंगी; वादा करिए।’…
उस दिन पूर्वा ने लगभग बच्चों के जैसे मचलते हुए आँटी से कहा था।
‘जरूर से सिखाऊंगी बेटा।तुझे सिखाने से मेरा रियाज भी हो जाएगा। अच्छा चल,अब यह बता ठंडा पीयेगी या गर्म। तेरे अंकल टी.वी. देख रहे हैं उनसे भी पूछ कर आती हूं…क्या लेंगे। फिर हम तीनों साथ-साथ बैठकर पीते हैं।’
उस दिन लगभग दो घंटा साथ बैठकर उन्होंने गप्पे लगाते हुए कॉफी पी थी।पूर्वा की बेटियां उस समय स्कूल में ही थी।उसके फ्री होने से तीनों ने एक साथ काफ़ी अच्छा समय गुज़ारा था।
पर आज तोपूरे घर में सुई पटक सन्नाटा छाया हुआ था। बाई के दरवाज़ाखोलते ही पूर्वा को कुछ अजीब-सा आभास हुआ।तभी वह पल भर को दरवाज़े पर ही खड़ी सोचती रह गई। उसने वापस बाइजी से पूछा…
“आँटी-अंकल कहाँ है बाईजी?”…
“आप उनके कमरे में जाइए दीदी।”
अपनी बात बोलकर बाई अपने काम में जुट गई।पूर्वा ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया आँटी ने उठकर उसे गले लगा लिया और रुआंसी होते हुए बोली…
“बेटा! तेरे अंकल की तबीयत बिल्कुल ठीक नहीं है। मैंने तुझे बताया था न कि कुछ टेस्ट की रिपोर्ट आना बाकी है। वहीं रिपोर्ट बहुत खराब आई है।तेरे अंकल के शरीर में कैंसर सब जगह फैल चुका है। डॉक्टर ने कुछ दवाइयाँ शुरू की है। तेरे अंकल दिल के मरीज़ हैं और उनकी दो बार बाईपास सर्जरी हो चुकी है।अब बहुत ज्यादा स्ट्रांग दवाइयाँ देने सेउनके शरीर को ज्यादा नुकसान होगा। दूसरा बड़ा फैक्टरउम्र भीहै।”..
आँटी तो अपनी बात बोलकर चुप हो गई पर अब पूर्वा की नजर अंकल की तरफ चली गई। उनके ड्रिप चल रही थी। वह पल्स मीटर लगाए हुए बेसुध से लेटे हुए थे।पूर्वा की आवाज सुनकर उन्होंने आँखें खोली और बोले…
“पूर्वा आ गई बेटा। विजय कैसा है?… घर में सब ठीक तो है।”..बस इतना-सा बोलकर अंकल ने अपनी आँखें फिर सेमूंद ली।
अंकल और आँटी के ऐसे हालत देखकर न जाने क्यों पूर्वा को ख्याल आया जिनके बच्चे होते हैं; वह अलग परेशानियों से घिरे हैं। और जिनके बच्चे नहीं हैं उनके पास बुढ़ापे में भागदौड़ करने वाला कोई नहीं है। हर व्यक्ति की परेशानियाँ अबूझ-सी हैं।
तभीआँटी नेधीमी आवाज में पूर्वा से कहा…
“पूर्वा!डॉक्टर्स ज़बाब दे चुके हैं।अब कोई उम्मीद नहीं है।तेरे अंकल का अंतिम समय आ गया है।मैं सबकुछ अकेले कैसे करूंगी बेटा?”
अपनी बात बोलते-बोलते वह रोने लगी।..
“कभी भी कुछ हो सकता है। पिछले दिनों में हालात बिगड़े ही है; सुधरे नहीं। हम दोनों के रिश्तेदार हमसे उम्र में काफी बड़े और निशक्त हैं।बहुत चिंतित हूँ; सब कैसे संभालूंगी बेटा।”
पूर्वा को आँटी की आँखों में बेबसीदिखाई दी।आँटी के दोनों घुटनों को भी सर्जरी की आवश्यकता थी।पूर्वा ने उनके हाथों को अपने हाथों में लेकरकहा…
“आँटी!बस एक फोन। यह तो कर सकती हैं नआप मुझे। आपके एक फोन करने पर;पास मिलूंगी।बिल्कुल बेफिक्र रहिए। आपको कोई भी परेशानी नहींहोगी। अब सब सँभालने की जिम्मेवारी मेरी है।आप पूरी तरहअंकल का ध्यान रखिए।कहीं भी लगे मेरी ज़रूरत है; मुझे एक फोन करिएगा।अपने पास पाएंगी।”
अपनी बात बोलकर पूर्वा आँटी का मुंह देखने लगी।आँटी ने कुछ सोचते हुये फिर से बोलना शुरू कर दिया…
“पूर्वा! पिछले पचास सालों से तेरे अंकल और मैंने एक भरपूर जिंदगी साथ- साथ गुज़ारी है। बच्चे न होने की वज़ह से हम दोनों का सारा समय एक दूसरे के लिए ही निकला है। हमारे सुख-दुःख हमारे ही थे बेटा। जब कभी भी मुझे जरूरत पड़ी, मुझे तेरे अंकल से कभी कहना नहीं पड़ा।एक दूसरे की जरूरतों को महसूस करना, हमारी आदतों में है बेटा। तेरे अंकल के बगैर बताए ही अक्सर ही मैं उनकी पसंद का खाना बनाती रही हूं।”..
आँटी को सुबकते हुए देख पूर्वा ने उनका हाथ अपने हाथों में ले लिया और आँटी की बातों को ध्यान से सुनने लगी…..
“पूर्वा!मैं अब कैसे रहूंगी?…तेरे अंकल के बिना।बेटा!जब भी उनकी पसंद का कुछखाने में बनाऊंगी, मैं भी कैसे खा पाऊंगी?”..
आँटी न जाने कितनी देर तकअतीत के पन्नों की उलट-पलट पूर्वा के सामने करती रही।कभी अपनी तो कभी अंकल की अनगिनत यादों से पूर्वा का परिचय करवाती रही।…और पूर्वा चुपचाप उनके हाथों को अपने हाथों में लिए,कभीउन्हें सांत्वना देती और कभी उन्हें खुद को सँभालने के लिए बोलती।
“मैं हूँ न आपके पास आंटी; आप बिल्कुल परेशान मत होइए।”..
इसके अलावा उस समय पूर्वा के पास कहने को कुछ भी नहींथामगर सच तो यह था कि आँटी की बातें उसे अंदर ही अंदरझँझोड़रही थी।
आँटी काअंकल के साथ दिल से जुड़ा रिश्ता,पूर्वा को बीच-बीच में ऐसेही रिश्ते की कमी का एहसास करवा रहा था।अक्सर बच्चों को बड़ा करने में पति और पत्नी अपने रिश्ते को भूल जाते हैं।तभी बहुत कुछ टेकन फॉर ग्रांटेड ले लेते हैं।
जैसे ही आँटी थोड़ी ठीक हुई;पूर्वा ने उन्हें हर रोज़ एक चक्कर उनके पास लगाने का आश्वासन दिया। पूर्वा ने लगभग रोज़ ही आँटी के यहाँ कुछ देर को आने लगीताकि उनकी हर ज़रूरत को निश्चित वक्त में पूरा कर सके। मुश्किल से बीस-पच्चीस दिन गुजरे होंगे कि पूर्वा कोआँटी का फ़ोन अपने मिस्ड कॉल में दिखाई दिया। पूर्वा के वापस फ़ोन करते ही फ़ोन पर आँटी की आवाज़ सुनाई दी…
“पूर्वा! फ़ोन क्यों नहीं लिया तूने? कब से फ़ोन कर रही हूं।”..अपनी बात बोलते-बोलते आँटी जोर-जोर से रोने लगी।
“तेरे अंकल हमेशा के लिए जाने वाले हैं बेटा।जल्द घर आ जा।”
जो सामान जैसे था उसे वैसे ही छोड़कर पूर्वा आँटी के घर की ओर दौड़ पड़ी।सच में ही अंकल आखिरी सांसे ले रहे थे और आँटी उनके सिरहाने खड़ीहोकर रोते हुए उन्हें जाता हुआ देख रही थी। उन्होंने एक डॉक्टर को बुलालिया था जो कुछ इंजेक्शन देकर बचाने की आखिरी कोशिश कर रहा था। पर अंकल की छूटती सांसों के साथ आँटी का अकेला रह जाना अब निश्चित हो चुका था।
पूर्वा और विजय ने अंकल की अंतिम विदाई तक के सभी इंतजामकर दिए।पूर्वा ने फिर लगभग तेरह दिन तक हर रोज आँटी के मन की बातों को सुनने का भी काम किया।ताकि उनके अंदर जो भी भरा हो निकल जाए और वह शांत हो सके।पूर्वा उन्हेंख़ुद के साथ होने का बराबर आश्वासन भी देती रही।
एक दिन अचानक आँटी ने पूर्वा से कहा..
“पूर्वा! एक बात बता बेटा… अगर मैं वृद्धाश्रमचली जाऊं तो मेरा निर्णय ठीक रहेगा।”
आँटी की बात सुनकर पूर्वा बेचैन होकर बोल पड़ी…
“नहीं आँटी आप वहाँकभी नहीं जायेगी। इस मुहल्ले में आप चालीस सालों से रह रही है।यहाँ के सभी लोग आपके परिचित हैं।सब आपके अपने हैं। आपका अपनाघर है। उसको छोड़कर कहीं मत जाइये।अपने घर में एक किराएदाररख लीजिये;जिसके बच्चे भी हो।ताकि चहल-पहल बनी रहेगी।कहीं पर भी आपको जरूरत होगी हम मदद करेंगें। निश्चिंत रहिए।”….
अपनी बात बोलकर पूर्वा ने आँटी कोन सिर्फ़ वृद्धाश्रम जाने से रोका बल्कि उन्हें मानसिक शांति भी दी।
आँटी की एकलौती बहन गुज़रे हुए नौ दिनों में वहींथी।जो अमेरिका से आई थी।उनसे पूर्वा का परिचय पहली बार हुआ।वह भी चुपचाप रहकर बहुत कुछ महसूस कररही थी।जब सब कुछ अच्छे से निबट गया तो उन्होंने एक दिन पूर्वा को अपने पास बुलाकर कहा…
“तुम बहुत प्यारी हो पूर्वा?..हमसे इतनी छोटी हो,फिर भी जितना तुमको समझने की कोशिश करती हूं, तुम्हारे गहरे और गहरे उतरती जाती हूँ।तुम जैसे लोगों की वज़ह से समाज जिंदा है; परिवार जिंदा है। बेटा!तुम जैसे लोगही बगैर किसी खून के रिश्ते केसारे रिश्ते निभा देते हैं।अगर ईश्वर मेरे से बच्चे देने के लिए पूछता तो मैं यही कहती मुझे पूर्वा जैसी बेटी चाहिए।मैं कल वापस निकल रही हूँ। मैंने दीदी को साथ चलनेके लिये कहा था मगर वह यहीं रहना चाहती हैं।तुम उनका ध्यान रखलोगीन बेटा?..
पूर्वा ने सिर हिलाकर अपनी सहमति दे दीक्योंकि वह मन से चाहती थी कि उनकी यात्रा शांत मन से पूर्णहो सके।।
pragatigupta.raj@gmail.com