कड़वे यथार्थ की चित्रकारी…

भारतीय साहित्य में व्यंग्य लेखन की परंपरा बहुत समृद्ध रही है। ऐसा माना जाता है कि यह कबीरदास, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमधन’, प्रतापनारायण मिश्र से आरंभ हुई, कालान्तर में शरद जोशी, श्रीलाल शुक्ल, हरिशंकर परसाई, रवीन्द्रनाथ त्यागी, लतीफ घोंघी, बेढब बनारसी के धारदार व्यंग्य-लेखन से संपन्न होती हुई यह परंपरा वर्तमान समय में ज्ञान चतुर्वेदी, सूर्यकुमार पांडेय, सुभाष चंदर, ब्रजेश कानूनगो आदि के सृजन के रूप में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज़ करा रही है, किन्तु व्यंग्य-कविता लेखन में माणिक वर्मा, प्रदीप चौबे, कैलाश गौतम, मक्खन मुरादाबादी सहित कुछ ही नाम हैं जिन्होंने अपनी कविताओं में विशुद्ध व्यंग्य लिखा है। कवि सम्मेलनीय मंचों पर मक्खन मुरादाबादी के नाम से पर्याप्त ख्याति अर्जित करने वाले डॉ. कारेन्द्रदेव त्यागी की लगभग 5 दशकीय कविता-यात्रा में प्रचुर सृजन उपरान्त सद्यः प्रकाशित प्रथम व्यंग्यकाव्य-कृति ‘कड़वाहट मीठी सी’ की 51 कविताओं से गुज़रते हुए साफ-साफ महसूस किया जा सकता है कि उन्होंने समाज के, देश के, परिवेश के लगभग हर संदर्भ में अपनी तीखी व्यंग्यात्मक प्रतिक्रिया कविता के माध्यम से अभिव्यक्त की है।
गीतों के अनूठे रचनाकार रामअवतार त्यागी की धरती पर जन्मे, पले, बढ़े मक्खनजी की सभी कविताएं स्वतः स्फूर्तरूप से सृजित मुक्तछंद कविताएं हैं छंदमुक्त नहीं हैं संभवतः इसीलिए उनकी कविताओं में एक विशेष प्रकार की छांदस खुशबू के यत्र-तत्र-सर्वत्र विचरते रहने के कारण सपाटबयानी या गद्य भूले से भी घुसपैठ नहीं कर सका है। पुस्तक में अपने 15 पृष्ठीय बृहद आत्मकथ्य में अपने अनेक संस्मरणों के साथ-साथ अपनी कविता-यात्रा के संदर्भ में उन्होंने कहा भी है कि ‘कविता टेबल वर्क नहीं है। कविता हो या शायरी, वह गढ़ी-मढ़ी नहीं जाती क्योंकि गढ़ना-मढ़ना इनके धर्म नहीं हैं। ये होती तो हैं की नहीं जातीं। होने और किए जाने के अंतर को समझकर ही इन्हें बेहतरी से समझा जा सकता है। आधुनिक कविता छंद, मुक्तछंद और छंदमुक्त तीनों ही स्वरूपों में समृद्ध हुई है।’ दरअस्ल यह सत्य भी है कि कविता में व्यंग्य-लेखन आसान नहीं है क्योंकि संदर्भों और विषयों पर सृजन करने हेतु व्यंग्य-दृष्टि हर किसी रचनाकार के पास नहीं होती। कविता में व्यंग्य को जीना मतलब एक अलग तरह की बेचैनी को जीना, सामान्य में से विशेष को खोजना और साधारण को असाधारण तरीक़े से अभिव्यक्त करना होता है। हम सबने बचपन से नारा सुना है-‘हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई/आपस में सब भाई-भाई’, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है ? हर किसी को लगता है कि यह भाव अब सिर्फ़ नारे में ही सिमटकर रह गया है, व्यवहारिकता में अधिकांश जगह स्थिति उलट ही है। कृति के कवि मक्खनजी द्वारा अपनी कविता ‘मुझे अंधा हो जाना चाहिए’ में इस नारे का पोस्टमार्टम करते हुए नारे को बिल्कुल अनूठे ढंग से व्याख्यायित करना उनकी विशुद्ध व्यंग्यात्मक -दृष्टि का वैशिष्ट्य नहीं तो और क्या है-
‘तुम सवर्ण हो, अवर्ण हो तुम
तुम अर्जुन हो, कर्ण हो तुम
तुम ऊँच हो, नीच हो तुम
तुम आँगन हो, दहलीज़ हो तुम
तुम बहु, अल्पसंख्यक हो तुम
तुम धर्म हो, मज़हब हो तुम
कहने को तो नारों में भाई-भाई हो तुम
पर असलियत में
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई हो तुम’
मक्खनजी की कविताएं पाठक और श्रोता के साथ जुड़कर सीधा संवाद करती हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति से आज तक भारत में भ्रष्टाचार की स्थिति भयावहता के चरम पर है। यह उस असाध्य बीमारी की तरह हो चुका है जिसका उपचार संभव प्रतीत नहीं हो रहा है, मतलब ‘मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की’। ‘मैं हूँ तब ही तो’ शीर्षक से कविता के माध्यम से अपनी अनूठी व्यंग्यात्मक शैली में मक्खनजी भ्रष्टाचार का बयान दिलवाते हैं-
‘भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार
चिल्लाते रहते हो बरखुरदार
सोचो तो, मेरी अगर बात न होती
तुम्हारी भी आज के जैसी
हरगिज औकात न होती
मेरे कारण नेताओं के
अपने-अपने रजवाड़े हैं
अधिकरियों ने राजमहल बनवाने को
जाने कितने नक्शे फाड़े हैं
कर्मचारियों के भी मंसूबे
अधिकारियों को छूते हैं
सबके बढ़े हौंसले मेरे ही बलबूते हैं
मेरे प्रति जनमानस में
इसीलिए पैदा विश्वास हुआ है
मैं हूँ तब ही तो
इतना सारा विकास हुआ है’
सुपरिचित ग़ज़लकार डॉ. कृष्णकुमार ‘नाज़’ का एक शे’र है-‘मैं अपनी भूख को ज़िन्दा नहीं रखता तो क्या करता/थकन जब हद से बढ़ती है तो हिम्मत को चबाती है।’ यह भूख ही है जिसे शान्त करने के लिए व्यक्ति सुबह से शाम तक हाड़तोड़ मेहनत करता है, फिर भी उसे पेटभर रोटी मयस्सर नहीं हो पाती। देश में आज भी करोड़ों लोग ऐसे हैं जो भूखे ही सो जाते हैं, वहीं कुछ लोग छप्पनभोग जीमते हैं और अपनी थाली में जूठन छोड़कर रोटियां बर्बाद करते हैं। आज का सबसे बड़ा संकट रोटी का है और चिंताजनक यह है कि व्यवस्था के ज़िम्मेदार लोगों के हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहने के कारण इस समस्या का निदान दिखाई नहीं दे रहा है। ‘नेताओं का भावी प्लान’ कविता में मक्खनजी अपनी चिरपरिचित शैली में भूख की मुश्किलों और व्यवस्था की बिद्रूपताओं पर व्यंग्य कसते हैं-
‘भूख, अभी तो एक समस्या है
भविष्य में, भयंकर बीमारी बनेगी
भूख से लड़ते इंसान की लाचारी बनेगी
क्या कहा, आप रोज़ खाना खाते हो
तभी तो आए दिन बीमार पड़ जाते हो
अपनी औकात पहचान लो
चादर जितनी है उतनी तान लो
मंथली पाते हो न, मंथली खाने की आदत डाल लो’
आज की युवा पीढी के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या बेरोज़गारी है। महँगाई आसमान पर है और जीवन-यापन के श्रोत प्रतिस्पर्धा के शिकार हैं। व्यापार करना आसान नहीं रह गया है और नौकरी पाना दूभर। सरकारी नौकरी के लिए एक पद हेतु लाखों आवेदन पहुँचते हैं और सिफारिशें भी, ऐसे में ‘चैक-बैक-जैक’ की त्रासदी झेलते ईमानदारी के मूल्यों को जीने वाले एक आम शिक्षित युवा की पीड़ा को उकेरते हुए मक्खनजी आईना दिखाते हैं समाज को अपनी कविता ‘आज़ादी के बाद की कहानी’ में-
‘मेरे देश के नगर-नगर में
एक मंजिल वाले सब
दुमंजिले, तीमंजिले, चौमंजिले और
कई-कई मंजिल ऊँचे मकान हो गए हैं
लेकिन इसमें रहने वाले
अपने अतीत को पीकर, वर्तमान को जीकर
भविष्य के प्रति निराश हो गए हैं
क्योंकि इन्हीं में एक मंजिल में बैठा
पढ़ा-लिखा नवयुवक अपनी खुली कमीज पर
बेरोज़गारी के बटन टाँक रहा है’
एक अन्य कविता ‘बेईमानी भी ईमानदारी से’ में वह इस विभीषिका को और भी अधिक प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त करते हैं-
‘मैंने ईमानदारी से तंग आकर
ज़िन्दगी को बेईमानी की ओर मोड़ा था
बिकलांगों के लिए नौकरी में प्राथमिता विज्ञापन
समाचारपत्र में पढ़कर
यह हाथ जानबूझ कर तोड़ा था
लेकिन दोस्त, वहाँ
बिकलांगों की बहुत लम्बी लाइन थी
जाने कितने मेरी तरह भटके
जाने किसने नौकरी ज्वाइन की
अब आप पूछेंगे कि उसे
सचमुच हाथ तोड़ लेने पर भी
नौकरी क्यों नहीं मिली थी
क्योंकि उसने बेईमानी भी
ईमानदारी से की थी’
मक्खनजी की कविताओं में समाज और देश में व्याप्त अव्यवस्थाओं, विद्रूपताओं, विषमताओं के विरुद्ध एक तिलमिलाहट, एक कटाक्ष, एक चेतावनी दिखाई देती है, यही कारण है कि उनकी कविताओं में विषयों, संदर्भों का वैविध्य पाठक को पुस्तक के आरंभ से अंत तक जोड़े रखता है।  संग्रह की कई कविताओं में मक्खनजी अनायास ही दार्शनिक होते हुए कुछ सूत्र-वाक्य देते हैं समाज को मथने के लिए-‘लोकतंत्र में/ज़मीन का दरकना ठीक नहीं है‘, ‘व्यवहार नहीं होते/ तो भाषा गूंगी हो जाती’, ‘कर्ज की भाँति बढ़ते हुए बच्चे’, ‘धर्मनिरपेक्षता ग़लत परिभाषित अंधा कुँआ है’, ‘सांसें हैं पर इनमें ज़िन्दगी नहीं है’, ‘हँसी का पूरा संसार बसाइए’, ‘बेईमानी भी ईमानदारी से की थी’। अपने समय के कैनवास पर कड़वे यथार्थ की चित्रकारी करतीं संग्रह की कविताएं ‘साहित्य समाज का दर्पण है’ को सही अर्थों में चरितार्थ करती हैं। यहाँ यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि संग्रह की अनेक कविताएं विस्तृत चर्चा और विमर्श की अपेक्षा रखती हैं। निश्चित रूप से मक्खनजी की यह कृति ‘कड़वाहट मीठी सी’ साहित्य-जगत में पर्याप्त चर्चित होगी तथा सराहना पायेगी, यह मेरी आशा भी है और विश्वास भी।

समीक्ष्य कृति -‘कड़वाहट मीठी सी’ (व्यंग्य कविता-संग्रह)
रचनाकार   – डॉ. मक्खन मुरादाबादी, मोबाइल-9319086769
प्रकाशक    – अनुभव प्रकाशन, साहिबाबाद, ग़ाज़ियाबाद।
प्रकाशन वर्ष – दिसम्बर, 2019
मूल्य       – रु0 250/-(हार्ड बाईन्ड)

समीक्षक- योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
ए.एल.-49, उमा मेडिकोज़ के पीछे,
दीनदयाल नगर-।, काँठ रोड,
मुरादाबाद- 244001 (उ0प्र0)
मोबाइल-9412805981

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

साहित्य

धवन सहित तीन साहित्यकारों को मिला काव्य कलाधर सम्मान

  पटना। विश्व शाक्त संघ की ओर से गांधी मैदान,पटना, बिहार स्थित आईएमए हॉल में शाक्त धर्म के सम्मान एवं विश्वव्यापी जन कल्याण के लिए शाक्त धर्म की जागरूकता एवं आवश्यकता पर चर्चा के लिये 51वां शाक्त सम्मेलन का आयोजन किया गया।इसका उद्घाटन संघ के प्रधानमंत्री एडवोकेट राजेन्द्र कुमार मिश्र ने किया। अध्यक्षीय उद्गार में […]

Read More
फायकू साहित्य

दि ग्राम टुडे के नवरात्र स्पेशल फायकू विशेषांक का आनलाइन लोकार्पण

देहरादून।  दि ग्राम टुडे के नवरात्र स्पेशल फायकू विशेषांक का आनलाइन लोकार्पण मुख्य अतिथि साहित्यकार अमन त्यागी, विशिष्ट अतिथि डॉ.अनिल शर्मा ‘अनिल’, सतेन्द्र शर्मा ‘तरंग’ और संपादक शिवेश्वर दत्त पाण्डेय ने किया। मुख्य अतिथि, फायकू के प्रवर्तक,अमन त्यागी ने कहा कि सहज और सरल ढंग से नौ शब्दों में अपनी बात कहने के लिए फायकू […]

Read More
फायकू साहित्य

दो शब्द फायकू के लिए

  अमन कुमार ‘त्यागी’ फायकू का प्रयोग ऐतिहासिक रूप से, उपनाम के लिए अथवा लोगों को समूहों में क्रमबद्ध करने के एक तरीके के रूप में विकसित हुआ है। व्यवसाय, मूल स्थान, कबीले संबद्धता, संरक्षण, माता-पिता, गोद लेने और यहां तक कि शारीरिक विशेषताओं के आधार पर भी फायकू लोगों की पहचान की जा सकती […]

Read More