स्वतंत्रता संग्राम 1857 में जनपद बागपत के तीन क्रांतिवीर

मोहित त्यागी
शोधार्थी
सचलभाष- 9917231947

सारांश
भारतवर्ष के इतिहास में भी इसी प्रकार की एक महान घटना का आरंभ 10 मई 1857 को मेरठ की पावन भूमि पर हुआ है। जिसे भारतीय इतिहास में अंग्रेजों के विरूद्ध भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम माना गया है। उस दौर में जब संचार के सीमित साधन थे। न टेलीविजन था, न ही रेडियो का आविष्कार हुआ था, और ज्यादातर भारतवासी पढ़े-लिखे भी कम थे। 1857 ई. की जनक्रांति हिंदुस्तान के अधिकांश भागों में अग्नि की तरह फैल गयी थी।3 इससे मेरठ से लगे हुए क्षेत्र भी अछूते नहीं रहे थे। मेरठ की तहसील बड़ौत (वर्तमान जिला बागपत) ने भी इस गदर में बढ़ चढ़कर भाग लिया था। बागपत में इस क्रांति का नेतृत्व बिजरौल गांव के एक साधारण किसान बाबा शाहमल ने किया था। उन्होंने हजारों किसानों की फौज बनाकर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये। शाहमल का गांव बिजरौल बड़ौत तहसील का एक बड़ा गांव है। जो 1857 ई. की क्रांति के समय दो पट्टियों में विभाजित था। जिनके नाम कुल्लो और भोली था। बाबा शाहमल बिजरौल गांव की कुल्लो पट्टी का मालिक था। इनका गोत्र तंवर अथवा तोमर था। इनकी पदवी मावी थी। शाहमल की ग्राम बिजवाड़ में कई हजार बीघा जमीन थी। ग्राम बिजवाड़ में इनके पूर्वजों ने एक गढ़ी (छोटा किला) भी बनवाया था। जिसमें मल योद्धा और घोड़े रहते थे। बाबा शाहमल को 1857 ई. की क्रांति का पूर्वाभास था। इसलिए इस क्रांति की जोत को जलाने के लिए लगातार प्रयासरत थे। चैधरी अचल सिंह जिला मेरठ (बागपत) की बड़ौत तहसील के अंतर्गत आने वाले गांव बाघु निरोजपुर के रहने वाले थे। अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति में महत्वपूर्ण सहयोग के कारण चैधरी अचल सिंह को क्रांतिकारियों में विशेष सम्मान प्राप्त था। जुलाई 1857 ई. में बाबा शाहमल की शहादत हो गई थी। बाबा शाहमल की शहादत के पश्चात दाहिम्मा (धामा) गोत्र के जाटों ने फिरंगियों के दांत खट्टे करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। बाबा शाहमल की शहादत के बाद खेकड़ा के रहने वाले चैधरी सूरजमल दाहिमा या धामा ने क्रांति में नेतृत्व की कमान संभाली।

प्राचीन काल से जब-जब भारत पर विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा सामाजिक, राजनीतिक संास्कृतिक आदी प्रकार से आघात किया गया, तब-तब हमारे ही समाज से कुछ महान व्यक्ति निकल कर सामने आये और उन्होंने इन आघातों के विरूद्ध समाज को जागृत करने का सफल एवं सार्थक प्रयास किया। जागृत हो चुके समाज ने जनक्रांति के माध्यम से इन आघातों का डटकर प्रतिरोध किया और सफलता प्राप्त करके फिर से उठ खड़ा हुआ। यही भारतीय समाज की सबसे बड़ी विशेषता रही है।
भारतीय समाज पर किसी विद्वान ने बिल्कुल सही कहा है- ‘‘यह उस स्प्रिंग की भांति है, जिसे जितना दबाया जायेगा वह उतनी ही गति से ऊपर की ओर आयेगी’’
जर्मनी के महान दार्शनिक कार्ल माक्र्स ने भी उपरोक्त कथन को अप्रत्यक्ष रूप से सहमति प्रदान की है। कार्ल माक्र्स के अनुसार- ‘‘हिंदुस्तान में सभी ग्रह युद्ध, उस पर हुए सभी आक्रमण, वहां घटित सारे राज्य परिवर्तन और समस्त दुर्भिक्ष एक के बाद चाहे जितने भी जटिल, वेगवान और विनाशकारी क्यों न रहे हैं उनके प्रभाव गहरे न होकर सतही बने रहे।’’1 अंग्रेजों ने भारतवर्ष को छल, कपट, हिंसा तथा बल प्रयोग द्वारा अपने अधीन कर लिया था। उन्होंने लगभग 200 वर्षों तक इस देश पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से शासन किया। इस अवधि में अंग्रेजों ने देश के साधनों का भरपूर शोषण किया। जो किसान इस देश का अन्नदाता कहा जाता हंै अंग्रेजों ने उन्हीं किसानों से भारी मालगुजारी वसूल कर उनका खून चूसा तथा उन्होंने भारतवर्ष के उद्योग धंधे भी चैपट कर दिये। परिणाम स्वरूप जन आक्रोष उभरने लगा। मेटकाॅफ ने 1824 में लिखा था- ‘‘सारा हिंदुस्तान हमेशा हमारा पतन देखना चाहता है हमारे विनाश पर सर्वत्र जनता प्रसन्न होगी।’’2
हमारे अतीत में ऐसे बहुत से क्षण आए हैं, जिन्हें भावी पीढ़ी जानना चाहती है। जिनकी व्याख्या कर अपने अतीत के गौरवशाली क्षणों से सीखना चाहती है। ताकि ये क्षण सदैव के लिए अमिट हो जाएं। तत्कालिक मनुष्य विभिन्न विपत्तियों से गुजरते हुए एक नई मंजिल पर पहुंचने के प्रयास में नए रास्तों का निर्माण करता है, तथा अपनी भावी पीढ़ी के लिए उनके आगामी कार्यों को आसान कर देता है तथा भावी पीढ़ी के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत बना रहता है। भारतवर्ष के इतिहास में भी इसी प्रकार की एक महान घटना का आरंभ 10 मई 1857 को मेरठ की पावन भूमि पर हुआ है। जिसे भारतीय इतिहास में अंग्रेजों के विरूद्ध भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम माना गया है। उस दौर में जब संचार के सीमित साधन थे। न टेलीविजन था, न ही रेडियो का आविष्कार हुआ था, और ज्यादातर भारतवासी पढ़े-लिखे भी कम थे। यह क्रांति जिस तेजी से सम्पूर्ण भारतवर्ष और उसके ग्रामीण क्षेत्रों में फैली उसने साबित कर दिया कि वास्तव में संपूर्ण भारतवर्ष अंग्रेजों के कुपित, दमनकारी शोषण करने वाले राज्य से छुटकारा पाने के लिए बहुत आतुर हैं।
यह 1857 ई. की जनक्रांति हिंदुस्तान के अधिकांश भागों में अग्नि की तरह फैल गयी थी।3 इससे मेरठ से लगे हुए क्षेत्र भी अछूते नहीं रहे थे। मेरठ की तहसील बड़ौत (वर्तमान जिला बागपत) ने भी इस गदर में बढ़ चढ़कर भाग लिया था। बागपत में इस क्रांति का नेतृत्व बिजरौल गांव के एक साधारण किसान बाबा शाहमल ने किया था। उन्होंने हजारों किसानों की फौज बनाकर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये।
शाहमल सिंह
बाबा शाहमल मेरठ बागपत जिले की बड़ौत तहसील के बिजरौल गांव के साधारण परंतु आजादी के परवाने क्रांतिकारी किसान थे। 1857 ई. की क्रांति में बाबा शाहमल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई आदित्य योद्धा एवं उत्तरी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले प्रमुख योद्धाओं में से एक थे।
शाहमल का गांव बिजरौल बड़ौत तहसील का एक बड़ा गांव है। जो 1857 ई. की क्रांति के समय दो पट्टियों में विभाजित था। जिनके नाम कुल्लो और भोली था। बाबा शाहमल बिजरौल गांव की कुल्लो पट्टी का मालिक था। इनका गोत्र तंवर अथवा तोमर था। इनकी पदवी मावी थी। शाहमल की ग्राम बिजवाड़ में कई हजार बीघा जमीन थी। ग्राम बिजवाड़ में इनके पूर्वजों ने एक गढ़ी (छोटा किला) भी बनवाया था। जिसमें मल योद्धा और घोड़े रहते थे। बाबा शाहमल को 1857 ई. की क्रांति का पूर्वाभास था। इसलिए इस क्रांति की जोत को जलाने के लिए लगातार प्रयासरत थे। 1855 ई. में मथुरा तथा 1857 ई. में बिजरौल गांव में बाबा शाहमल की अध्यक्षता में क्रांतिकारियों की गुप्त सभाएं भी हुई थी। शाहमल के साथ क्रांति में आसपास के सभी गांवों के किसानों ने भरपूर योगदान दिया। इनके साथ बड़ौत के लंबरदार शौन सिंह, बुध सिंह और जौहरी, ग्राम जफराबाद के नंबरदार बदन सिंह, जोट के लंबरदार गुलाम सिंह ने भी नेतृत्व प्रदान किया।4 12 व 13 मई 1857 ई. को बाबा शाहमल ने अपने विद्रोही साथियों के साथ मिलकर सूदखोर बंजारों को लूट लिया और बड़ौत तहसील व थाने पर हमला कर दिया और उन पर कब्जा कर लिया। जिससे हुकूमत में दहशत का आलम पैदा हो गया। फलस्वरूप मई-जून 1857 ई. में बाबा शाहमल की स्थिति अत्यंत सुदृढ़ हो गई थी। इसके पश्चात बाबा शाहमल ने अपनी विद्रोही सेना के साथ मिलकर यमुना पर बने नावों के पुल को भी तोड़ दिया। जिससे कि हरियाणा के राई ग्राम में बने अंग्रेजों के कैंप में रसद न पहुंच सके। क्रांति के प्रति अगाध प्रेम और समर्पण की भावना ने बाबा शाहमल को क्रांतिकारियों का सूबेदार बना दिया। बाबा शाहमल ने अपने एक विश्वासपात्र गांव बिलोचपुरा के रहने वाले नबीबख्श के पुत्र अलादिया को अपना दूत बनाकर दिल्ली भेजा, ताकि अंग्रेजों के विरूद्ध मदद मिल सकंे। बागपत के मुगल थानेदार वजीर खां ने भी सम्राट बहादुरशाह जफर को शाहमल की प्रशंसा में पत्र और अर्जियां भेजी और कहा कि यह क्रांतिकारियों के लिए बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है। इसके पश्चात बहादुर शाह जफर द्वारा उन्हें बड़ौत परगने का गवर्नर नियुक्त कर दिया गया।5
बाबा शाहमल करीब 50 गांव के लड़ाकों की फौज बनाकर मैदान में उतर गया। दिल्ली दरबार और शाहमल के मध्य एक उल्लेखित संधि भी थी। अंग्रेज समझ गए कि अगर मुगल सत्ता के साथ-साथ क्रांतिकारियों को धराशाई करना है तो बाबा शाहमल को समाप्त करना आवश्यक है। इसीलिए उन्होंने शाहमल का जिंदा या मुर्दा सर काटने वाले को 10000 का इनाम देने की घोषणा की। शाहमल के नेतृत्व में हिंदू मुसलमान सभी एक साथ मिलकर लड़ें।6 16 जुलाई 1857 ई. को अंग्रेज अधिकारी जनरल हैवेट को सूचना मिली कि शाहमल बसौद गांव में डेरा डाले हुए हैं। उन्होंने फौजी टुकड़ी को भेजकर गांव पर हमला कर दिया। शाहमल अपने कुछ साथियों के साथ यहां से बच निकला। परन्तु अंग्रेजों ने बसौद गांव को लूट लिया और 8 हजार मन गेहूं को जब्त कर लिया। गांव वालों को घोर यातनाएं दी गयी और सार्वजनिक फांसी पर नौजवानों को लटकाया गया। 18 जुलाई 1857 ई. में अंग्रेजों के हमले शाहमल के विरूद्ध काफी तेज हो गये थे। उसी समय मेरठ का कलेक्टर जनरल डनलप राजस्व वसूली के लिए आया था। उसके विरोध में सैकड़ों किसान ढोल नगाड़े बजाते हुए डनलप की तरफ आगे बढ़े जिसे देखकर डनलप भाग खड़ा हुआ।7 बड़ौत के पास बड़का गांव के एक बाग में शाहमल की सेना और अंग्रेजों के मध्य एक भयंकर युद्ध हुआ शाहमल अपने घोड़े पर एक अंगरक्षक के साथ लड़ रहा था। परंतु अंग्रेजों के बीच वह अकेला गिर गया। उसने अपनी तलवार के वह करतब दिखाए कि फिरंगी दंग रह गये। परंतु दुर्भाग्यवश शाहमल की तलवार गिर गई वह फिर भी भाले से दुश्मनों पर वार करता रहा। इसी दौर में उसकी पगड़ी खुलकर घोड़े के पैर में फस गई जिसके पश्चात उसे एक अंग्रेज ने घोड़े से गिरा दिया। एक अंग्रेज़ अफसर पारकर शाहमल को पहचानता था। शाहमल का सर काट लिया गया। शाहमल का सर गांव-गांव घुमाया गया। डनलप ने अपने कागजातों में लिखा है कि अंग्रेजों के खाकी रिसाले के एक हाथ में अंग्रेजो का झंडा यूनियन जैक और दूसरे हाथ में भाले पर शाहमल का सर टांग कर इलाके में घुमाया गया।8
इस प्रकार अंग्रेजों की नींद हराम करने वाले क्रांतिवीर बाबा शाहमल अपनी मातृभूमि और स्वाधीनता के लिए लड़ते-लड़ते बलिदान हो गये।
चैधरी अचल सिंह
चैधरी अचल सिंह जिला मेरठ (बागपत) की बड़ौत तहसील के अंतर्गत आने वाले गांव बाघु निरोजपुर के रहने वाले थे। अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति में महत्वपूर्ण सहयोग के कारण चैधरी अचल सिंह को क्रांतिकारियों में विशेष सम्मान प्राप्त था।9 चैधरी अचल सिंह अपने समर्थकों और क्रांतिकारियों में दादा अचलू के नाम से प्रसिद्ध थे।10 जिस समय मेरठ छावनी में भरतीय सैनिक अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह की तैयारियां कर रहे थे। उसी समय चैधरी अचल सिंह बिजरौल के महान क्रांतिकारी बाबा शाहमल के साथ मिलकर बागपत में अंग्रेजों के संहार और भारत को स्वतंत्रता कराने की योजना बना रहे थे।11 उन्होंने बाबा शाहमल के साथ यमुना के नाव के पुल को तोड़ने में भी सहयोग प्रदान किया था।12 परंतु गद्दारी करने वाले सभी जगह मौजूद होते हैं। चैधरी अचल सिंह भी इस से नहीं बच सके अपनों ने ही गद्दारी की।
अंग्रेजों के पिट्ठू और भारत के गद्दार बड़ौत के रहने वाले दुल्ला जाट ने अंग्रेजों को सावधान किया और अचल सिंह के विषय में जानकारी प्रदान की। जिस समय चैधरी अचल सिंह एक सभा को संबोधित कर रहे थे दुल्ला जाट ने अंग्रेजों को जगह की जानकारी प्रदान की और संकेत दिया उसी समय अंग्रेज तोपखाने सहित सभा स्थल पर आ धमके और सभा स्थल को चारो ओर से घेर कर फायरिंग शुरू कर दी, चैधरी अचल सिंह अपने अन्य साथियों के साथ भारत के स्वतंत्रता के लिए बलिदान हो गये। चैधरी अचल सिह की बाघु निरोजपुर में 1800 बीघा जमीन अंग्रेजों द्वारा जब्त कर ली गयी। चैधरी अचल सिंह का सहयोग करने वाले अन्य क्रांतिकारियों की जमीन भी हड़प ली गयी। दुल्ला जाट को अंग्रेजों का सहयोग और अपनों से गद्दारी के इनाम स्वरूप अंग्रेजों द्वारा हजारों बीघा जमीन दे दी गयी और बागपत के लोन मलकपुर तथा कनोली बिचपड़ी की जमीन दे दी। बागपत तहसील के दुल्ला जाट और करम अली अंग्रेजों के विशेष कृपा पात्र रहे।13
इस प्रकार भारत मां की स्वतंत्रता के लिए चैधरी अचल सिंह और अन्य देशभक्तों का सहयोग अतुलनीय है। उन्होंने हंसते-हंसते क्रांति की बलिवेदी पर अपने प्राण न्योछावर कर दिया।
सूरजमल
जुलाई 1857 ई. में बाबा शाहमल की शहादत हो गई थी। बाबा शाहमल की शहादत के पश्चात दाहिम्मा (धामा) गोत्र के जाटों ने फिरंगियों के दांत खट्टे करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। बाबा शाहमल की शहादत के बाद खेकड़ा के रहने वाले चैधरी सूरजमल दाहिमा या धामा ने क्रांति में नेतृत्व की कमान संभाली। चैधरी सूरजमल खेकड़ा की पट्टी चक्रसेनपुर के रहने वाले एक साधारण किसान थे। इनका 16 परिवारों का एक बड़ा कुनबा था। जिसके ये मुखिया थे। इनका साथ खेकड़ा के ही एक और पट्टी रूद्ध के मुखिया साहिब सिंह धामा ने दिया। दोनों ने मिलकर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये, तथा अंग्रेजों को चैन नहीं लेने दिया। सूरजमल अंग्रेजों का नामोनिशान मिटा देना चाहते थे। उनके नेतृत्व में बागियों ने कुछ अंग्रेज अफसर तथा उनकी पत्नियों को बंधक बना लिया था। सूरजमल और साहिब सिंह और उनके साथियों ने एक दर्जन से अधिक अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया। परंतु साहिब सिंह अंग्रेज औरतों को बंधक बनाने के खिलाफ थे। नारी की प्रतिष्ठा के प्रश्न पर साहिब सिंह धामा ने क्रांति के लिए अपना अलग ही रास्ता चुन लिया। सूरजमल ने अंग्रेज औरतों को मारा तो नहीं परन्तु उन्हे बंधक बनाकर खेकड़ा में बीबीसर तालाब के पास खेतों में काम करने के लिए विवश किया था।14 अंग्रेजों से किसानो को कितनी नफरत थी यह इसी से जाना जा सकता है कि किसानों ने उनकी स्त्रियों और बच्चों से चिलचिलाती दोपहरियों में खलिहानों में बैल हांकने का कार्य भी कराया था।15 जैसे ही अंग्रेजों को इस बात का पता लगा तो उन्होंने सूरजमल को समाप्त करने के लिए योजना बनाई और एक नियोजित ढंग से सूरजमल पर हमला कर दिया। सूरजमल समेत उनके साथियों और उनके कुनबे के भरता, सुरता, हरसा और राजे सहित 13 लोगों और उनकी औरतों को गिरफ्तार कर लिया गया। इन सभी की जमीन मकान आदि सभी कुर्क कर लिए गये। और इनको बागी घोषित कर फांसी की सजा सुनाई गयी। इनकी बेटी और बेटों को नग्न करके फलों की तरह उल्टा लटका दिया गया और उन्हें अनेक अमानवीय यातनाएं दी गयीं, असीम यातनाओं को सहते हुए उन्होंने दम तोड़ दिया। उनकी लाशों को हाथी के पैरों से बांधकर सारे खेकड़ा नगर में घुमाया गया। सूरजमल को उसके साथियों के साथ फांसी पर लटका दिया गया।16
ऐसे महान वीर क्रान्तिकारी स्वतंत्रता के इस महान यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देकर इस संसार से चले गए। धन्य है भारत माता के वीर सपूत। इन क्रान्तिवीरों की शहादत के पश्चात भी स्वतंत्रता संग्राम की जो मसाल ये जला कर गये थे, उसे आने वाले वीर सेनानियों ने प्रज्वलित रखा। परन्तु दुर्भग्य की बात हैं ज्यादातर पत्र-पत्रिकाओं, अखबारों, रेडियो, टीवी, पुस्तकों आदि में कुछ लोगों को ही क्रांतिकारी विद्रोही के रूप में वर्णित किया गया है, इस स्वतंत्रता समर में किसानों और गांव के सीधे-साधे लोगों ने भी अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह किया था, अनेक यातनाएं भोगी थी, और शहीद हुए थे। परंतु उनका वर्णन इतिहास में बहुत कम मिलता है। वे गुमनामी के अंधेरों में कहीं खो गये हैं।
आजादी प्राप्त करने के लिए सावरकर जी का यह कथन उचित ही प्रतीत होता हैं-
स्वतंत्रता संग्राम आरम्भ हो एक बार,
पिता से पुत्र को पहुंचे बार-बार।
भले हो पराजय यदा-कदा,
पर मिले विजय हर बार।।17
सन्दर्भ
1. दीपांकर आचार्य. स्वाधीनता संग्राम और मेरठ. जनमत प्रकाशन. 1993. पृ. 106,143।
2. सिंह तेजपाल. बिखरे मोती. समर पब्लिकेशंस. 2009।
3. सिंह तेजपाल. बिखरे मोती. समर पब्लिकेशंस. 2009।
4. सिंह तेजपाल. बिखरे मोती. समर पब्लिकेशंस. 2009।
5. सिंह तेजपाल. बिखरे मोती. समर पब्लिकेशंस. 2009।
6. सिंह तेजपाल. बिखरे मोती. समर पब्लिकेशंस. 2009।
7. सिंह तेजपाल. बिखरे मोती. समर पब्लिकेशंस. 2009।
8. सिंह तेजपाल. बिखरे मोती. समर पब्लिकेशंस. 2009।
9. दीपांकर आचार्य. स्वाधीनता संग्राम और मेरठ. जनमत प्रकाशन. 1993. पृ. 106,143।
10. अग्रवाल कुमार कपिल. 1857 की क्रान्ति में मेरठ एवं बुलन्दशहर जिलो में जनसहभागिता व स्थानीय नेतृत्व का अध्ययन. अप्रकाशित ग्रन्थ. 2009. पृ. 152।
11. दीपांकर आचार्य. स्वाधीनता संग्राम और मेरठ. जनमत प्रकाशन. 1993. पृ. 106,143।
12. अग्रवाल कुमार कपिल. 1857 की क्रान्ति में मेरठ एवं बुलन्दशहर जिलो में जनसहभागिता व स्थानीय नेतृत्व का अध्ययन. अप्रकाशित ग्रन्थ. 2009. पृ. 152।
13. दीपांकर आचार्य. स्वाधीनता संग्राम और मेरठ. जनमत प्रकाशन. 1993. पृ. 106,143।
14. सिंह तेजपाल. बिखरे मोती. समर पब्लिकेशंस. 2009।
15. दीपांकर आचार्य. स्वाधीनता संग्राम और मेरठ. जनमत प्रकाशन. 1993. पृ. 106,143।
16. सिंह तेजपाल. बिखरे मोती. समर पब्लिकेशंस. 2009।
17. सावरकर दामोदर विनायक. 1857 का स्वतंत्रता समर. 2017. पृ. 23।

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