
नारी धरती पर अवतरित
जन्मदात्री,सृष्टि, प्रकृति
तुम्हारे लिए।
नारी नेह-दया ज्वाला
बदलती है रूप
तुम्हारे लिए।
जब पाती है सम्मान
बने प्रीति-वृष्टि
तुम्हारे लिए ।
करती है वह संघर्ष
पाती उसमें हर्ष
तुम्हारे लिए।
देती शिशु को जन्म
सहती हर पीर
तुम्हारे लिए।
छोड़ देती है नौकरी
मुस्कुराती हर बार
तुम्हारे लिए।
करे विष-प्याला ग्रहण
करती है श्रृंगार
तुम्हारे लिए।
नारी दुर्गा -काली- चंडिका
भिन्न-भिन्न अवतार
तुम्हारे लिए।
नारी बेटी-बहू-माता
वह ही शक्तिस्वरूपिणी
तुम्हारे लिए।
देवी का ही अपमान
खोता है उत्थान
तुम्हारे लिए।
वर्तिका अग्रवाल ‘वरदा’
वाराणसी उ.प्र.