साहित्य के दैदीप्यमान नक्षत्र : राशदादा राश
भारतीय साहित्य के दैदीप्यमान नक्षत्र ,जीना चाहता हूं मरने के बाद फाउंडेशन एक भारत के संस्थापक _चेयरमैन अंतर्राष्ट्रीय प्रख्यात साहित्यकार राशदादा राश का नाम दुनिया में गुंजायमान है ।
इनका जन्म आरा (बिहार) में 15 दिसंबर ,1952 को हुआ था। इनका मूल नाम रासबिहारी सहाय है ।ये राशदादा के नाम से लिखते हैं। इनके पिता आनंद बिहारी सहाय एवं माता उषा सहाय दोनों स्वतंत्रता सेनानी थे। राश भैया का जन्म होना हम सभी भारतवासियों के लिए सौभाग्यशाली व गर्व की बात है। जिस प्रकार बाबू वीर कुंवर सिंह ने भारत की आजादी में आरा से नेतृत्व कर अभूतपूर्व योगदान दिया ,ठीक उसी समान राश भैया ने साहित्य में अलग जगाया । ये सदैव हमारे लिए अविस्मरणीय हैं।
इनकी लेखनी में वतन धर्म एवं संस्था के प्रति जागरूकता कूट-कूट कर परिलक्षित होता है। आदरणीय राश भैया साहित्यकार के साथ-साथ एक सच्चे देशभक्त हैं ।ये अपने देश भारत के लिए चंदवारा कैंप जेल की सजा भी काटे ,लेकिन कष्टों का तनिक भी परवाह नहीं किए।
इनकी रचनाएं गद्य एवं पद्य विधाओं में देश-विदेश के विभिन्न पत्र _पत्रिकाओं में छपकर चार चांद लगाया है ।इनके सृजन की विधाएं हैं _आलेख ,कविता, गीत, गजल ,समीक्षा ,उपन्यास इत्यादि। इन्होंने इन विधाओं में महत्वपूर्ण कार्यकर पाठकों के बीच प्रशंसा पाया है। ऐसे तो राश भैया लगभग सभी विधाओं में रचना किए हैं, लेकिन मुझे आलेख एवं काव्य काफी भाते हैं। ये हिंदी ,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा में साहित्य सृजन किए ।मैं इनके काव्य प्रस्तुति पर आत्म विभोर हो जाता हूं ।ये साहित्य जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके हैं ।
इनकी शिक्षा बीए और एलएलबी तक हुई। इन्होंने साहित्य के माध्यम से राष्ट्र के उत्थान के लिए अथक प्रयास किया। ये साहित्य के क्षेत्र में महती सेवा कर पाठकों को सही मार्ग प्रशस्त किए।इनकी लेखनी में देश प्रेम की अविरल धारा प्रवाहित होती है।
इनकी बाह्य रचना सुडौल शरीर ,अच्छी कद _काठी , गेहूंआ रंग और सारगर्भित आवाज है ।ये एक नेक इंसान हैं ।हम लोगों को हमेशा इन पर नाज़ है। हमें इनसे सीख लेनी चाहिए ।
राशदादा राश की शादी 22 फरवरी, 1976 में मीरा मां सहाय से बगोदर (झारखंड )में हुई थी। इनकी धर्मपत्नी मीरा मां सहाय समाजसेविका और धर्म परायण महिला थीं ।इनका जीना चाहता हूं मरने के बाद फाउंडेशन एक भारत संस्था में अहम योगदान था ।दोनों के प्रेम अटूट थे ।ये प्रथम कोरोना कल में 21 जुलाई ,2020 को काल _कवलित हो गईं।मैं उनके प्रति विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। वे अब हमारी स्मृतियों के बीच हैं।
आदरणीय राश भैया के दो पुत्र और और एक पुत्री हैं ।सभी निजी संस्थानों में ऊंचे पदों पर आसीन हैं ।जिनके नाम हैं _राघवेंद्र राज ,निधि राज और पूजा राज ।ये सभी अपने पिता के नाम को आगे बढ़ा रहे हैं।
जीना चाहता हूं मरने के बाद फाउंडेशन एक भारत की यात्रा संपूर्ण भारत में अलख जगाते हुए गिरिडीह झारखंड से शुरू होकर मध्य रात्रि 18 फरवरी, 1972 को कर्नाटक के बेंगलुरु में स्थापित हो गई ।यह एक साहित्य_ संस्कृति को समर्पित संस्था है ।इसकी स्थापना का श्रेय आदरणीय राशदादा राश को जाता है ।इन्हें लोग प्यार से दादा कह कर पुकारते हैं।यह संस्था अब एक अंतरराष्ट्रीय संस्था के रूप में पहचान बना चुकी है ।राश भैया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे और अग्रसर करने के प्रति प्रयासरत रहते हैं ।यह देश_ विदेश के साहित्यिक आयोजन में हमेशा भाग लेते रहते हैं ।इस प्रकार ये साहित्य एवं राष्ट्र के प्रति सदैव तत्पर रहते हैं ।येअपना नाम, संस्था का नाम और भारत के नाम के लिए सदैव जागरूक तथा कार्यरत रहते हैं ।
राश भैया ने मुझसे कहा कि कविता एक भावपूर्ण कला है, जिसमें पाठक वर्ग जितना गोता ,लगाएंगे मोती उतना ही सुंदर पाएंगे।
आदरणीय राशदादा राश
ने जीना चाहता हूं मरने के बाद फाउंडेशन एक भारत संस्था पर 48 वर्ष की अवधि में 51 खण्डों में काव्य सृजन किए,जो अपने आप में गर्व एवं महान उपलब्धि है।
राशदादा राश
निम्नलिखित संस्था से संबद्ध हैं, जहां इनका अविस्मरणीय योगदान रहता है। जैसे जीना चाहता हूं करने मरने के बाद फाउंडेशन एक भारत ,बेंगलुरु (संस्थापक_चेयरमैन) अखिल भारतीय साहित्योपचार कला संस्कृति महाकुंभ, बेंगलुरु( संस्थापक _चेयरमैन) जीना साहित्यिक पत्रिका (प्रधान संपादक) आदि शक्ति फाउंडेशन ,दिल्ली( वरिष्ठ संरक्षक) कर्नाटक जर्नलिस्ट फ्रीलांसर (स्टेट प्रेसिडेंट)देवशील मेमोरियल, पटना (वरिष्ठ संरक्षक) लेख्य मंजूषा ,पटना (संरक्षक) आरोह _अवरोह पत्रिका,पटना( नियंत्रण एवं संयोजन प्रमुख )इत्यादि। आदरणीय राशदादा राश की प्रथम रचना 1962 में चीन युद्ध के समय लिखी गई ।जिसके बोल थे _ऐ मां तेरे रक्षक हम, मानेंगे तेरे सब नियम ।इनकी दो पुस्तक 1972 में प्रकाशित हुई। जिनके नाम हैं _किराए की मौत (नाटक) और कूट का डब्बा( उपन्यास) और भी कई पुस्तक अपेक्षित हैं जैसे कब आओगे दादा तुम( इस पुस्तक में पेड़_ पौधे एवं प्रकृति से वार्तालाप है ।) साब को पोंछा मार छोटू (राशदादा राश इस पुस्तक में अनसेंसर्ड के नाम से अपनी आत्मकथा लिख रहे हैं। इस पुस्तक में वे अपनी अच्छी_ बुरी आदतों को पाठकों से प्रकट करने जा रहे हैं ।)शीघ्र राशदादा राश की कृति जीना चाहता हूं मरने के बाद खंड 01और खंड _02(काव्य) पुस्तक एवं प्रियंवदा( गीत काव्य )पुस्तक प्रकाशित होने वाली है। इनकी रचना का प्रकाशन एवं प्रसारण होता रहता है राश भैया अब तक 14000 से अधिक रचनाएं लिख चुके हैं ,जिसमें बहुत प्रकाशित प्रसारित हो चुकी हैं।
राश भैया 1974 के संपूर्ण क्रांति में लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी के साथ सक्रिय रहे, जो कभी भुलाया नहीं जा सकता। इन्हें मैं लगभग 5 वर्ष से जान रहा हूं ।ये हमारे साहित्यिक गुरु एवं प्रेरणास्रोत हैं ।इनसे मुझे हमेशा परामर्श मिलते रहता है।
राश भैया रचित यह गीत की पंक्ति काफी प्रसिद्ध एवं जन-जन की प्यारी है_ जिंदगी में प्यार का प्रवाह होना चाहिए ।ये साहित्य के द्वारा साहित्य एवं राष्ट्र का भरपूर सेवा कर रहे हैं ।इनके रोम _रोम में साहित्य और देश प्रेम बसता है। ये हर पल इसके बारे में चिंतन व परिश्रम करते रहते हैं ,जिससे सर्व कल्याण हो सके ।
आदरणीय राश भैया साहित्य व राष्ट्र को सर्वोपरि मानते हैं। यही कारण है कि ये पुरस्कार एवं सम्मान को बड़ा नहीं मानते ।ये इसके पीछे कभी नहीं भागते।ये पाठकों के
प्यार को अपना अमूल्य धरोहर मानते हैं। इन्होंने मुझसे कहा कि मैं साहित्य और राष्ट्र के लिए सदैव सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार रहता हूं।
इनके प्रति स्वरचित चार पंक्तियां दृष्टव्य हैं_ राश भैया हैं महान, इनकी विशिष्ट है पहचान। सारे जहां के समान, लोग इन्हें देते सम्मान।
दुर्गेश मोहन
बिहटा, पटना (बिहार )