समाज

भारत संसार का आदर्श हो
- editor
- October 26, 2023
काफी पुरानी बात है हमारे दादा जी के पास एक बड़ा मकान था जिसके वो इकलौते वारिस थे, बच्चे छोटे थे इसलिए रहने के लिए काफी था। उसी बड़े मकान से सटे हुए हमारे दो छोटे मकान और थे जो खाली पड़े थे । एक दिन एक औरत अपने चार छोटे छोटे बच्चो के साथ […]
Read More
स्वास्थ्य,शांति और सामंजस्य जीवन की मूल आवश्यकता: स्वामी निरंजनानंद
- editor
- October 19, 2023
कुमार कृष्णन विश्व योग पीठ के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा है कि वर्तमान मे मानव जीवन की सबसे मूल आवश्यकता है— स्वास्थ्य,शांति और सामंजस्य। इसे बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है। नये — नये रोग जन्म ले रहें हैं। बच्चे तक इसका शिकार हो रहे हैं। वे मुंगेर दशभूजी स्थान में दो […]
Read More
मानवीय समानता की संभावनाओं का उपहास उड़ाता यथार्थ
- editor
- July 1, 2023
निमिषा सिंह बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर कहते थे “औरत किसी भी जाति की हो अपनी जाति में उसकी वही स्थिति होती है जो एक दलित औरत की समाज में”। मौजूदा समय में जहां गैर दलित स्त्रियां अपने अधिकारों के लिए पितृ सत्तात्मक समाज से लड़ रही हैं। आज भी दोयम दर्जे का जीवन जी रही […]
Read More
लैंगिक असमानता की खाई पाटता भारत
- editor
- July 1, 2023
-अरविंद जयतिलक विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की वार्षिक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट, 2023 सुखद और राहतकारी है कि लैंगिक समानता के मामले में भारत का स्थान 146 देशों में 127 वां हो गया है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वर्ष की तुलना में आठ स्थान का सुधार हुआ है। पिछले वर्ष भारत 146 देशों की सूची […]
Read More
मृत्यु भोज कुप्रथा है
- editor
- June 20, 2023
मृत्यु भोज करने के बजाए अपने प्रियजन की जीते जी बेहतरीन देखभाल करना , रहन सहन, खानपान, तथा स्वस्थ्य का पूरा ख्याल रखना ही काफी है – ओजस्वी चितोडगढ 20 जून जिस कुप्रथा के कारण जमीन जायदाद बिक जाऐ, कर्ज के भार में पुरा परिवार दब कर रह जाऐ, इस आत्मघाती कुप्रथा के कारण बच्चो […]
Read More
हमारे बुजुर्ग
- editor
- September 19, 2022
शाश्वत सत्य में,एक सत्य वृद्धावस्था है। वृद्धावस्था उस संधिकाल के समान है,जिस तरह सूर्य उषाकाल से लेकर सांध्यकाल तक अपनी किरणों के द्वारा सभी प्राणियों में जीवन स्रोत प्रवाहित कर, अस्ताचलगामी हो सागर में निमग्न होने के लिए उन्मुख होता है। यह प्रकृति का नियम है, जिसका अनुसरण प्रकृतिस्थ सभी प्राणियों को करना होता है। […]
Read More
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
- editor
- September 18, 2022
हिन्दी “”””””” (ताटंक, ककुभ और लावणी छन्दों में) मीठी मीठी भाषाओं से शोभित है परिवेश सखे। फिर भी बिना राष्ट्र भाषा के लगता गूँगा देश सखे।। बैठी हुई देववाणी की ये सन्तानें सहोदरी।। भारतमाता के सुकण्ठ परअलंकार रस छन्द भरी। कन्नड़ कोंकणी कश्मीरी उर्दू उडिया नेपाली। मलयालम,मैथिली मणिपुरी मधुर मराठी बंगाली।। तमिल तेलुगू सिंधी हिन्दी […]
Read More