वैश्विक आतंकवाद पर आभासी चोट!

ऋषभदेव शर्मा
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के आभासी शिखर सम्मेलन की मेजबानी करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समुचित ज़ोर देकर वैश्विक आतंकवाद का मुद्दा उठाया। इसके महत्व और प्रासंगिकता से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि जब तक पाकिस्तान आतंकियों की पनाहगाह और चीन पाकिस्तान का सरपरस्त बना रहेगा, तब तक ऐसी तमाम चर्चाएँ ज़बानी जमा खर्च ही बनी रहने को अभिशप्त रहेंगी। गौरतलब है कि भारत के प्रधानमंत्री ने आतंकवाद का यह मुद्दा इस सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ़ सहित अन्य सदस्य देशों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में उठाया। उन्होंने सही ध्यान दिलाया कि वर्तमान समय में वैश्विक स्थिति एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर है। विवादों, तनावों और महामारी से घिरे विश्व में संगठन के देशों को यह फैसला करना होगा कि क्या वे अपने लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने और चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हैं। उन्होंने जब यह सवाल किया कि क्या यह ऐसा संगठन है जो आगे के बदलावों के हिसाब से बदल रहा है, तो उनका इशारा कहीं न कहीं पाकिस्तान और चीन के आतंकवाद-हितैषी रुख की ओर भी था। इन दोनों का यह रुख बड़ी हद तक शंघाई सहयोग संगठन को निष्प्रभावी बना रहा है न?
सयाने याद दिला रहे हैं कि शंघाई सहयोग संगठन के देशों में दुनिया की करीब 40 प्रतिशत आबादी रहती है और दुनिया के कुल व्यापार का करीब 24 प्रतिशत इन्हीं देशों के बीच होता है। ईरान के शामिल हो जाने से यह हिस्सेदारी अब और भी बढ़ जाएगी। यही वजह है कि इस संगठन की स्थापना के समय से ही यह कहा जाता रहा है कि इसमें शामिल देश आपस में मिल कर काम करें तो पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था को बड़ी चुनौती दे सकते हैं। लेकिन ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा क्योंकि चीन और पाकिस्तान का रवैया गतिरोधक साबित होता रहा है। दरअसल चीन अपनी विस्तारवादी महत्वाकांक्षा के लिए पाकिस्तान को मोहरा बनाए हुए है। इस तरह वह भारत को दबाव में रखना चाहता है। जगजाहिर है कि संयुक्त राष्ट्र में वह किस तरह उन अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की ढाल बना रहता है जिन्हें पाकिस्तान का संरक्षण प्राप्त है। पाकिस्तान के बारे में भी दुनिया जानती है कि आतंकी संगठनों के जरिए भारत के सीमावर्ती इलाकों, खासकर जम्मू-कश्मीर, में अशांति बनाए रखना उसकी सर्वोपरि प्राथमिकता है।
याद रहे कि शंघाई सहयोग संगठन का मुख्य प्रयोजन नई विश्व व्यवस्था में मध्य एशिया को मुख्य भागीदार के रूप में उभारना है। लेकिन, जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, आतंकवाद इस क्षेत्र के विकास से लेकर वैश्विक शांति तक के लिए प्रमुख खतरा बना हुआ है। इस चुनौती से निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई ज़रूरी है। सच तो यह है कि आतंकवाद से न केवल भारत, बल्कि खुद पाकिस्तान, अफगानिस्तान और कुछ हद तक रूस भी प्रभावित है। इससे इस समूचे क्षेत्र की शांति और अर्थ व्यवस्था पर चिंता के बादल मँडराते रहते हैं। आतंकवाद चाहे किसी भी रूप में हो, किसी भी अभिव्यक्ति में हो, हमें इसके विरुद्ध मिलकर लड़ाई करनी होगी। दुर्भाग्य है कि कुछ देश सीमापार आतंकवाद को अपनी राष्ट्रीय नीति के तौर पर इस्तेमाल करते हैं तथा आतंकवादियों को पनाह देते हैं।
कहने की ज़रूरत नहीं कि जब भारत के प्रधानमंत्री कहते हैं कि आतंकवाद के समर्थकों के लिए दोहरे मापदंड नहीं रखने चाहिए, तो उनका सीधा इशारा पाकिस्तान और चीन की ओर ही होता है। इसलिए शहबाज़ शरीफ़ और शी जिन पिंग की उपस्थिति में, वैश्विक आतंकवाद पर चोट करने का आह्वान दूसरे शब्दों में इन दोनों से अपना रवैया बदलने को कहने के समान है। यह बात अलग है कि कुत्ते की दुम टेढ़ी ही रहने वाली है!

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