निमिषा सिंह
हमारा देश वैसे तो हर क्षेत्र में विकास के पथ पर अग्रसर है लेकिन फिर भी स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात से ही देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है जिसका प्रमुख कारण है जनसंख्या में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि। परिणाम धरती पर अत्यधिक दबाव, बेरोजगारी, अन्न की कमी ,संसाधनों की कमी और स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधाओं की कमी।थामस माल्थोस जैसे विद्वान ने कहा था की पृथ्वी पर संसाधन सीमित है किंतु इसकी चिंता किए बिना संसाधनों की तुलना में मानव जाति की आबादी कई गुना बढ़ जाएगी निसंदेह स्थिति विस्फोटक होगी।
इस विषय पर काफी बातें और इससे निपटने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। आज मैं बढ़ती आबादी की वजह से धार्मिक स्थलों पर भक्तों या पर्यटकों को जो परेशानी झेलनी पड़ती है उसके विषय में बात करूंगी। पिछले दिनों मेरा हरिद्वार, वृंदावन और खाटू श्याम धाम जाना हुआ। सैलानियों की बढ़ती संख्या के कारण सभी धार्मिक स्थलों पर ट्रैफिक समस्या आसानी से देखी जा सकती है इसका अनुभव हमने आपने सब ने किया होगा। हमारा ज्यादातर वक्त ट्रैफिक जाम में ही जाया हो जाता है और कई बार तो ट्राफिक आउट ऑफ कंट्रोल भी हो जाता है जिससे स्थानीय लोगों का तो जीना दूभर हो ही जाता है साथ भक्त जन भी खासे परेशान दिखाई देते हैं।
हालांकि इस सभी जगह पर स्थानीय प्रशासन द्वारा ट्रैफिक से निपटने की हर संभव कोशिश दिखाई दी मुझे। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बड़ी तादाद में पुलिसकर्मी की तैनाती भी दिखी। लेकिन जहां तक मेरा अनुभव रहा ट्रैफिक जाम खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था। भीड़ से निपटने में प्रशासन बेबस और लाचार दिखा। इन सभी धार्मिक स्थलों पर कई जगहों पर रोड के किनारे लंगर चल रहा था। भारी तादाद में लोग धार्मिक स्थलों पर जाते हैं तो स्वाभाविक है लंगरों में भी जाते हैं। समस्या तब उत्पन्न होती हो जब इन लंगरों में इस्तेमाल होने वाली प्लेट और अन्य सामग्रियां यहां वहां फेंक दिए जाते हैं जो पर्यावरण नुकसान का कारण बनते हैं। यही नहीं कई बार तो ऐसे धार्मिक आयोजनों के मकसद से आए लोग भीड़ की आड़ में अवांछनीय कृत्यों को भी अंजाम दे डालते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में झुंड पर्यटन या यूं कहें कि सामूहिक पर्यटन में तेजी आई है लेकिन यह प्रदेश की प्राकृतिक सुंदरता को खत्म कर रही है। जाहिर है स्थानीय परिवहन, सड़के और जलापूर्ति पर असहनीय बोझ आ जाता है। यह सही है कि किसी भी पर्यटन स्थल या धार्मिक स्थल पर पर्यटन कारोबार चलता है। स्थानीय कारोबारियों के चेहरों पर मुस्कुराहट बिखेरती है पर इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि धार्मिक स्थलों पर श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ प्रशासन के माथे की शिकन बढ़ा देती है। समय रहते झुंड पर्यटन के चलते पेश आ रही परेशानियों पर लगाम नहीं लगाया गया तो निश्चित तौर पर अगले 15 से 20 वर्षों में पहाड़ों पर मौजूद धार्मिक स्थलों का अस्तित्व खतरे में होगा।
समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब धार्मिक स्थलों पर भीड़ भाड़ की वजह से कई वायरल बीमारियों का खतरा बना रहता है। पर्यटक अपने साथ डेंगू, स्वाइन फ्लू वायरल साथ लेकर आते है। भारी भीड़ में संपर्क में आने की वजह से इन बीमारियों के बढ़ने का खतरा बना रहता है।
बढ़ती आबादी पर्यावरण संतुलन के लिए तो हानिकारक है ही साथ ही पहाड़ों पर स्थित धार्मिक स्थलों के लिए भी घातक साबित हो रहे है। हम हमेशा कहते है कि पर्यटन और विकास के नाम पर प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
अगर गंभीरता से चिंतन करे तो इन सभी समस्याओं का जड़ सिर्फ और सिर्फ बढ़ती आबादी है।
केरल का पुंत्तीगल देवी मंदिर हादसा हो या पिछले वर्ष वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी के अवसर पर हुआ हादसा। इन दोनों हादसों के लिए अनियंत्रित भीड़ जिम्मेदार थी।
मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी काफी भयावह रहा। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में दर्शन के लिए प्रवेश तो कर लिया मैंने पर बाहर निकलने में खासी परेशानी झेलनी पड़ी। यकीन मानिए क्षण भर को तो यहां तक सोच लिया मैंने कि अगर भगदड़ हुई तो आज मेरा बचना मुमकिन नही। इतना ही नहीं भीड़ इतनी थी कि चढ़ाए गए प्रसाद और मालाएं स्वयं भक्तो के ही पैरों के नीचे कुचले जा रहे थे। छोटे बच्चों को सांस लेने में दिक्कतें आ रही थी। खैर ईश्वर की कृपा रही और मैं सही सलामत मंदिर से बाहर निकल पाई।
देश की आबादी तेजी से बढ़ रही है लेकिन धार्मिक स्थलों का क्षेत्रफल लगभग वही है जो कभी उनके निर्माण के समय था। वहां होने वाले आयोजनों में बढ़ती भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं फिर भी इंतजाम पर्याप्त नहीं हो पाते। कारण बढ़ती आबादी।
एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार भारत में 79 प्रतिशत भगदड़ धार्मिक स्थलों पर होती है। धार्मिक स्थलों में हम अपने परिवार के साथ सलामती की दुआएं मांगने जाते हैं लेकिन जब धार्मिक स्थल ही मौत की रंग भूमि में तबदील हो जाते हैं उस वक्त श्रद्धालुओं के पास हाथ मलने के अलावा कुछ और बाकी नहीं रहता है। स्थानीय प्रशासन और सरकार को दोष मढ़ना बहुत आसान है पर गहराई से सोचा जाए तो कहीं ना कहीं हम भी हादसों के लिए उतने ही जिम्मेदार है।
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पर्यावरण
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- editor
- August 26, 2023
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