
प्रवासी पंजाबी कहानी
मूल – रविंदर सिंह सोढी
अनु – प्रो. नव संगीत सिंह
शिफाली ने मोबाइल का अलार्म बंद कर दिया। शनिवार का का दिन था, इसीलिए वह देरी से उठी।
कोरोना के कारण जब से उसने घर से आॅफिस का काम करना शुरू किया था, तब से वह सुबह देर से ही उठती थी। पहले तो जल्दी उठकर तैयार होना, नाश्ता बनाना, दोपहर का खाना पैक करना, आॅफिस पहुंचने के लिए कभी बस तो कभी ट्रेन की आपाधापी पड़ी रहती थी। अब वह सुबह उठकर एक कप चाय पीते हुए कुछ देर अपना मोबाइल फोन चेक करती, फिर जरूरी काम निपटा कर अपना लैपटाॅप आॅन करती और आॅफिस के काम में जुट जाती। घंटा-डेढ़ घंटे तक काम करने के बाद वह नहाती और नाश्ता करती और फिर से अपने काम में व्यस्त हो जाती। दोपहर में लंच के लिए उसके पास सिर्फ आधा घंटा ही होता था। वह जल्द ही इस रूटीन से भी ऊब गई। आॅफिस जाते समय तो समय पर तैयार होना, बस-ट्रेन के सफर में कुछ समय गुजर जाता और कुछ लोगों से मेल-जोल हो जाता, लेकिन घर से काम करते हुए उसे घर की चारदीवारी में कैद होने से घबराहट होने लगी। हां, शाम को घर के पास वाले पार्क में टहलने जरूर जाती थी। दो-चार जान-पहचान की लेडीज से मिलते हुए कुछ समय बीत जाता। लेकिन घर आकर उसे बेचैनी-सी होती। आख़िर टीवी या मोबाइल के साथ कितना समय बिताया जा सकता है! कभी-कभी वह सोचती कि अकेले व्यक्ति की भी कोई जिंदगी है?
वह बिस्तर से उठकर वाॅशरूम गई और फिर किचन में जाकर चाय बनाने लगी। चाय का कप बिस्तर की बगल वाली टेबल पर रखकर मोबाइल से व्हाट्सएप मैसेज और फिर ईमेल चेक किया। केवल एक ही ईमेल था, उसकी कंपनी के बाॅस का। केवल एक ही पंक्ति लिखी थी, ‘सेंड द प्राजेक्ट रिपोर्ट इमीडीएटली।’ इसे पढ़ते ही उसके मुँह से निकला, ‘बास्टर्ड!’
उसने जल्दी से अपनी चाय ख़त्म की और अपना लैपटाॅप आाॅन किया। यह तो अच्छा हुआ कि उसने कल रात ही पूरी रिपोर्ट टाइप कर ली थी और रिपोर्ट के साथ संलग्न के रूप में भेजने के लिए फोटो को एक अलग फोल्डर में डाल दिया था। अब तो उसे बस अपनी टिप्पणी ही टाइप करनी थी।
इतने में उसके मोबाइल पर एक काॅल आई। उसने झट से मोबाइल देखा, किसी अनजान नंबर से काॅल थी। शिफाली ने झुंझलाकर फोन काट दिया और अपना काम करने लगी। पांच मिनट बाद उसी नंबर से फिर काॅल आई। शिफाली ने गुस्से में मोबाइल ही बंद कर दिया। लगभग चालीस मिनट में उसने अपनी टिप्पणी टाइप की और राहत की सांस लेते हुए रिपोर्ट ईमेल कर दी। इस समय तक उसे भूख भी लग चुकी थी। वह वाॅशरूम में नहाने चली गयी और उसके बाद किचन में। उसने फ्रिज खोलकर देखा कि शायद वहां कुछ पड़ा हो, लेकिन उसे निराश होना पड़ा। उसने फ्रीजर से चिकन नगेट्स निकाले और उन्हें माइक्रोवेव में गर्म होने के लिए रख दिया और फिर काॅफी बनाने लगी।
नाश्ता करने के बाद उसने टीवी आॅन किया, लेकिन तभी उसे याद आया कि किसी अनजान नंबर से काॅल आई थी। उसने मोबाइल आॅन किया तो पता चला कि उसी नंबर से तीन और काॅल आई थीं। वह सोचने लगी कि यह कौन हो सकता है? न चाहते हुए भी उसने वह नंबर मिलाया। दूसरी ओर से एक स्त्री-स्वर आया, ‘आपको डिस्टर्ब करने के लिए क्षमा चाहती हूं।’
‘पहले आपकी काॅल अटेंड नहीं कर पाने के लिए मुझे माफी मांगनी चाहिए। दरअसल, मुझे कंपनी के बाॅस को जल्दी से एक रिपोर्ट भेजनी थी, वही तैयार कर रही थी। मैं अभी खाली हुई हूं। अब बताइए?’
‘मैं शैली बोल रही हूं। मैं मेलबर्न में रहती हूं, आज मैं आपके शहर में हूं। आपसे मिलना चाहती हूं।’
शिफाली को बहुत आश्चर्य हुआ कि वह शैली नाम की किसी महिला को नहीं जानती थी। ‘क्या आप मुझसे मिलने के लिए ही मेलबर्न से सिडनी आईं हैं?’
‘पहली बात तो आप मुझे मेरे नाम से बुला सकती हैं। दूसरी बात, सिडनी किसी दूसरे काम से आई थी, सोचा आपसे भी मिल लूँ।’ दूसरी तरफ से आवाज आई।
‘आपको मेरा मोबाइल नंबर कहाँ से मिला और आपको मुझसे क्या काम है?’ शिफाली ने पूछा।
‘यदि मैं आपसे मिलकर आपके प्रश्नों का उत्तर दूं तो आपको कोई आपत्ति तो नहीं न! मैं पंद्रह-बीस मिनट में आपके पास पहुंच जाऊंगी। आपका एड्रेस मेरे पास है।’
शिफाली ने अनिच्छा से सहमति दे दी। वह सोचने लगी कि वह अनजान लड़की कौन होगी और वह मुझसे क्यों मिलना चाहती है। लेकिन उसने सोचा कि शैली के आने से पहले वह अपना बेडरूम और लिविंग रूम ठीकठाक कर ले। उसने जल्दी से अपना बिस्तर ठीक किया और लिविंग रूम को भी साफ-सुथरा कर लिया। किचन तो उसने रात को ही सेट की थी। वह अभी इन्हीं कार्यों से निवृत्त हुई थी कि डोरबेल हुई। उसने जाकर दरवाजा खोला। बाहर एक 28-30 साल की खूबसूरत युवती खड़ी थी। जींस और गहरे रंग के टाॅप में वह और भी क्यूट लग रही थी। इससे पहले कि शिफाली कुछ कहती, वह खुद ही बोल पड़ी, ‘शैली।’ यह कहते हुए वह शिफाली से बहुत अपनत्व से गले मिली जैसे वे दोनों एक-दूसरे को बहुत समय से जानती हों।
दरवाजे के अंदर आकर शैली ने अपने स्पोर्ट्स शूज उतारे और शिफाली के पीछे-पीछे लिविंग रूम में आकर बैठ गई। उसने खुद ही बोलना शुरू किया, ‘साॅरी, अचानक आपके पास आकर आपका वीकएंड बर्बाद कर दिया।’
‘कोई बात नहीं, वीकएंड मेरे लिए बोरिंग ही होता है। आपके आने से समय अच्छा गुजरेगा, लेकिन…’
‘बाकी बातें बाद में, पहले एक गिलास पानी,’ शैली ने टोकते हुए कहा।
शिफाली बिना कुछ कहे किचन में गई और दो गिलास जूस ले आई।
जूस पीते समय दोनों कुछ नहीं बोलीं, लेकिन शिफाली बार-बार प्रश्नवाचक नजरों से शैली को देख रही थी। यह बात शैली को भी उसके चेहरे के हावभाव से समझ आ गई। उसने जूस पिया और खाली गिलास मेज पर रख दिया। अब वह शिफाली की तरफ देख कर हल्का सा मुस्कुरा दी। शिफाली ने भी चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लाने का नाटक किया।
‘मैं तुम्हें अब और सस्पेंस में नहीं रखूंगी।’ शैली ने कहा।
‘अगर तुम भी मुझे नाम से बुलाओगी तो अच्छा लगेगा।’
‘सो कांयड आॅफ यू।’ इतना कह कर शैली कुछ देर के लिए चुप हो गई और फिर बोली, ‘मुझे तुम्हारा नंबर और एड्रेस अर्जुन से मिला।’
‘क्या? यू मीन अर्जुन सूद! उसने तुम्हें मेरे पास क्यों भेजा है?’ शिफाली ने एक साथ कई सवाल पूछे। दरअसल, अर्जुन का नाम सुनते ही उनके माथे पर झुर्रियां पड़ गई थीं।
शिफाली का व्यवहार देखकर शैली उसके पास गई और उसका हाथ दबाकर कहा, ‘रिलेक्स शिफाली, रिलेक्स! मुझे गलत मत समझो। अर्जुन ने मुझे तुम्हारे पास नहीं भेजा। बिलीव मी।’
‘तो फिर तुम्हें मेरे पास किसने भेजा है?’ शिफाली अभी भी गुस्से में थी।
‘मुझे पता है कि तुम्हारा और अर्जुन का तलाक का केस चल रहा है।’ इतना कहकर वह चुप हो गई और शिफाली के चेहरे की ओर देखने लगी। वह अभी तक नार्मल नहीं हुई थी। ‘शिफाली, मेरी उससे शादी की बातचीत चल रही है।’
‘क्या?’ शिफाली तुरंत ऊंची आवाज में बोली, लेकिन जल्द ही उसे अपने बोलने के तरीके पर पछतावा हुआ और वह चुप हो गई। थोड़ी देर बाद वह नार्मल हुई और बोली, ‘अगर तुम्हारी उससे बातचीत चल रही है तो मेरे पास किसलिए आई हो?’
‘मैं तुम्हें सब कुछ विस्तार से बताती हूं। मेरे पेरेंट्स ने एक मैरिज वेबसाइट पर मेरा बायोडाटा डाला था। उस मामले में अर्जुन का रिस्पाॅन्स मिला। जब मैं…’
‘क्या तुम भी डायवोर्सी हो?’ शिफाली ने उसकी बात काटते हुए पूछा।
‘नहीं। उसने फोन करके अपने बारे में सब कुछ बताया था और यह भी बताया कि उसका अपनी पहली पत्नी से तलाक का केस चल रहा है और तुम दोनों आऊट आॅफ कोर्ट भी सेटलमेंट करने की कोशिश कर रहे हो।’
‘हम्म!’
‘मुझे अर्जुन से ही तुम्हारा मोबाइल नंबर और एड्रेस मिला। मैं उसे दो बार मिली भी हूं। मैंने उससे कह दिया था कि मैं बात को आगे बढ़ाने से पहले तुम्हारी पहली वाइफ से बात करना चाहती हूं। वास्तव में शिफाली, मुझे और मेरे पेरेंट्स को उसकी बाकी सभी बातें ठीक लगीं। आजकल डायवोर्स वाली बात ज्यादा मायने नहीं रखती। लेकिन मैं वास्तव में तुमसे मिलकर इसके बारे में कुछ जानकारी लेकर ही कोई निर्णय लेना चाहती हूं।’
‘देखो शैली, हम एक दूसरे को नहीं जानते। मेरा अर्जुन के साथ तलाक का केस चल रहा है। तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हें उसके बारे में सही जानकारी दूँगी?’
‘सबसे पहले, यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि हम किसी जानने वाले को तो हमेशा गलत राय दे सकते हैं, लेकिन किसी अजनबी को नहीं। दूसरी बात, अर्जुन ने मुझे तुम्हारे बारे में जो बताया है, मैं उससे आश्वस्त हूं कि तुम मेरा सही मार्गदर्शन करोगी।’ शैली ने शिफाली के दोनों हाथ पकड़कर कहा।
‘किसी अनजान व्यक्ति पर इतना भरोसा नहीं करना चाहिए।’
‘एक बात बताओ शिफाली, क्या तुम्हारी कोई छोटी बहन या भाई हैं?’
‘नहीं, मैं अपने माता-पिता की इकलौती बेटी हूं।’ शिफाली ने आह भरते हुए कहा।
‘ओह! यदि तुम्हारी कोई छोटी बहन होती और वह अपने जीवन के किसी महत्वपूर्ण निर्णय पर तुमसे सलाह मांगती, तो क्या तुम उसे गलत राय देती?’ शैली ने बहुत अपनत्व से कहा।
शैली के इस सवाल का उसके पास कोई जवाब नहीं था। वह शैली का चेहरा देखती रही। वह किचन में गई और एक गिलास पानी पिया और फिर चाय बनाने लगी। दरअसल वह कुछ समय के लिए शैली से दूर रहना चाहती थी। वह सोच रही थी कि अर्जुन ने पता नहीं शैली को उसके बारे में क्या कहा होगा कि शैली उस पर इतना भरोसा कर रही है। शैली भी उसके पास किचन में ही आ गयी।
‘कितना मीठा लोगी?’
‘फीकी।’ इतना कहकर शैली ने दो मग उठाये और शिफाली के पास रख दिये।
दोनों अपने-अपने चाय के मग लेकर लिविंग रूम में सोफे पर बैठ गईं और चाय पीने लगीं। चाय पीते समय शिफाली ने शैली से नजरें नहीं मिलायीं। दरअसल, उसके अंदर एक खलबली सी मची हुई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि शैली को अर्जुन के बारे में क्या बताए और क्या नहीं। उसके पास कहने के लिए बहुत कुछ था- अच्छा भी, बुरा भी। एक बार तो उसने शैली को अर्जुन से आगे बात बढ़ाने से रोकने का फैसला भी कर लिया। लेकिन दूसरे ही पल वह सोचने लगी कि अगर शैली अर्जुन के साथ जिंदगी गुजारना चाहती है तो उसे इससे क्या आपत्ति हो सकती है। अगले दो-चार महीनों में वे कानूनी तौर पर अलग हो ही जाएंगे। एक बार शिफाली ने सोचा कि अर्जुन को नया जीवनसाथी ढूंढने की इतनी जल्दी क्यों है? उसने तो अभी तक इसके बारे में सोचा भी नहीं है, जबकि उसकी मां अक्सर उसे इस बारे में कहती रहती है। उसकी कुछ सहेलियों ने भी उसे कई बार पुरानी जिंदगी को भूलकर नई जिंदगी शुरू करने के लिए कहा है, लेकिन वह अभी तक इस बारे में कोई फैसला नहीं ले पाई। कभी-कभी वह सोचती है कि गलती कहां हुई? जब उसने और अर्जुन ने शादी के बाद अपनी नई जिंदगी शुरू की, तो उसने नहीं सोचा था कि अचानक इतना खतरनाक मोड़ भी आ सकता है! उसके चेहरे के बदलते हावभाव से उसके अंदर की उथल-पुथल का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता था। शैली उसके चेहरे को एकटक देखे जा रही थी, लेकिन शिफाली इस बात से बेखबर अपने ख्यालों के ज्वार-भाटे में डूबती जा रही थी। वह शायद भूल ही गयी थी कि उसके सामने कोई बैठा है। आज शैली ने रुके हुए पानी में पत्थर फेंक कर नई लहरें पैदा कर दी थीं। एक बार तो उसके मन में आया कि वह शैली को कह दे कि वह उसकी कोई मदद नहीं कर सकती।
जब काफी देर तक शिफाली कुछ नहीं बोली तो शैली ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘किस प्रवाह में बह गई तुम?’
शैली की आवाज सुनकर शिफाली तुरंत अपने ख्यालों से बाहर आई।
‘मैं कहीं तुम्हारे पुराने घाव तो नहीं कुरेद रही?’ शैली ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।
‘शैली, सच तो यह है कि शरीर के घाव तो समय के साथ ठीक हो जाते हैं, लेकिन दिल के घाव रिसते ही रहते हैं। खैर, छोड़ो ये सब बातें। हां, तुम्हें क्या पूछना है?’
उसका संक्षिप्त उत्तर सुनकर शैली खुश हो गई। उसने शिफाली का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘यू आर ग्रेट शिफाली, सिंपली ग्रेट। आई वाज कांफिडेंट दैट यू विल हैल्प मी।’
‘ज्यादा खुश मत हो, तुम्हें मेरी फीस देनी होगी।’ शिफाली ने हंसते हुए कहा।
‘एडवांस या आफ्टर?’
इस पर शिफाली ने कोई जवाब नहीं दिया, बस हल्के से मुस्कुरा दी।
शैली भी सचेत होकर बैठ गई, जैसे कुछ पूछने से पहले खुद को तैयार कर रही हो।
‘क्या वह आदमी है?’ शैली ने कुछ झिझकते हुए कहा।
‘क्या?’ शिफाली ने आश्चर्य से पूछा।
‘क्या वह आदमी है?’ शैली ने अपनी बात दोहराई, उसके चेहरे से हल्की सी शरारत टपक रही थी।
ऐसी मुस्कुराहट से शिफाली को उसका मतलब समझ आ गया। ‘यू नाॅटी गर्ल। तुम यह क्यों पूछ रही हो?’ उसने शैली की पीठ प्यार से थपथपाई।
‘दरअसल हमारे देश में लड़कियां अक्सर तलाक के वक्त अपने पति पर यह आरोप लगाती हैं।’
‘डोंट वरी! ही विल कीप यू हैपी!’ इतना कहकर शिफाली जोर से हंस पड़ी और इस हंसी में शैली ने भी उसका पूरा साथ दिया।
‘देखो शिफाली, यह शादी का एक अहम पहलू है। लड़कियां इस बारे में आपस में बात सांझी कर सकती हैं। अब मैं कुछ और बातें जानना चाहती हूं।’
‘तुम जो भी पूछोगी, मैं तुम्हें सब कुछ सही-सही बताने की कोशिश करूंगी। यू आर एन इंट्रस्टिंग गर्ल।’
‘वो बहुत कंजूस तो नहीं है न?’
‘हम्म, कंजूस तो नहीं कह सकते, लेकिन ज्यादा खर्चीला भी नहीं है। उसे फिजूलखर्ची पसंद नहीं है।’
‘बहुत संदिग्ध तो नहीं?’
‘देखो, यह शक का कीड़ा तो हर स्त्री-पुरुष के मन में घूमता ही रहता है, खघसकर उनके जो हमारे देश में पैदा हुए हैं।’
‘ड्रिंक कितनी करता है? क्या वह कोई अन्य ड्रग तो नहीं लेता?’
‘ड्रिंक तो करता है, लेकिन लिमिट में। हां, ड्गज से बचा हुआ है।’
‘उसके माता-पिता की ज्यादा इंटरफियरेंस तो नहीं है? यदि है, तो क्या ऐसा तो नहीं कि वह हमेशा उनके पीछे लगा रहता हो?’
‘हमारे देश के लड़के-लड़कियों को कुछ न कुछ यह बीमारी होती है। लड़कियों की मांएं या बड़ी बहनें और इसी तरह लड़कों की मांएं और बहनें भी इस बीमारी की शिकार हैं। अगर लड़के अपने माता-पिता की बातों में आते हैं तो लड़कियां भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। दरअसल, हमारे माता-पिता यह समझने को तैयार ही नहीं हैं कि शादी के बाद लड़के-लड़कियों को अपनी जिंदगी अपनी मर्जी से जीनी चाहिए। लगभग हर लड़के की माँ यही चाहती है कि उसका लड़का अपनी पत्नी का अनुयायी बनकर अपने माता-पिता को इग्नोर न करे। लेकिन अपनी बेटी के लिए उनकी सोच इसके विपरीत होती है कि ससुराल में उसका पूरा कंट्रोल हो। इन इंडियन फैमिलीज, यू कांट अवायड सच थिंग्स।’
‘एंड वट अबाऊट अर्जुन?’
‘ही इज आलसो ऐन ओबिडियंट सन, या कहें कि माँ का श्रवण-पुत्र है।’
‘हम्म।’ इतना कहकर शैली चुप हो गई और थोड़ी देर बाद बोली, ‘क्या वह यह तो नहीं चाहता कि पत्नी की कमाई भी उसके कंट्रोल में ही हो?’
‘ही इज लाइक दैट ओनली, लेकिन मैंने उससे शुरू में ही बता दिया था कि मेरी सैलरी मेरे पास ही रहेगी। हम दोनों को घर के लिए खर्चा करना होगा और बचत भी हमारी सांझी होगी।’
‘एंड व्हाट वाज हिज रिएक्शन टु दैट?’ शैली ने पूछा।
‘पहले तो वह इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे वह लाइन पे आ गया।’
‘उसने कभी तुम पर हाथ उठाने की कोशिश तो नहीं की?’ शैली ने तनिक झिझकते हुए पूछा।
‘शैली, क्या तुम कोई साइकालोजिस्ट तो नहीं हो?’
‘यदि तुम मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहती, तो तुम्हारी मर्जी।’ शैली ने उसके प्रश्न को अनसुना करते हुए कहा।
‘नहीं शैली, ऐसी तो कोई बात नहीं। मैंने पहले भी तुम्हारी हर बात का सही उत्तर दिया है। मुझे तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर देने में भी कोई आपत्ति नहीं है। मैंने तो यूं ही बात की थी।’ शिफाली ने सफाई देते हुए कहा।
इस पर शैली कुछ नहीं बोली।
‘एक बार बातों-बातों में हमारे बीच बहस हो गई। इस बहस से वह कुछ हद तक क्रोधित हो गया। वह गुस्से में मेरी ओर बढ़ा। मैंने उसकी चाल पहचान ली। मैंने सोफे से उठते हुए उसे गुस्से में कहा, ‘अर्जुन, मेरी ओर कुछ सोच-समझकर कर आगे बढ़ना। मैं तुम्हारी ऐसी कोई भी हरकत बर्दाश्त नहीं करूंगी।’
वह मेरा गुस्सा देखकर कुछ संभला, लेकिन फिर भी उसने मुझे धक्का देकर सोफे पर गिरा दिया और गुस्से में घर से बाहर चला गया।
‘क्या उसके बाद फिर कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई?’
‘नहीं।’
‘तुम्हारी इन बातों से मुझे अंदाजा हो गया है कि तुम और अर्जुन दोनों नार्मल कपल हो। तुम अर्जुन के साथ अपनी जिंदगी अच्छे से जी रही थी और अर्जुन भी एक सामान्य हिंदुस्तानी हस्बैंड की तुलना में अपनी वाइफ के प्रति ज्यादा आज्ञाकारी था, लेकिन फिर अचानक ऐसी कौन सी बात तुम दोनों के बीच हुई कि दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया?’ यह कहते हुए उसने शिफाली के चेहरे की ओर देखा कि कहीं उसके चेहरे पर कोई विशेष प्रभाव तो नहीं पड़ रहा है।
शिफाली को शायद पहले से ही ऐसे सवाल की उम्मीद थी। उसे शैली की यह बात सुनकर ज्यादा हैरानी नहीं हुई, लेकिन उसने तुरंत इस बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह कुछ देर तक खामोश रही, मानो सोच रही हो कि वह अपनी बात कहां से शुरू करे। शैली भी उसके चेहरे के हावभाव पढ़ रही थी, इसलिए कुछ नहीं बोली।
‘हमारी शादी इंडिया में ही हुई थी, दोनों के पेरेंट्स की सहमति से। हम शादी से पहले एक-दूसरे को जानते थे। शादी से एक महीने बाद हम आॅस्ट्रेलिया लौट आए और कुछ हफ्तों के बाद हम अपने-अपने काम पर जाने लगे। हमारी मैरिज लाइफ अच्छे से शुरू हुई। मुझे लगता कि अर्जुन बहुत कोआपरेटिव है, बहुत ज्यादा रोक-टोक नहीं करता। वह घर के सभी कामों में भी हाथ बंटाता। वीक एंड पर हम घूमने चले जाते और बाहर खाना खाते। छह महीने बाद ही उसने अपने पेरेंट्स को आॅस्ट्रेलिया बुलाने की रट लगानी शुरू कर दी। मैं उनके आने के खिलाफ नहीं थी, लेकिन यह जरूर चाहती थी कि पांच-सात महीने और गुजर जाएं, हम एक-दूसरे को पूरी तरह जान लें। मैं समझती हूं कि इस मामले में उसने अपनी जिद पुगाई या यूं कहें कि उसके पेरेंट्स ने उस पर दबाव डाला। करीब दो महीनों में उन्हें वीजा मिल गया और वे हमारे पास पहुँच भी गए।’
इतना कह कर शिफाली चुप हो गयी। वह रसोई में गई और दो गिलास पानी ले आई।
दो-चार घूंट पानी पीने के बाद शिफाली फिर कहने लगी, ‘कुछ देर तक तो सब ठीक-ठाक रहा। उनके आने से मुझे भी काफी आराम मिला। उन्होंने रसोई का सारा काम संभाल लिया। उनके आने के बाद हम भी अपने फ्रेंड-सर्किल में आने-जाने लगे। हम भी कुछ परिवारों को महीने में एक या दो बार अपने घर पर आमंत्रित करने लगे। दरअसल यहीं गड़बड़ हो गई। मेरी सास को बातें करने का कुछ ज्यादा ही चस्का था। वह किसी को तो बोलने ही नहीं देती थीं। एक दिन मैंने अर्जुन से कहा कि वह अपनी मां को रोके ताकि वह दूसरों की बात भी सुने। अर्जुन ने इस बात पर बुरा मनाया। उसने यह बात अपनी मां को भी बता दी। यहीं से हमारी उलझन शुरू हुई।’
यह कहते हुए शिफाली ने पानी पिया और फिर अपनी बात शुरू की, ‘मेरी सास ने धीरे-धीरे रसोई का काम मुझ पर डाल दिया। मुझे काम से कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन पहले अर्जुन काम में मेरी मदद करता था, अब वह खाली बैठा रहता या फिर अपने पेरेंट्स से बातचीत करता रहता। एक दिन मैंने अर्जुन से इस बारे में बात भी की। वह मेरी बात सुनते ही ऊंची आवाज में बोलने लगा। जब उसकी मां हमारे झगड़े में दखल देने लगी तो मैंने उन्हें बोला कि वे हमारे हस्बैंड-वाइफ की बात में दखल न दें। अर्जुन को अपनी मां को रोकना चाहिए था, लेकिन उल्टे मुझे ही आंखें दिखाना शुरू कर दिया कि उसकी मां से इस टोन में बात ना करूं। इतनी छोटी सी बात से बात बढ़ गई। इसके बाद अर्जुन और उसकी मां बहाने ढूंढने लगते मेरे साथ लड़ने के और हमारे घर में कलह शुरू हो गई।’
इतना कह कर शिफाली चुप हो गयी। बोलते-बोलते उसकी सांसें फूल रही थीं और वह अपने दोनों हाथों की मुट्ठियां भी भींच रही थी। उसकी आंखों में गुस्सा था और आंखों के कोने गीले थे। उसके चेहरे के हाव-भाव से शैली को ऐसा लगा जैसे पुरानी बातें याद करते-करते उसके मन में कुछ उथल-पुथल हो रही हो। शायद उसे अगली बात शुरू करने की हिम्मत नहीं हो रही थी और उसका मन भी भरा हुआ था।
शैली ने उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘रिलेक्स शिफाली, जस्ट रिलेक्स! मुझे खेद है कि मैंने तुम्हारे पुराने घाव खोल दिए, लेकिन मुझे यकीन है कि मेरे साथ अपनी पुरानी जिंदगी सांझा करके तुम थोड़ा हल्का हो जाओगी।’
शैली की यह बात सुनते ही शिफाली सिसकने लगी। उसकी आंखों से अपने-आप आंसू निकलने लगे। क्रोध से उसके होंठ फड़फड़ाये, परन्तु आवाज नहीं निकली। शैली ने उसे अपनी बाँहों में भींच लिया। शैली के ऐसे अपनत्व ने शिफाली का रोना और तेज कर दिया और उसका रोना सिसकियों में बदल गया। शैली अपने एक हाथ से उसकी पीठ थपथपाने लगी, लेकिन उसे चुप कराने की कोशिश नहीं की। वह जानती थी कि खुलकर रोने के बाद उसका मन हल्का हो जाएगा। वह शिफाली की पीठ थपथपाती रही। मुंह से कुछ नहीं बोली। वह जानती थी कि ऐसी हालत में शिफाली उसकी कोई बात नहीं सुनेगी, अगर सुनेगी भी तो उसे समझ नहीं आएगी और उस पर कोई असर नहीं होगा, इसलिए अच्छा यही है कि वह आंसुओं के जरिए अपने मन का बोझ हल्का कर ले।
शैली ने उसका सिर अपनी गोद में रख लिया। शिफाली को ऐसा लगा मानो वह अपनी माँ की गोद में लेटी हो। अपनी माँ को याद करके वह और जोर से रोने लगी।
कुछ देर बाद शिफाली ने शैली की गोद से सिर उठाया और बैठने लगी। शैली ने फिर उसका सिर अपनी गोद में रखते हुए कहा, ‘दिल का बोझ कुछ और हल्का कर लो।’
कुछ देर बाद शैली ने मेज पर रखा पानी का गिलास उठाया और उसके मुँह को लगा दिया। शिफाली ने दो घूंट पानी पीने के बाद गिलास को मेज पर रखा और बैठते हुए शैली का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘साॅरी शैली, मैं खुद पर कंट्रोल नहीं रख सकी, उल्टा तुम्हारा मूड भी खराब कर दिया।’
‘मेरी चिंता मत करो, तुम रिलेक्स हो जाओ।’
इसके बाद कुछ देर तक दोनों में से किसी ने बात नहीं की।
शिफाली ने ही फिर बात शुरू करते हुए बताया, ‘एक बार अर्जुन ने मुझ पर हाथ उठाने की कोशिश की थी तो मैंने उसे चेतावनी देते हुए धमकी दी कि मैं पुलिस बुला लूंगी।’
‘दैन व्हाट वाज हिज रिएक्शन?’
‘वह रुक तो गया लेकिन उसके बाद वह और अधिक खीझा-सा रहने लगा। एक दिन तीखी आवाज में मैंने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि इस घर में या मैं रहूंगी या तुम्हारे पेरेंट्स। उसके माता-पिता का वीजा भी समाप्त होने वाला था, इसलिए उनको वापस जाना पड़ा। जब हमारे फैमिली-फ्रेंड्स को हमारे झगड़े के बारे में पता चला, तो उन्होंने हम दोनों को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था।’
‘क्या तुम्हें कभी यह तो नहीं लगा कि उसके जीवन में कोई दूसरी लेडी आ गई हो?’
‘मैंने इस एंगल से कभी नहीं सोचा। मैं पूरा दिन खुद से खीझती रहती थी। आॅफिस में भी काम करने को मन न करता। कभी-कभी मैं यह भी सोचती कि इस तरह जीने से तो अच्छा है कि मैं मर ही जाऊं।’ इतना कह कर वह फिर रोने लगी।
‘क्या तुम किसी मैरिज काउंस्लर के पास नहीं गए?’
‘हमारे एक फैमिली-फ्रेंड ने हम दोनों को इसके बारे में बताया भी, लेकिन अर्जुन सहमत नहीं हुआ।’
‘तुम्हारी सिडनी शिफ्ट करने की योजना कैसे बनी?’
‘घर के उस माहौल से मेरा दिल घबराने लगा। मैं डिप्रेशन का शिकार हो गयी। फैमिली डाॅक्टर से सलाह ली, तो उन्होंने कहा कि अगर तुम कुछ समय के लिए इस माहौल से दूर चली जाओ तो यह आप दोनों के लिए अच्छा होगा। बायचांस, हमारी कंपनी ने मुझे सिडनी शिफ्ट कर दिया।’
‘क्या अर्जुन ने तुम्हें रोका नहीं?’
‘नहीं, उसने तो बस यही कहा कि जहां जाना चाहती हो, चली जाओ।’
‘तुमने घर छोड़ते समय क्या कुछ साथ लिया?’
‘सिर्फ अपनी पर्सनल चीजें।’
‘तुम्हारे आने के बाद क्या उसका कोई फोन आया?’
‘एक बार मैंने उसे उसके जन्मदिन पर फोन किया था और एक बार उसने मुझे मेरे जन्मदिन पर फोन किया था।’
‘हम्म, कोई और खास बात?’
‘करीब तीन महीने पहले उसने तलाक के लिए अर्जी दायर की थी।’
‘क्या तूने उससे इसके बारे में बात की?’ शैली ने पूछा।
‘हाँ। मैंने उसे फोन किया और पूछा कि क्या वह जल्दबाजी तो नहीं कर रहा?’
‘तो उसने क्या उत्तर दिया?’
‘उसने कहा कि जब हमारा आपस में कोई रिश्ता ही नहीं रहा, तो एक-दूसरे से बंधे रहने का क्या फायदा!’
‘क्या तुम्हें लेटेस्ट डिवेलपमेंट का पता है?’
यह सुनकर शिफाली ने आश्चर्य से शैली की ओर देखा और झट से पूछा, ‘क्या?’
‘कोरोना के कारण उसके पेरेंट्स की डेथ हो गई है। पहले उसकी मदर कोरोना का शिकार हुई और उसके एक महीने बाद उसके फादर। फ्लाइटस बंद होने के कारण वह जा भी नहीं सका।’
‘ओह, साॅरी टु नो अबाउट दिस। अगर मुझे पहले पता होता तो मैंने उसे फोन कर दिया होता।’
‘अब जब तुम्हारा उससे कोई लेना-देना ही नहीं है और उसके पेरेंट्स के कारण ही तुम दोनों की अनबन हुई है तो तुम्हें उसके प्रति सहानुभूति क्यों है?’
शिफाली ने उसे गुस्से से देखा और कहा, ‘शैली, हमें कभी किसी की मौत पर खुश नहीं होना चाहिए। अगर मेरे नहीं, तो वो उसके माता-पिता तो थे ही। कुछ देर तो मैंने उनके साथ भी अच्छा समय बिताया था।’
यह सुनकर शैली चुप हो गई। थोड़ी देर बाद बोली, ‘शिफाली, नाराज मत होना, एक बात कहूँ?’
‘क्या?’
‘पहले मैंने तुमसे झूठ कहा था कि मेरी अर्जुन से बात चल रही है। ये झूठ बोलना मेरी मजबूरी थी। वास्तविकता यह है कि मैं एक मैरिज काउंस्लर हूं।’
यह सुनकर शिफाली के चेहरे पर क्रोध और आश्चर्य के मिले-जुले प्रभाव दिखाई दिये। वह कुछ कहने ही वाली थी कि शैली ने उसे हाथ के इशारे से चुप रहने को कहा और अपनी बात खघ्त्म करते हुए बोली, ‘पहले मेरी पूरी बात सुनो। कुछ दिन पहले तुम्हारा कोई फैमिली फ्रेंड अर्जुन को मेरे पास लाया था। अर्जुन ने मुझे पूरी कहानी बताई। मेरे अर्जुन के साथ दो सेशन हो चुके हैं। तुम्हारी बात सुनने तक मैं कुछ नहीं कर सकती थी। संयोग से मेरा सिडनी आने का प्रोग्राम बन गया। मैं तुमसे बात करना चाहती थी। मुझे इस बात की तसस्ली है कि अर्जुन और तुम दोनों ने लगभग एक जैसी कहानी सुनाई है। जहां तक एक मैरिज काउंस्लर के रूप में मेरे अनुभव का सवाल है, तुम्हारा केस कोई बहुत जटिल नहीं है। मैं नेक्स्ट वीक फिर से सिडनी आ रही हूं, यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ एक और सेशन कर सकती हूं। मैंने तुम्हारी सारी बातें तो सुन ही ली हैं। तुम्हें कुछ काउंसलिंग की आवश्यकता है। उसके बाद एक या दो सेशन तुम दोनों के एकसाथ होंगे। मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम दोनों ऐज हस्बैंड-वाइफ नार्मल लाइफ बिता सकते हो।’ यह कहते हुए उसने अपने पर्स से अपना विजिटिंग कार्ड निकाला और शिफाली को देते हुए कहा, ‘अगर तुम बात आगे बढ़ाना चाहती हो तो एक-दो दिन में मुझे फोन करना।’
यह कहते हुए उसने शिफाली को अपनी बाहों में लेते हुए कहा, ‘मेरी फ्लाइट का समय हो गया है। तुमसे मिलकर अच्छा लगा। आॅल द बेस्ट!’ यह कह कर वह बाहरी दरवाजे की ओर चल दी। शिफाली शिष्टाचारवश उसे बाहर तक छोड़ने गयी।
उसके जाने के बाद वह शैली के विजिटिंग कार्ड को टिकटिकी लगाकर देखती रही। उसकी आंखें एक बार फिर थोड़ी नम हो गईं।
अनु – प्रो नव संगीत सिंह, अकाल यूनिवर्सिटी, तलवंडी साबो-151302 (बठिंडा, पंजाब)
मो – 94176 92015
E-Mail- navsangeetsingh1957@gmail.com
मूल- रविंदर सिंह सोढी, रिचमंड, कनाडा
फोन – 001 604 369 2371