महात्मा गांधी की जनसंचार पद्धति : एक प्रकाश स्तंभ

कुमार कृष्णन

महात्मा गांधीजी एक राष्ट्रीय नेता और समाज सुधारक होने के साथ-साथ एक महान संचारक भी थे। एक से अधिक, उन्होंने माना कि राय बनाने और लोकप्रिय समर्थन जुटाने के लिए संचार सबसे प्रभावी उपकरण है। गांधीजी सफल रहे क्योंकि उनके पास संचार में एक गुप्त कौशल था जो दक्षिण अफ्रीका में सामने आया और इससे उन्हें भारत लौटने पर लाखों भारतीयों को एकजुट करने का सुराग मिला। गांधीजी की पत्रकारिता उस युग की थी जब न रेडियो था, न टेलीविजन, यहां तक घ्घ्कि साहित्य भी अच्छा नहीं था। उनकी आत्मसंचार की शक्ति ऐसी थी कि उन्होंने जो कुछ भी कहा और लिखा वह कुछ ही दिनों में भारत के सुदूर कोने और पूरे विश्व तक पहुंच गया।
उनके सिद्धांत न केवल आदर्शवादी थे, बल्कि वे अपने संदेश को जन-जन के बीच प्रचारित करने में भी सक्षम थे। इसके लिए वे प्रचलित मीडिया, ज्यादातर पत्र पत्रिकाओं और जन सभाओं का इस्तेमाल करते थे। उनके नेतृत्त्व के अन्य गुणों में उनका सर्वश्रेष्ठ अधिवक्ता होना शामिल है। उनकी विशिष्टता थी कि वे संदेश में पक्का विश्वास रखते थे और अपने दर्शन को कुशलतापूर्वक व्यक्त करने से पहले स्वयं उस पर अमल करते थे। उन्होंने अपने विचारों को व्यक्तिगत जीवन में अपनाते हुए स्वयं एक उदाहरण बनकर लोगों के सामने रखा।
‘‘माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ’’ यानी ‘‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’’ शीर्षक से प्रकाशित आत्मकथा में उन्होंने अपने जीवन का वास्तविक वर्णन किया है और अपने सिद्धांतों पर अमल करने का व्यक्तिगत उदाहरण पेश किया है। एक वक्ता के रूप में उनकी सफलता के पीछे यही रहस्य रहा है।
महात्मा गांधी इस बात को किसी भी अन्य व्यक्ति की तुलना में अधिक महत्व देते थे कि कौशलपूर्ण संचार, जनमत तैयार करने और लोकप्रिय समर्थन जुटाने का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम है। उन्हें जन समर्थन हासिल करने में सफलता मिली क्योंकि उनमें अभिव्यक्ति का कौशल छिपा था जो 1903 में दक्षिण अफ्रीका की यात्रा प्रारंभ होने के समय प्रकट हुआ। ‘‘द इंडियन ओपिनियन’’ के रूप में गांधी जी की पत्रकारिता उस युग से सम्बद्ध थी, जब आधुनिक जनसंचार उपकरणों का अभाव था।
9 जनवरी, 1913 को स्वदेश लौटने के बाद उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया। गांधीजी ने राष्ट्रवादी प्रेस और अपने पत्र ‘यंग इंडिया’, नवजीवन और अन्य आवधिक पत्र पत्रिकाओं का इस्तेमाल देश के कोने कोने में पहुंचने के लिए किया। वे भली भांति जानते थे कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों तक पहुंचने के लिए सदियों पुरानी मौखिक परंपराओं का सहारा लेना जरूरी है। इन परंपराओं में सार्वजनिक व्याख्यान, प्रार्थना सभाएं और पद यात्राएं शामिल थीं। स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा देने और प्रेरक नेतृत्व को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने तथा अहिंसा, सत्याग्रह और सत्यनिष्ठा की बेजोड़ तकनीक के जरिए आजादी हासिल करने के लिए गांधीजी ने संचार के सभी उपलब्ध साधनों का इस्तेमाल किया।
गांधीजी ने कभी एक क्षण के लिए भी समाचार पत्रों के महत्व को (ऐसे समय में जबकि रेडियो पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण था और टेलीविजन चैनलों का अस्तित्व नहीं था) कम करके नहीं आंका। वे सभी अखबारों को पढ़ते थे और किसी गलत बयानी या तथ्यों को गलत ढंग से पेश किए जाने के बारे में उपयुक्त जवाब देते थे। उनकी यह खासियत थी कि उन्होंने परंपरागत और आधुनिक दोनों ही तरह के संचार माध्यमों का प्रभावकारी इस्तेमाल किया।
गांधीजी ने यंग इंडिया और अन्य पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से अपने व्यक्तित्व का अहसास कराया। इस बदलाव का असर शुरू में ही दिखाई देने लगा। उन्होंने पत्र पत्रिकाओं को अपने विचारों के संप्रेषण का माध्यम बना दिया। यंग इंडिया की प्रतियां अधिक संख्या में बिकने लगीं। देश में कई अखबारों को मिला कर जितना सर्कुलेशन था, यंग इंडिया की प्रतियां उससे भी अधिक बिकने लगीं। उनमें न केवल नए विचार थे बल्कि सरल भाषा और शैली में पेश भी किया जा रहा था, जिससे गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता और लेखन की बयार बहने लगी थी। गांधीजी की यह बेजोड़ विशेषता थी कि वे अपने पत्र पत्रिकाओं के लिए विज्ञापन स्वीकार नहीं करते थे और अपने आलेखों को अन्य पत्र पत्रिकाओं में छपने देने की अनुमति प्रदान करते थे। इससे उनके विचार भारत और विदेश में अनेक पत्र पत्रिकाओं में निःशुल्क पुनः प्रकाशित होने लगे थे।
गांधीजी ने यह सिद्ध कर दिया था कि शैली का अपना महत्व होता है और उनका लेखन प्रचलित लेखन से पूरी तरह भिन्न था। उनकी अंग्रेजी प्रामाणिक थी और वे किसी संदर्भ विशेष में सटीक शब्दों का इस्तेमाल करने के प्रति अत्यंत सजग रहते थे। उनके वाक्य सरल और सुबोध होते थे। वास्तव में वे हृदय से लिखते थे और लक्षित पाठकों के दिलों को संबोधित करते थे। गांधीजी ने स्वयं घोषणा की थी कि उनकी पत्र पत्रिकाएं, उनके विचारों का पर्याय हैं क्योंकि वे सभी राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों का हिस्सा हैं, जिनमें जनता की समस्याओं पर गहन विचार मंथन किया जाता है।
वास्तव में गांधीजी कई नए तत्व लेकर आए, जिनसे पत्रकारिता के क्षेत्र में एक मुक्त जीवन की शुरुआत हुई। उनके अनेक अनुयायियों ने लिखना शुरू किया और उनकी रचनाएं भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होने लगीं जिससे क्षेत्रीय पत्रकारिता का महत्व बढ़ने लगा और देश का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं रह गया जहां से कोई क्षेत्रीय अखबार न निकलता हो।
एक प्रभावकारी प्रचारक के नाते गांधीजी निडर थे और उनके शब्द मुक्त होते थे। वे लाखों लोगों तक पहुंचे और उन्हें अपने लक्ष्य से अवगत कराया। गांधीजी संभवतः युग-प्रवर्तक और महानतम पत्रकार थे। उनके द्वारा संपादित साप्ताहिक संभवतः उस युग के महानतम साप्ताहिक थे। उन्होंने कोई विज्ञापन प्रकाशित नहीं किया लेकिन साथ ही अखबार को घाटे में नहीं जाने दिया। वे सरल और स्पष्ट लेकिन प्रभावशाली लिखते थे, जिसमें जोशपूर्ण और ज्वलंत मुद्दे होते थे।
उन्होंने इस बात पर हमेशा जोर दिया कि ‘‘अखबार के उद्देश्यों में पहला यह है कि वह लोकप्रिय भावनाओं को समझे और उन्हें अभिव्यक्त करे। दूसरा उद्देश्य लोगों में वांछित संवेदनाएं पैदा करना और तीसरा उद्देश्य समाज की विकृतियों को निर्भय होकर उजागर करना है।’’
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी न केवल महानतम स्वतंत्रता सेनानी थे, जो अहिंसा की बेजोड़ तकनीक के साथ संघर्ष कर रहे थे बल्कि वे एक सर्वोत्कृष्ट प्रचारक भी थे जिन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जनमत तैयार किया। उन्होंने संचार के अन्य साधनों का भी अनुकूलतम सक्षमता और प्रभावकारिता के साथ इस्तेमाल किया और ‘‘खोजी पत्रकारिता’’ का प्रयोग करते हुए मीडिया में सही खबरों की कवरेज को प्रोत्साहित किया। महात्मा गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन में उच्च नैतिक मूल्यों का पालन किया और ऐसी जनसंचार पद्धति शुरू की जो हर युग के लिए एक प्रकाश स्तंभ है।

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