विश्व शांति के लिए गांधी ही विकल्प… पर गांधी विरासत बचाना भी जरूरी

 

प्रो. कन्हैया त्रिपाठी

गांधी जी के संदर्भ में अलबर्ट आइंस्टीन का वह कथन अब प्रायः लोग स्मरण करते हैं जो उन्होंने 20वीं शताब्दी के मध्य में कही थी कि- दुनिया एक दिन आश्चर्य करेगी कि गांधी जैसा कोई हाड़ मांस का पुतला इस धरती पर कभी चला होगा। जीवन कृपा पर नहीं जी सकते हम। हिंसक होता समाज, साम्राज्यवादी व्यवस्थाएं और क्रूरता के साथ जीने वाला धड़ा यह बार-बार सन्देश दे रहा है कि यह सभ्यता हमारी कृपा पर सुरक्षित है। हम खुद विचार करें कि यदि हमारे दैनंदिन के जीवन में युद्ध की दहशत हो, तो हम कैसा महसूस करेंगे? जलवायु परिवर्तन का संकट गहराता जा रहा है। जब यह पता चले कि प्रकृति का कहर हमारे जीवन पर टूटने वाला है, तो हम कैसा महसूस करेंगे? यह चिंताजनक स्थितियां संसार भर में बनी हुई हैं। रूस और यूक्रेन के अलावा दुनिया के बहुत से देशों में शांति नहीं है। बड़े पैमाने पर हिंसक लोग और हिंसक उत्पाद हमारी चिंताओं को बढ़ा दिए हैं। सम्पूर्ण मनुष्यता के ध्वजवाहक यह महसूस करने लगे हैं कि शायद हम पहले से कहीं ज्यादा हिंसक, लालची और क्रूर हो गए हैं। हम बहुत कुछ खोने जा रहे हैं और हमें इसके लिए कुछ अलग से सोचना आवश्यक है।
महात्मा गांधी एक ऐसे महान प्रदीप्ति संसार भर में हैं जो हिंसा के विरुद्ध अहिंसा का जयघोष करते हैं। शांति के स्रोत हैं। गांधी जी ने हिंसा की बारीकियों को बहुत सूक्ष्मता से प्रकट करते हुए बहुत पहले कहा था कि ‘अहिंसा कोई स्थूल वस्तु नहीं है, जो आज हमारी दृष्टि के सामने है। किसी को न मारना तो है ही, कुविचार मात्र हिंसा है। उतावली हिंसा है। द्वेष हिंसा है। किसी का बुरा चाहना हिंसा है। जगत के लिए जो आवश्यक वस्तु है, उस पर कब्जा रखना हिंसा है।’ आज संसार में हिंसा कब्जे की संस्कृति से फल-फूल रही है। आधिपत्य, अतिक्रमण और साम्राज्य के विस्तार में वशीभूत हमारी सोच ने हमें ही बहुत पंगु बना दिया है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह राह विनाश की ओर जाती है।
जब भारत आजाद नहीं था तो गांधी जी ने अहिंसक आन्दोलन भारत में चलाया था और उन्होंने प्रतिरोध की संस्कृति को सत्याग्रह के मार्ग पर ले जाकर यह सन्देश दिया था कि हमारे प्रतिरोध का स्वर कैसा होना चाहिए। उन्होंने प्रेम के नियम पर आधारित सत्याग्रह किया था। उन्होंने नमक सत्याग्रह में अहिंसा के सांकेतिक आन्दोलन को भी ऐतिहासिक बना दिया। गांधी का विश्वास यह था कि हमें कोई भी शक्ति अहिंसक पथ पर चलने से न रोक सकती है और न ही पराजित कर सकती है। दुनिया के इतिहास में सांकेतिक अहिंसक सत्याग्रह में गांधीजी ने नमक तोड़ो, उपवास, जेल-यात्रा और आमरण अनशन, स्वदेशी को अपना हथियार बनाया। इसका असर एटली के मस्तिष्क तक पहुंचा था और भारत की समस्त जनता पर हुआ, इससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता। गांधी ऐसे ही अजेय अहिंसक योद्धा नहीं कहे जाते।
आज जब पूरी दुनिया में परमाणु के खतरे दस्तक दे रहे हैं, गरीबी और पर्यावरण के मुद्दे सताने लगे हैं तो गांधी के अहिंसा की डोर युद्ध और संघर्ष या जलवायु संकट से प्रभावित और अप्रभावित राष्ट्राध्यक्षों को अच्छी लगने लगी है। सबकी उम्मीदें गांधी के अहिंसा में आ बसी हैं। इतना ही नहीं मानवाधिकारों के हनन जहाँ हो रहे हैं वहां भी गांधी के बताये रस्ते को लोग अपने लिए वरदान मानने लगे हैं। मार्टिन लूथर किंग द्वितीय, यासर अराफात, किम दे जिंग, दलाई लामा, संयुक्त राष्ट्र के पूर्व व वर्तमान महासचिवों के वक्तव्यों को उठाकर देख लिया जाए तो सबने कहीं न कहीं गांधी के अहिंसक मार्ग से पूरी पृथ्वी पर शांति की संभवनाओं के लिए अपने-अपने विचार व्यक्त किये हैं। इस पर से यह विचार आना स्वाभाविक है कि बंदे में था दम। भारत में और हांगकांग में जो आन्दोलन चल रहे हैं वह इसके बड़े उदाहरण हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें अधिवेशन के समापन समारोह में महासभा के निवर्तमान अध्यक्ष महामहिम चबा कोरोसी ने एक महत्वपूर्ण बात कही कि हमारे वैश्विक सहयोग की बुनियादी शर्तें बदल गई हैं। हम अब एक अलग दुनिया में रहते हैं। यह सच है कि बदलाव बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है और हम बदले भी हैं। उसकी गति को समझने कि आवश्यकता है और उसे रेखांकित करना ही होगा। यदि दुनिया के लोग अहिंसक मार्ग पर चलकर इस बदलाव को करते हैं तो यह वरदान सिद्ध हो सकता है। किन्तु परमाणु और हथियारों के ढेर से बदलाव करेंगे तो मनुष्यता नहीं बचेगी, यह भी एक सचाई है।
विश्व भर में विगत दो दशक से अधिक की अवधि का दौर देखें तो बड़े पैमाने पर शरणार्थियों की संख्या में बाढ़ सी आई है। अनेकों देशों में संघर्ष, युद्ध और अप्रत्याशित हिंसा से जीवन की अनिश्चितता बढ़ी है। इस कारण भी लोग यह सोच रहे हैं कि स्थायी शांति हेतु विकल्प खोजना आवश्यक है। जलवायु परिवर्तन से लेकर समुद्र में हलचल को भी रेखांकित किया जा रहा है। ऐसे में इस बदलती सभ्यता-संकट हेतु विमर्श पूरी दुनिया में जारी है। गांधी ने बहुत पहले यह कहा था कि हमें संयमित और अनुशासित जीवन की कसौटी पर रखकर आगे बढ़ना होगा। उन्होंने प्रेम के नियम पर आधारित अहिंसक जिंदगी जीने की अपील की थी। यह अपील उस समय चाहे जो भी रही हो, लेकिन जब आज जीवन-सततता, पृथ्वी बचाने और सतत विकास की बातें हो रही हैं, तो गांधी की दी हुई शिक्षाएं पूरी दुनिया को याद आने लगी हैं। इसलिए भी संसार भर के लोग गांधी की ओर बहुत उम्मीद से देख रहे हैं और वे तलाश रहे हैं एक तनावमुक्त समाज, शांतिप्रिय समाज और सत्यनिष्ठ समाज।
आधिपत्य और लालच से साम्राज्य बढ़ाने की चाहत पूरी हो जाती है लेकिन शांति के लिए तो अहिंसा आवश्यक होती है। गांधी को इसलिए भी देश अपने सभ्यता का विकल्प मान रहे हैं क्योंकि उनकी बुनियाद कितनी खोखली हैं उसे भी वह अच्छी तरह जानते हैं। नरेंद्र मोदी ने जब अखिल भारतीय स्वच्छता अभियान के रूप में भारत में गाँधी के स्वच्छता मिशन को आगे बढ़ाया तो गाँधी की उपस्थिति और उनकी मौलिकता तथा दूरदृष्टि ज्यादा मजबूती से लोगों के हृदय का हिस्सा बनी है। इससे भारत में एक स्वच्छता क्रांति की लहर आई और पड़ोसी देशों में भी स्वच्छता को लेकर जो जागरूकता बढ़ी है उसका असर आने वाले कुछ वर्षों में दिखने लगेगा। सभी महसूस कर रहे हैं कि स्वच्छता और सादगी से एक स्वस्थ समाज का निर्माण किया जा सकता है।
इस बीच बाजार और उपभोक्तावादी संस्कृति ने एक अलग प्रकार से हिंसा को जन्म दिया है। काॅर्पोरेट ने जिन तबके के मन में भय पैदा किया है। जो लोग अपनी संस्कृति और सभ्यता के साथ अपने परिक्षेत्र में अतिक्रमण नहीं चाहते वे भयभीत होंगे ही। दुनिया के तमाम हरित-क्षेत्र पर काॅर्पोरेट की नजर है जिसे वे हथियाना शुरू कर दिए हैं। गाँधी जी का एक सन्देश होता था कि जो किसी का संपत्ति छीनता है अहिंसा के नियम से च्युत हो जाता है। इस सन्देश को बहुत हलके में लेने वाले और लालच के शिकार काॅर्पोरेट जगत के लोग यदि ऐसा कर रहे हैं तो वह उस समाज का अनहित नहीं कर रहे हैं बल्कि वह खुद का अनहित कर रहे हैं। काॅर्पोरेट जगत की हरित क्षेत्र में आधिपत्य की होड़ कम हो जाएगी क्योंकि ईश्वर के नियम और इसके प्रेरणा-स्रोत निःसंदेह गांधी हैं। उनकी अहिंसा की ताकत ऐसा करने से रोकेगी।
अब यह देखा जा रहा है कि गांधी जयंती पर लोग केवल गांधी जयंती नहीं मना रहे हैं बल्कि बहुत से बड़े साम्राज्यशाली देश के लोग अहिंसा दिवस पर संकल्प ले रहे हैं कि हमें स्थायी शांति की ओर लौटने के लिए अहिंसक सभ्यता के विकास में शामिल होना ही होगा। कहते हैं जब परिस्थितियां परिवर्तन की ओर होती हैं, तो लोग एक सशक्त मध्यम खोजते हैं, जहाँ से वे सुरक्षित रहें। आज व्यापक पैमाने पर जो हवा का रुख बदला है, तो असीम शांति की खोज हेतु सम्पूर्ण दुनिया एकत्रित हो रही है। और इसी में दुनिया की भलाई भी छिपी हुई है, यह एक बड़ा सच है। फिर अपनी भलाई किसे प्यारी नहीं है? शायद सबकी खुशी के लिए गांधी सबकी जरूरत हैं।
इसके साथ ही गांधी को लेकर दो तरह के मिजाज भी भारत में देखने को मिल रहे हैं। इस तरह का कुविचार गांधी के महनीय कार्यों को अपमानित करता है और उनके प्रति जो बहुत असाधारण निष्ठा रखते थे, उनके लिए एक बार सोचनीय स्थिति पैदा कर दिया है। वाराणसी में सर्वोदयवादियों के बीच जो निराशा जन्म ली है उससे उनका हृदय दुखी हुआ है। गांधी की विरासत और गांधी से जुड़ी सभ्यताओं के संरक्षण होने के बजाय उनको नष्ट करने की कोई भी कोशिश आज हमारे ही ऊपर क्या सवाल नहीं खड़ा करते?
हमारे राष्ट्र को अपना दुर्भाग्य लिखने की जगह सौभाग्य गढ़ने पर विचार करना चाहिए। गांधी और गांधी से जुड़ी विरासत में विद्यमान चीजों को बचाना भी आज आवश्यक हो गया है। सरकार की मंशा भले ही गांधी जी की विरासत को हानि पहुँचाना भले न हो लेकिन उसकी आड़ में यदि कोई गांधी वैचारिकी की संस्थाओं को हानि पहुंचाता है तो वह भी ठीक नहीं है।
इस वर्ष प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधी के स्वच्छता संदेश को पुनः जनता के बीच ले जाने की कोशिश है। प्रधान मंत्री तो सदैव महात्मा के विचारों को वैश्विक स्तर पर फैलाने की भरपूर कोशिश की है। वह गांधी मूल्यों और संस्थाओं को सुरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि गांधी जी के वैचारिकी को आगे बढ़ाने वाली संस्थाओं को सुरक्षित करके उनके विचारों से देश को आगे ले जाने की कोशिश की जाए। इसके लिए समन्वय की रणनीति अपनाकर यदि गांधी जी के विचारों व संस्कारों से बहती रसधार को आगे ले जाया जाए।
पूरी सभ्यता विमर्श में गांधी के लिए हम सभी केवल आज शोर न करें आज हमें वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी तो शामिल होना है और गांधी एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जो हमें सभी प्रतिस्पर्धा में सबसे आगे खड़ा रखेंगे क्योकि उनके पास सत्य और अहिंसा का तत्व है।
(लेखक महामहिम राष्ट्रपति जी के पूर्व विशेष कार्य अधिकारी हैं. अहिंसा आयोग और अहिंसक सभ्यता के पैरोकार हैं. लेखक पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय, बठिंडा में चेयर प्रोफेसर हैं।)

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