
जब से आया है मोबाइल, बदला है ये जमाना
देश विदेश की बातों को, घर बैठे हमने जाना
भूले हैं सभ्यता को, भूले हैं संस्कृति को ॥
दुनिया भर की बातें सीखीं, भूल गये अपनापन
सारा समय फोन को देते, अपनों से बिछड़े हम
बात न घर में करते, चैट लोगों से करते॥
ज्ञान किताबों में ही अर्जित, करते थे दिन रैन
अब तो सोशल मीडिया ने ही, लूट लिया सब चैन
हो गये आलसी थोड़े, काम भी कल पर छोड़े ॥
मां की लोरी संग बच्चों का, होता था सो जाना
अब तो मोबाइल बिन बच्चे, खाते नहीं हैं खाना
आउटडोर गेम न खेले, लूडो भी फोन में खेले ॥
दैनिक जीवन में बढ़ रहा, देखो इसका यूज़
कोई देखे न्यूज और, कोई करे मिसयूज
खोया बचपन का शोर है, सोशल मीडिया का जोर है ॥
सेल्फी, स्टेटस, फोटो का, बढ़ता जाता क्रेज
एफबी, इंस्टा पर सबके ही, अपने-अपने पेज
लाइक कमेंट का चक्कर, नन्द भाभी में टक्कर ॥
सोशल मीडिया का संग भाई, हमको बहुत ही भाया
कितने सारे मंच मिले हैं, और काव्य की माया
मिली कवियों की महफिल, ना हुए सपने धूमिल ॥
घर बैठे ही सारे, कवि सम्मेलन यह करवाये
देश-विदेश के कवियों से, यह मेरी भेंट कराये
प्रकाशित होती रचना, पूर्ण होता ये सपना ॥
विनीता चौरासिया
शाहजहाँपुर उत्तर प्रदेश